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चीन के बाद ब्रांड चोरी में जर्मनी

१३ अगस्त २०१४

नकली समान बनाने वाले देशों की सूची में जर्मनी दूसरे नंबर पर है. इसके कारण सिर्फ इंजीनियरिंग सेक्टर को 7.9 अरब यूरो का सालाना नुकसान उठाना पड़ता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

कई जर्मन कंपनियां बौद्धिक संपदा के हनन का नुकसान उठाती हैं. ये चोरी करने वाली बहुत दूर की नहीं, अक्सर आस पास की ही कंपनियां होती हैं. इस तरह की जालसाजी करने में चीन कई साल से पहले नंबर पर है. लेकिन इस साल प्रकाशित शोध में संकेत मिला है कि जर्मनी भी कॉपी मास्टर कम नहीं हैं. 2014 में एक चौथाई नकली ब्रांड और उत्पाद यूरोप के बड़े देशों की कंपनियों में पहुंचे. इस मामले में जर्मनी, तुर्की और भारत को पीछे छोड़ता हुआ चीन के बाद दूसरे नंबर पर आ गया है. जर्मनी की वीडीएमए इंजीनियरिंग असोसिएशन ने प्रोडक्ट पायरेसी की ताजा रिपोर्ट में यह बात सामने आई है.

जर्मन जाली उत्पाद

ऐसा नहीं है कि जाली होने के कारण इनकी गुणवत्ता खराब हुई हो, जैसा कि दुनिया के कई देशों में होता है. यहां नकली उत्पाद भी अच्छी क्वालिटी के हैं. अक्सर कंपनियां पूरी हाईटेक मशीनें, स्पेयर पार्ट और कॉम्पोनेंट ही कॉपी कर लेती हैं. शोध में कहा गया है कि कड़ी प्रतिस्पर्धा इस बौद्धिक चोरी का सबसे बड़ा कारण है. वीडीएमए के मुताबिक पिछले साल इंजीनियरिंग उद्योग को इस कारण 7.9 अरब यूरो का नुकसान उठाना पड़ा था. साथ ही उन्होंने जर्मनी में होने वाली इस चोरी के आयाम के बारे में चेतावनी भी दी. वीडीएमए के प्रबंध निदेशक श्टेफन जिमरमन ने कहा, "कई कंपनियों को डर है कि उनकी प्रतिष्ठा गिर जाएगी."

नए आयडिया

बढ़ती चोरी के कारण कुछ कंपनियों ने इससे बचने के रचनात्मक तरीके अपना लिए हैं. 1977 से आक्सियोन प्लागियारियुस नाम के ग्रुप ने ऐसी कंपनियों को फॉक्स अवॉर्ड देना शुरू किया है जो ब्रांड पायरेसी में मास्टर हैं. चीन की कंपनियों के अलावा इस सूची में कई जर्मन कंपनियां भी हैं. दक्षिणी जर्मनी की एक कंपनी पोछे के डंडे को लटकाने वाला मैग्नेटिक होल्डर बनाती है. इस कंपनी का उत्पाद जैसे ही बाजार में फेमस हुआ, वैसे ही एक और जर्मन कंपनी ने भी इसी तरह का एक मॉडल बाजार में उतारा. इस साल के प्लागियारियुस अवॉर्ड में इस कंपनी को तीसरा नंबर मिला.

ग्रुप की प्रवक्ता क्रिस्टीने लार्कोइक्स बताती हैं कि नकली उत्पाद या ब्रांड की चोरी से कोई सेक्टर नहीं बचा है. खिलौने से लेकर उपकरण बनाने वाली हर कंपनी जालसाजी का शिकार होती है. पहले तो नकली उत्पादों की गुणवत्ता अक्सर खराब होती थी और इसीलिए वो पहचान में भी आ जाते थे. लेकिल आज नकली उत्पाद भी अच्छी क्वालिटी के आ रहे हैं. ऐसे उत्पाद जिनकी आसानी से कॉपी की जा सकती है उनमें आजकल खास तरह के निशान बनाए जाने लगे हैं. अक्सर वे होलोग्राम से चिह्नित होते हैं.

रिपोर्टः ऊटा क्नाप/एएम

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी