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बेहतर हुई है ब्राजील की हालत

६ अक्टूबर २०१४

ब्राजील में 12 साल से लेबर पार्टी का शासन है. इन सालों में ब्राजील ने बहुत प्रगति की है. उसकी हालत बेहतर हुई है, लेकिन अच्छी नहीं. राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ के भविष्य का फैसला तीन हफ्ते बाद चुनाव के दूसरे चरण में होगा.

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तस्वीर: Reuters/Nacho Doce

पहली जनवरी 2003 को लुइस इनासियो लूला दा सिल्वा ने चुनाव में 62 प्रतिशत समर्थन जीतकर ब्राजील के राष्ट्रपति का पद संभाला था. देश के युवा लोकतंत्र में ऐसा बहुमत तब तक किसी को नहीं मिला था. यह लेबर पार्टी के 12 साल तक चलने वाले शासन की शुरुआत थी. अब तक किसी लोकतांत्रिक पार्टी ने देश पर इतने समय तक लगातार शासन नहीं किया है. आठ साल तक कभी मजदूर नेता रहे लूला दा सिल्वा ने शासन किया और उसके बाद चार साल के लिए उनकी पार्टी की डिल्मा रूसेफ देश का राष्ट्रपति चुनी गईं.

उन पर अब फिर से चुने जाने का चुनौती है. वे दबाव में हैं क्योंकि पिछले तीन सालों में आर्थिक विकास न के बराबर रहा है. 2014 की दूसरी तिमाही में सकल राष्ट्रीय उत्पादन में 0.6 प्रतिशत का ह्रास ही हुआ है. इसके अलावा देश 6.5 प्रतिशत की मुद्रास्फीति से जूझ रहा है. हालांकि ब्राजील में न्यूनतम मजदूरी का स्तर महंगाई के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन रोजमर्रा की चीजों की कीमत खास तौर पर तेजी से बढ़ती है. बहुत से ब्राजीलवासी कर्ज में डूबे हैं और किश्तें चुकानी मुश्किल हो रही हैं. लोगों को फिर से गरीबी का डर सता रहा है.

Symbolbild Wirtschaft Brasilien
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb

भारी गरीबी में कमी

लेबर पार्टी की सरकार की सामाजिक नीतियों की विश्व भर में सराहना होती है. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने भी उसकी तारीफ की है. जीरो-भुखमरी अभियान फोमे जीरो की मदद से देश में कुपोषण के मामलों में 2003 से 80 प्रतिशत की कमी आई है. परिवारों की मदद के लिए चलाए जा रहे प्रोग्राम "बोल्सा फमिलिया" और घर निर्माण कार्यक्रम "मिन्या कासा मिन्या वीदा" जैसे सामाजिक कार्यक्रमों की वजह से देश में भारी गरीबी तेजी से गिरी है. न्यूनतम वेतन को बढ़ाने की वजह से आमदनी के बंटवारे पर हुए असर से ब्राजील के 3.5 करोड़ लोग मध्यवर्ग में शामिल हुए हैं.

इन सफलताओं पर सरकार की आलोचना करने वालों को भी संदेह नहीं है. वे समाजिक कल्याण कार्यक्रम में दूसरी चीजों की शिकायत करते हैं और सरकारी मदद का लाभ उठाने वालों को श्रम बाजार में समेकित करने की मांग करते हैं. चिंता यह है कि ऐसा नहीं करने से समस्याएं बढ़ सकती हैं, क्योंकि लोग खुद गरीबी से बाहर निकलने की कोशिश करने के बदले सरकारी मदद पर भरोसा करने लगेंगे.

गरीब के लिए शिक्षा नहीं

ब्राजील में आय का रिश्ता शिक्षा के स्तर से जुड़ा है. हालांकि नामी सरकारी यूनिवर्सिटियों में पढ़ने की फीस नहीं लगती, लेकिन जिसने महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई नहीं की हो, उसके दाखिले की संभावना कम होती है. इसमें शिक्षा पर सरकारी खर्च बढ़ने का भी कोई असर नहीं हुआ है. ब्राजील की सरकार इस समय सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 6.1 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है जो औद्योगिक देशों के औसत 6.3 प्रतिशत के काफी नजदीक है.लेकिन ब्राजील की आबादी युवा है और प्रति छात्र 2985 डॉलर का खर्च पर्याप्त नहीं है. लोगों का असंतोष पिछले साल सड़कों पर दिखा.

शिक्षा की तरह स्वास्थ्य नीति को लेकर भी लोगों में असंतोष है. हालांकि इन सालों में शिशु मृत्युदर गिरी है और मलेरिया से मरने वाले लोगों की तादाद भी कम हुई है, लेकिन चिकित्सा सेवा की हालत अच्छी नहीं. साओ पाउलो यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्री अकीलेस मेंडेस कहते हैं, "लूला सरकार के लिए यह कभी प्राथमिकता नहीं थी." यूं तो लेबर शासन के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारी खर्च दोगुना हो गया है, लेकिन अभी भी बिस्तरों के अभाव में बहुत सी महिलाओं को अस्पतालों में जमीन पर बच्चा जनना पड़ता है और ऑपरेशन के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता है.

ज्यादा समय नहीं

पिछले साल देश की सामाजिक दुर्व्यवस्था के खिलाफ हुए जन प्रदर्शनों के बीच राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ ने शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में बेहतरी के लिए कानून पास कराया था. भविष्य में खनिज तेल से होने वाली आमदनी का 75 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर और 25 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया जाएगा. फौरी बेहतरी के लिए सरकार ने क्यूबा, स्पेन, पुर्तगाल और अर्जेंटीना से 14,000 डॉक्टर मंगवाए हैं.

रूसेफ ने समस्या को सुलझाने की पहल की. लेकिन फिर भी बहुत से ब्राजीलवासियों का आरोप है कि उन्होंने लोगों को मछली मारना सिखाने के बदले मछली दी. अर्थशास्त्री जोसे मतियास परेरा कहते हैं, "उपभोग के जरिये विकास को प्रोत्साहित करने की नीति ज्यादा दिन नहीं चलती." लेबर पार्टी के अधिकारियों को भी पता है कि बिना कमाई के सामाजिक कार्यक्रमों पर खर्च नहीं किया जा सकता. लेकिन नया रास्ता खोजने में अब तक सफलता नहीं मिली है. एक बात तय है कि इन चुनावों में जो भी जीते उसे शासन के लिए 2003 के मुकाबले समृद्ध मुल्क मिलेगा.

रिपोर्ट: कौलित फर्नांडो/एमजे

संपादन: मानसी गोपालकृष्णन