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बेगुनाहों पर आरोपों की मार

१५ अप्रैल २०१३

आतंकवाद के आरोपों में घिरे न जाने कितने बेकसूर मुस्लिम युवा लंबे समय से बेवजह भारत की जेलों में बंद हैं. अब भारत सरकार को उनकी मदद करने की सुध आई है.

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तस्वीर: Fotolia/Sebastian Duda

जुलाई 2001 में आधी रात को कानपुर में पुलिस का खास दस्ता 29 साल के वसीफ हैदर को उनके घर से उठा ले गया. एक अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सेल्स मैनेजर वसीफ हैदर को तीन दिन तक हिरासत में रख कर मारा पीटा गया और फिर आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार कर लिया गया. हैदर के खिलाफ 11 मामलों में आरोप लगाए गए जिनमें दंगा करने से लेकर देश के खिलाफ जंग छेड़ने और आतंकवादी हमलों के लिए हथियार और विस्फोटक लाने ले जाने तक के आरोप शामिल थे. पुलिस का दावा है कि हैदर हिज्बुल मुजाहिदीन का आतंकवादी है जिसने कश्मीर में प्रशिक्षण लिया और वह कानपुर में साल 2000 में हुए के बम हमले में शामिल था.

हैदर के खिलाफ पुलिस के सारे आरोपों को कोर्ट में जज ने खारिज कर दिया. पुलिस ने एक अपराध कबूलने का एक वीडियो कोर्ट में पेश किया लेकिन जज ने आशंका जताई कि हिरासत में रखने के दौरान आरोपी को प्रताड़ित किया गया होगा और दबाव डाल कर उससे कबूलनामा तैयार कराया गया होगा. कोर्ट ने माना," कोई भी गवाह साबित नहीं कर सका" कि हमलों में हैदर का हाथ है. कोर्ट ने उसे सभी मामलों में बरी कर दिया लेकिन तब तक वह आठ साल जेल में गुजार चुका था.

आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तारी और आठ साल की जेल ने उसकी जिंदगी हमेशा के लिए तबाह कर दी. हैदर ने डीडब्ल्यू से कहा, "पुलिस सूत्रों के हवाले से मीडिया खबर देता रहा कि मैंने कानपुर में बम हमला किया लेकिन यह कोई नहीं जानता कि पुलिस हिरासत के दौरान मुझसे 150 सादे कागजों पर दस्तखत कराए गए और वीडियो कैमरे के सामने बोलने के लिए मजबूर किया गया."

Wahlen in Gujarat Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

हैदर ने बताया कि कोर्ट ने सारे सबूतों को गढ़ा हुआ माना. कोर्ट से राहत मिलने के बाद भी हैदर की मुश्किलें खत्म नहीं हुईं. हैदर बताते हैं, "लंबे समय तक पुलिस ने मेरे खिलाफ झूठा अभियान चलाया और इस वजह से समाज अब भी मुझे आतंकवादी मानता है. बरी होने के बाद भी मुझे मेरी कंपनी ने वापस काम पर रखने से मना कर दिया. पिछले चार साल से मैंने जितनी जगह नौकरी के लिए आवेदन भेजे कहीं से कोई जवाब नहीं आया, मेरे आगे का भविष्य अंधेरा है."

इस तरह के हालात का सामना करने वाले हैदर अकेले नहीं हैं. पिछले कुछ महीनों में अधिकारों की बात करने वाले संगठनों ने दर्जनों ऐसे मामले सामने रखे हैं जिनमें मुस्लिम युवाओं को सालों तक जेल में रखा गया.

फास्ट ट्रैक कोर्ट

हाल ही में कई सांसदों ने इस मामले संसद में बहस कराने की मांग रखी. सांसदों ने इसके पीछे धीमी अदालती कार्रवाई को जिम्मेदार माना है. काफी हो हल्ला मचने के बाद पिछले महीने भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने संसद को भरोसा दिया कि सरकार जल्दी ही आतंकवाद से जुड़े इस तरह के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन करेगी. भारत के गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने पिछले महीने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रहमान खान को एक पत्र लिख कर कहा, "मेरा भी मानना है कि गिरफ्तार करना और बेगुनाह लोगों को जान बूझ कर हिरासत में रखना एक गंभीर अपराध है और सरकार ऐसे सभी मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना चाहती है."

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तस्वीर: DW/S.A.Rahman

शिंदे ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के लिए कोई समय सीमा तो नहीं बताई लेकिन के रहमान खान का कहना है कि सरकार इन मामलों को जितनी जल्दी हो सके निपटाना चाहती है.

पुलिस की मुस्लिम विरोधी सोच

सामाजिक कार्यकर्ता और पूर्व पुलिस महानिदेशक एसआर दारापुरी का कहना है कि पुलिस में एक बड़ा हिस्सा जिसमें हिंदुओं की प्रमुखता है, वह सांप्रदायिक रूप से मुस्लिम विरोधी सोच रखता है. एसआर दारापुरी ने डीडब्ल्यू से कहा, "आतंकवादी हमलों के बाद सांप्रदायिक सोच रखने वाली पुलिस नियमित रूप से मुस्लिम युवाओं को बिना शुरूआती छानबीन के ही गिरफ्तार कर लेती है." दारापुरी ने तो अदालतों को भी ऐसी सोच से प्रभावित बताया. दारापुरी ने कहा, "दुर्भाग्य है कि कोर्ट में भी कई बार मुस्लिमविरोधी सोच दिखती है, आतंकवाद के आरोपों में घिरे लोगों की जमानत अर्जियों के खारिज होने और धीमी सुनवाइयों से इसका पता चलता है."

नई दिल्ली के जामिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली मनीषा सेठी कहती हैं कि दुर्भावनापूर्ण अभियोजन का नुकसान बहुत ज्यादा है न सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि यह सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से भी काफी तकलीफदेह है. सेठी ने डीडब्ल्यू से कहा, "ज्यादातर परिवार कानूनी लड़ाई के लिए पैसा जुटाने में ही बर्बाद हो जाते हैं और कई मामलों आरोपी ही परिवार में पैसा कमाने वाला अकेला शख्स होता है. इससे कारोबार ठप्प हो जाता है और बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है."

प्रधानमंत्री के बयान से भरोसा जगा है और लोग इसका स्वागत कर रहे हैं लेकिन यह कब तक अमल में आएगा यह कहना अभी मुश्किल है. मोहम्मद आमिर 18 साल के थे तो आतंकवाद के आरोपों में गिरफ्तार हुए और 14 साल कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद पिछले साल बरी हुए. आमिर ने डीब्ल्यू से कहा, "तेज सुनवाई हुई होती तो मेरी जवानी के कई साल जो जेल में गुजरे वो बच जाते. मैं नहीं चाहूंगा कि कोई भी सालों तक जेल में रहे." सरकार भी यही कह रही है.

रिपोर्टः अजीजुर रहमान/एनआर

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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