1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बीफ पर देशव्यापी प्रतिबंध की सलाह

ऋतिका राय (पीटीआई)१५ अक्टूबर २०१५

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से देश भर में बीफ पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने को कहा है. देश के कई राज्यों में इस समय बीफ बैन से जुड़े तमाम मामलों की सुनवाई चल रही है.

https://p.dw.com/p/1Gok5
तस्वीर: picture-alliance/Asia News Network/Jofelle P. Tesorio

भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश के हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से देश भर में बीफ पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करने को कहा है. इस प्रतिबंध के दायरे में केवल गौहत्या ही नहीं बल्कि गोमांस का आयात, निर्यात और बिक्री भी आएगी. कोर्ट ने इस पर विचार के लिए केन्द्र सरकार को तीन महीने का समय दिया है. भारत के कई राज्यों के हाई कोर्ट इस समय बीफ बैन से जुड़े कई मामलों की सुनवाई कर रहे हैं.

एक ओर बीफ बैन से जुड़े कई मामलों की अदालतों में सुनवाई हो रही है वहीं दूसरी ओर कई लोग देश में न्याय मिलने में होने वाली लंबी देरी पर सवाल खड़े कर रहे हैं. आंकड़े दिखाते हैं कि जून 2014 तक भारत के 24 उच्च न्यायालयों में करीब 45 लाख मामले लंबित पड़े हैं. इसे समझने का एक तरीका यह भी हो सकता है कि हर एक हाई कोर्ट पर औसतन 2 लाख मामले बाकी हैं. सबसे बुरा हाल उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाई कोर्ट का है जहां करीब 7 लाख केस लंबित पड़े हैं. देश का सर्वोच्च न्यायालय भी लंबित मामलों से अटा पड़ा है.

धार्मिक आजादी के विशेषज्ञ एक टॉप अमेरिकी डिप्लोमैट डेविड सेपरस्टाइन ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा है कि अमेरिका मोदी सरकार से पूरे देश में सभी समुदायों के बीच "सहनशीलता और शिष्टता" के आदर्शों को लागू करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. दादरी कांड पर लंबी चुप्पी तोड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में उसे "दुर्भाग्यपूर्ण" घटना बताया था. इससे भी कड़े और साफ शब्दों में पीएम मोदी की प्रतिक्रिया की अपेक्षा कर रहे कई समाजसेवी और एक्टिविस्ट इससे निराश दिखे.

अमेरिका में जारी हुए अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर भी लिखा है. रिपोर्ट के मुताबिक 26 मई तक यूपीए सरकार के शासन और उसके बाद से एनडीए सरकार के समय में साल 2014 में भारत में कई धार्मिक मुद्दों पर हत्याएं, गिरफ्तारियां, दंगे और जबरन धर्मपरिवर्तन की घटनाएं हुईं, जिनमें से सांप्रादायिक हिंसा के कुछ मामलों में पुलिस की ओर से समुचित प्रतिक्रिया नहीं हुई. इस पर सेपरस्टाइन ने कहा, "इस रिपोर्ट में कोई निष्कर्ष नहीं निकाला गया है बल्कि केवल तथ्य पेश किए गए हैं."