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'बॉलीवुड सा उघड़ापन जर्मनी में भी नहीं'

४ जुलाई २०१३

पांव में घुंघरू, आंखों में चमक और दिल में ललक वैसी ही, न्यूरेम्बर्ग में कथक की क्लास में भारत से अलग कुछ था तो सिर्फ लड़कियों का गोरा रंग. जर्मन गोरे रंग पर कथक की छाप कुछ के लिए नई है तो कुछ के लिए 5-6 साल पुरानी भी.

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तस्वीर: DW/A. Mondhe

ब्रेक के दौरान एक जर्मन लड़की दूसरी जर्मन लड़की को समझा रही थी, कि घुंघरू की पूजा होने के बाद उन्हें पहन कर क्लास से बाहर नहीं जाना है, उन्हें पैर नहीं लगाना है. मैं एक भारतीय के तौर पर हैरान थी ये सब सुन कर.

इन सब जर्मनों को कथक की ओर ले जाने वाली भी जर्मन हैं. नाम है, आलेना मुलर. वे पिछले छह साल से कथक और बॉलीवुड डांस सिखा रही हैं. बातचीत में उन्होंने बताया, "ये पहली नजर की मुहब्बत थी. मैंने पहली बार कथक देखा और इसके प्रेम में पड़ गई. म्यूनिख में कुछ साल सीखती रही फिर नई दिल्ली जा कर लखनऊ घराने के मुन्ना शुक्ला जी से विधिवत कथक सीखना शुरू किया." कथक में क्या अच्छा लगता है ये पूछने पर एलेना ने कहा, "कथक पूरा जीवन है. इसमें आध्यात्म है, इसमें गति है. यह जीवन जीना सीखाता है." ये पूछने पर कि आप बॉलीवुड डांस भी सिखाती हैं तो आने वाले जर्मन क्या सिर्फ बॉलीवुड सीखना चाहते हैं, उन्होंने बताया, "मेरे यहां कई देशों के लोग आते हैं. उनमें ऐसे भारतीय मूल के बच्चे भी हैं जो यहीं पैदा हुए हैं. वे भी सीखते हैं. जहां तक बॉलीवुड की बात है लोग मेरे पास अक्सर बॉलीवुड डांस सीखने आते हैं और फिर कुछ समय बाद कथक सीखने लगते हैं." एक छात्रा जिनका नाम भी आलेना ही है. वह बताती हैं कि उन्हें ब्लैक एंड व्हाइट दौर में बनी देवदास (1955) की चंद्रमुखी ने कथक सीखने के लिए प्रेरित किया. बॉलीवुड से अब वो भी कथक ही सीख रही हैं.
छह साल से कथक सीख रही माइके ट्रेंकल को बॉलीवुड में महिलाओं को वस्तु और सेक्स ऑब्जेक्ट के तौर पर पेश करने से घोर आपत्ति है. वो कहती हैं, "जिस तरह से बारिश में भीगी औरतों या फिर पूरे कपड़ों में जिस तरीके का उघड़ापन दिखाया जाता है वो तो जर्मनी की आम फिल्मों में भी नहीं होता है."

Nürnberg - Tanzstil Kathak
पंडित राजेन्द्र गंगानी मधुराष्टकम सिखाते हुएतस्वीर: DW/A. Mondhe

कथक के जयपुर घराने के अग्रज नृत्यकार पंडित राजेन्द्र गंगानी नई दिल्ली में कथक केन्द्र के अलावा विदेशों में भी कथक सिखाते हैं. वे कहते हैं, "हां ऐसा होता है कई बार कि लोग भारत को सीधे बॉलीवुड से जोड़ते हैं. लेकिन धीरे धीरे वो समझ पाते हैं कि यह सच्चाई नहीं. जहां तक कथक की बात है अमेरिका में भी या स्विट्जरलैंड में लोग सीखते हैं. विदेशी मूल के लोग भी मन लगा कर सीखते हैं." जहां पंडित गंगानी वरिष्ठ छात्राओं को सीखा रहे थे वहीं उनकी स्टूडेंट स्वाति सिन्हा और देवदत्त परसौड नई स्टुडेंट की क्लास ले रहे थे.

Nürnberg - Tanzstil Kathak
अभ्यास सत्र के दौरानतस्वीर: DW/A. Mondhe

न्यूरेम्बर्ग में हुई इस वर्कशॉप में दो दिन के लिए सुंदर काली आंखों वाली तात्याना तावुर्ना पैरिस से आईं. छह साल पहले एक दिन वह क्लास के लिए गई और फिर उसके बाद कथक नहीं छोड़ सकीं. वो कहती हैं. "मैं अक्सर सोचती थी कि क्यों मुझे कथक इतना अच्छा लगता है. फिर मुझे समझ में आया कि इसकी लय मुझे खींचती है क्योंकि ये काफी कुछ फ्लेमेंको की तरह है. फ्लेंमेंको की ताल भी है तो मूल रूप से राजस्थान की. इसलिए मुझे कथक बहुत पसंद है."

वर्कशॉप में कथक के ही अलग अलग अंग सिखाए जा रहे थे. मधुराष्टकम के श्लोकों पर भाव अभिनय सीखती जर्मन लड़कियां कृष्ण की भंगिमाएं कुशलता से समझ रही थीं और उसमें इतनी मगन हो गईं मानो इसके अलावा और कुछ जाना ही न हो...

रिपोर्टः आभा मोंढे, न्यूरेम्बर्ग

संपादनः निखिल रंजन

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