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ब्रिक्स शिखर में आर्थिक और सुरक्षा चिंताएं

दया थुस्सु (आईपीएस)५ जुलाई २०१५

रूसी शहर ऊफा में ब्रिक्स देशों के नेताओं की शिखर भेंट में आर्थिक और सुरक्षा संबंधित मुद्दे केंद्र में होंगे. यूरोपीय संघ में ग्रीस संकट के कारण जारी आर्थिक संकट और मध्य पूर्व की स्थिति ने सुरक्षा चिंताएं पैदा कर दी हैं.

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BRICS am Rande des G20-Gipfel in Brisbane 15.11.2014 Dilma Rousseff
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Druzhinin Alexei

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका तेजी से उभरती बड़ी आर्थिक सत्ताएं हैं और उनका सातवां सम्मेलन यूक्रेन और नाटो के पूर्व में प्रसार पर रूस और पश्चिमी देशों के बढ़ते विवाद और चीन की बढ़ती ताकत के साए में हो रहा है. करीब 15 साल पहले गोल्डमैन सैक्स के जिम ओनील ने पहली बार ब्रिक ग्रुप का जिक्र किया था. हालांकि यह ग्रुप 2006 से एक साथ काम करने लगा लेकिन 2009 में पहली बार राष्ट्रीय सम्मेलन की शुरुआत हुई. 2011 में इसमें चीन के आग्रह पर दक्षिण अफ्रीका को भी शामिल कर लिया गया.

ब्रिक्स का उदय पश्चिमी देशों के आर्थिक पतन की शुरुआत के साथ जुड़ा रहा है. इसने उभरते देशों के लिए मौके दिए हैं और चीन तथा भारत जैसे देशों को ग्लोबल प्रशासन में शामिल होने के अवसर भी दिए हैं जिनपर पहले अमेरिका और उसके साथी देशों का वर्चस्व रहा है. अमेरिका ने भी अपनी नई विदेश नीति में एशिया पर जोर देते हुए माना है कि आर्थिक गुरुत्व का केंद्र पूरब की ओर खिसक रहा है. इसके सबूत भी हैं. फॉर्चून 500 की रैंकिंग में ब्राजील, रूस, भारत और चीन की बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संख्या 2005 में 27 से बढ़कर 2015 में 100 से ज्यादा हो गई है.

चीन की टेलिकम्युनिकेशन कंपनी हुआवाई के पास दुनिया के सबसे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय पेटेंट हैं, ब्राजील का पेट्रोब्रास दुनिया की चौथी सबसे बड़ी कंपनी है और टाटा ग्रुप पहली भारतीय कंपनी है जिसका राजस्व 100 अरब डॉलर को पार कर गया है. चीन के पास 2006 से ही दुनिया का सबसे ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडार है, जो 2015 में 3800 अरब डॉलर हो गया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार क्रयशक्ति के आधार पर चीन ने सकल राष्ट्रीय उत्पाद के मामले में अमेरिका को मात दे दी है और वह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है. हाल के सालों में दक्षिण के देशों में प्रभावशाली आर्थिक विकास हुआ है. यूएनडीपी ने कहा है कि 2020 तक चीन, भारत और ब्राजील का साझा आर्थिक उत्पादन अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी और इटली के कुल उत्पादन से ज्यादा हो जाएगा.

ब्रिक्स के देशों के अमेरिका के साथ संबंध एक जैसे नहीं हैं. रूस और चीन अमेरिका विरोधी है, जबकि ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका अमेरिका के अपेक्षाकृत करीबी हैं और भारत गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति बदलने की प्रक्रिया में है. इस संगठन का गठन अमेरिकी वर्चस्व के विकल्प के रूप में किया गया था. यह एकमात्र ऐसा अहम संगठन है जिसमें न तो अमेरिका और न ही जी-7 संगठन का और कोई देश है. फिर भी रूस के अलावा और कोई देश अमेरिका से टकराव के लिए तैयार नहीं है. चीन अमेरिका में सबसे बड़ा निवेशक है तो भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका उसके साथ और अन्य पश्चिमी देशों के साथ लोकतंत्र के सूत्र में बंधे हैं.

इस बार ब्रिक्स की शिखरभेंट शंघाई सहयोग संगठन के राज्याध्यक्षों की बैठक के साथ हो रही है. इससे पहले सिर्फ एक बार दोनों संगठनों की बैठक एक साथ हुई है. 2009 में भी रूस ने ही इसका आयोजन किया था. ब्रिक्स के दो सदस्यों रूस और चीन के अलावा शंघाई सहयोग परिषद में कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. संगठन में 2001 के बाद से कोई विस्तार नहीं हुआ है. भारत इसमें पर्यवेक्षक के रूप में शामिल है.