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ब्राजील में खत्म नहीं हुई आक्रोश की जड़ें

१६ जुलाई २०१४

ब्राजील की राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ फुटबॉल विश्व कप के सफल आयोजन के बाद ब्रिक्स नेताओं के साथ शिखर सम्मेलन कर रही हैं. विश्व कप के दौरान बड़े विरोध प्रदर्शन तो नहीं हुए लेकिन लोगों के गुस्से की वजह बनी हुई है.

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तस्वीर: NELSON ALMEIDA/AFP/Getty Images

बहुत से लोगों को डर था कि प्रदर्शनकारी वर्ल्ड कप की पार्टी को नुकसान पहुंचाएंगे, लेकिन जैसे जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ा, वे प्रदर्शन के लिए नहीं पहुंचे. हालांकि राष्ट्रीय टीम चैंपियनशिप जीतने में नाकाम रही, ब्राजील टूर्नामेंट के सफल आयोजन का दावा तो कर ही सकता है. अब उसके सामने दो साल बाद ओलंपिक की तैयारी है. उसे वर्ल्ड कप की तैयारी की गलतियों से बचना होगा और सामाजिक सुधार की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों से पुलिस के बदले बातचीत के जरिये निबटना होगा.

वर्ल्ड कप के दौरान ब्राजीव पिछले साल कंफेडरेशन कप के दौरान हुई हिंसक घटनाओं की पुनरावृति को रोकने में सफल रहा. उस समय कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन हुए. फुटबॉल के बदले शिक्षा और नागरिक सुविधाओं में सरकारी खर्च बढ़ाने की मांग करने के लिए एक रात में दस लाख से ज्यादा लोग सड़कों पर उतरे. वर्ल्ड कप के दौरान यदि टकराव नहीं हुआ तो उसकी वजह लोगों के गुस्से में कमी नहीं बल्कि मैचों में दिलचस्पी और भारी पुलिस बंदोबस्त रही.

Brasilien/Ureinwohner/ Demonstration/
तस्वीर: Reuters

50 वर्षीय सरकारी कर्मचारी पाउलो कावलकांटेस पिछले साल के प्रदर्शनों में खुद तो गए ही थे, अपने साथ अपनी दो बेटियों को भी ले गए थे. लेकिन वर्ल्ड कप के दौरान वे दूसरे बहुत से ब्राजील वासियों की तरह घर पर ही रहे. वे बताते हैं, "पुलिस को प्रदर्शनकारियों को तितरबितर करने के आदेश थे." टूर्नामेंट के शुरुआती दिनों में छोटी छोटी रैलियों को रोकने के लिए पुलिस स्टेनगन और आंसू गैस के गोलों के साथ मौजूद थी. कावलकांटेस कहते हैं, "मैं अपने परिवार को खतरे में नहीं डाल सकता था."

रविवार को जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच हुए फाइनल मैच के लिए ब्राजील की सरकार ने सुरक्षा बल के 25,000 जवानों को ड्यूटी पर लगाया था. यह ब्राजील के इतिहास की सबसे बड़ा सुरक्षा कवायद थी. वर्ल्ड कप के लिए स्टेडियमों और दूसरी तैयारियों पर खर्च के लिए आलोचना का सामना करने वाली राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ ने वर्ल्ड कप के दौरान समारोही और फैंस के लिए स्वागत वाला माहौल बनाने का सेहरा अपने माथे पर लिया. उन्होंने विदेशी पत्रकारों के एक दल से कहा, "हमने मुस्तैदी के साथ शांति और व्यवस्था बनाए रखी."

वर्ल्ड कप का सफल आयोजन इस साल अक्टूबर में होने वाले चुनाव में राष्ट्रपति की जीत में मदद करेगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा. वर्ल्ड कप का समय कितना भी मजेदार रहा हो, महंगाई, गरीबी और भ्रष्टाचार के आरोपों पर लोगों का गुस्सा सुलग रहा है. सामाजिक अशांति पर शोध करने वाले राजनीतिक विश्लेषक गुलेर्मो त्रेजो कहते हैं, "ब्राजील के आम लोगों में सरकार के खिलाफ गहरा रोष है और वे सड़क पर हो रही इस मांग से सहानुभूति रखते हैं कि सरकार उतना ही खर्च शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास पर करे जितना वर्ल्ड कप के आयोजन के लिए किया है."

Brasilianische Fußballfans
तस्वीर: picture alliance/augenklick

पिछले महीने की शांति की एक वजह गुस्से को साथ लाने वाले कारकों का अभाव रही. 2013 में हुए कंफेडरेशन कप के दौरान साओ पाओलो में बस भाड़ों में 10 फीसदी की वृद्धि पर गुस्सा भड़क उठा था. वहां युवा प्रदर्शनकारियों पर सख्त पुलिस कार्रवाई ने देश भर में आक्रोश पैदा किया जिसका नतीजा इस पीढ़ी के सबसे बड़े प्रदर्शन के रूप में सामने आया. यह आंदोलन इसलिए भी ठंडा पड़ गया कि विरोध हिंसक होता जा रहा था. बैंक, अंतराष्ट्रीय उद्यमों और पुलिस पर हमलों के कारण आम लोग आंदोलनकारियों का साथ छोड़ते गए.

अगर विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के खतरे नहीं होते तो कावलकांटेस परिवार इस बार भी प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहा होता. वे कहते हैं, "पिछले बार के प्रदर्शन के बाद से हमारे परिवार में कोई त्रासदी नहीं हुई है, किसी की नौकरी नहीं गई है, किसी की दुर्घटना नहीं हुई, कोई बीमार नहीं हुआ. इसके बावजूद हमारी हालत पिछले साल से खराब है. हमारा खर्चा महंगाई से ज्यादा है और बहुत सामान्य जिंदगी जीने के बावजूद हम किसी तरह महीने का खर्च चला पा रहे हैं."

फिर भी वर्ल्ड कप के दौरान गुस्से बकरार रखना मुश्किल था. कावलकांटेस कहते हैं, "वर्ल्ड कप कार्निवाल की तरह था. एक बार जब वह शुरू हो गया तो लोग उसकी मस्ती में उलझ गए क्योंकि यह जिंदगी की मुश्किलों से ध्यान हटाता है." उनकी बेटी मारिया कहती हैं, "मुझे पता था कि वर्ल्ड कप ब्राजील के लिए क्यों खराब है, लेकिन मैं फिर भी बाजार गई और ब्राजील का जर्सी खरीद कर लाई. मैं अपने को रोक नहीं पाई."

एमजे/ओएसजे (एपी)