1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

बीयर की गंध कम करने वाला बैक्टीरिया

२० सितम्बर २०१०

बीयर में मिलाने के लिए जर्मनी में एक बैक्टेरिया खोजा गया. दावा है कि यह बैक्टेरिया बीयर की गंध को कम करेगा. मशहूर अक्तूबर फेस्ट में इस बार सिगरेट पीने की पांबदी है लिहाजा वहां की बयारों में सिर्फ बीयर की गंध तैर रही है.

https://p.dw.com/p/PHYn
तस्वीर: AP

जर्मन कंपनी के हूबेर्ट हाकल का दावा है कि उन्होंने ऐसा बैक्टेरिया ढूंढ निकाला है जो बीयर की गंध खत्म कर देगा. हुबेर्ट हाकल का कहना है कि भूरे रंग का उनका यह लिक्विड बीयर की गंध को शानदार महक में बदल देगा. अक्तूबर फेस्ट में बैक्टेरिया मिली हुई बीयर बिकने भी लगी है. लोगों की भारी भीड़ ट्राई करने के नाम से इसका स्वाद भी ले रही है.

एक साथ बीयर के 6,200 शकीनों की मेजबानी करने वाले हॉल ब्राओरोस्ल की रेनाटे हाइडे कहती हैं, ''इस तरह की कोशिश हम पहली बार कर रहे हैं.''

NO FLASH Deutschland München Oktoberfest 200 Jahre 2010
तस्वीर: picture alliance/dpa

अक्तूबर फेस्ट में पिछले साल तक टैंटों के भीतर बीयर की बयार बहती रही, सिर के ऊपर टैंट के नुकीली कोनों में सिगरेट का धुआं सरकता हुआ बाहर जाता रहा. लेकिन इस बार धुम्रपान पर पाबंदी लगाने की वजह से ऐसा नहीं हो पा रहा है. जिसकी वजह से टैंटों के भीतर बीयर की गंध ऐसी फैल रही है कि कुछ लोग असहज महसूस करने लगे हैं.

कई लोगों के साथ बीयर कंपनियों का भी मानना है कि सिगरेट का धुआं बीयर की गंध को काटने का काम करता है. लेकिन सिगरेट के कशों पर प्रतिबंध लगने के बाद बीयर का महकना स्वाभाविक है. इस गंध की वजह से अक्तूबर फेस्ट का खुमार जानदार नहीं हो पा रहा है. इस साल अपने आयोजन की 200वीं सालगिरह मना रहे अक्तूबर फेस्ट को गंध मारती बीयर की शिकायत से दो चार होना पड़ रहा है.

Flash-Galerie Oktoberfest Anstich

हूबेर्ट हाकल के मुताबिक भूरे रंग का यह लिक्विड समुद्री शैवाल और शीरे से बनाया गया है. एक पूरी तरह प्राकृतिक है. हाकल कहते हैं, ''यह जैविक कचरे को साफ करने का सबसे प्राकृतिक तरीका है. यह घास के लिए खाद का काम करता है.''

म्यूनिख का अक्तूबर फेस्ट दुनिया का सबसे बड़ा बीयर मेला है. यह सितंबर के तीसरे शनिवार से अक्तूबर महीने के पहले शनिवार तक चलता है. इस साल इसमें 60 लाख लोगों के आने की उम्मीद है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ ओ सिंह

संपादन: आभा एम