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ब्रिटेन का बेहद निर्णायक चुनाव

ग्रैहम लूकस/आरआर६ मई २०१५

इस बार आम चुनाव में ब्रिटेन की जनता को कई बड़े चुनाव करने होंगे. उनके चुने हुए विकल्प से ब्रिटेन के आने वाले कई सालों की दिशा तय होनी है. इन निर्णायक चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा, कहना असंभव लग रहा है.

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Großbritannien Wahlkampf 2015 Nicola Sturgeon
तस्वीर: Reuters/R. Cheyne

इन चुनावों की पृष्ठभूमि में झांकने वाला सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि चाहे जनता किसी को भी सरकार बनाने के लिए चुने, नतीजा शायद एक सा ही होगा. जाहिर है कि यूनाइटेड किंगडम के बंट जाने का नतीजा हर हाल में केवल कुछ ही लोगों को पसंद आएगा. मात्र 9 महीने पहले ही स्कॉटलैंड के ऐतिहासिक जनमत संग्रह में जनता ने 45 के मुकाबले 55 फीसदी के समर्थन से यूके का हिस्सा बने रहने का निर्णय लिया था. स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) के इन चुनावों में अपनी सभी संसदीय सीटों को जीतने की उम्मीद जताई जा रही है.

यह भी साफ है कि एसएनपी की बड़ी जीत का अर्थ होगा कि स्कॉटलैंड में एक और जनमत संग्रह होगा, जिसके बाद शायद एक दो साल में स्कॉटलैंड यूके से बाहर होने का फैसला करे. एसएनपी की करिश्माई नेता निकोला स्टर्जियॉन तो इस मकसद को साफ साफ व्यक्त कर ही चुकी हैं और ओपनियन पोल से मिले संकेतों के बाद तो पार्टी की उम्मीदें काफी बढ़ चुकी हैं.

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डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस

एसएनपी को मिल रही बढ़त के पीछे बड़ा कारण यह है कि स्कॉट जनता वेस्टमिंस्टर मॉडल कहे जाने वाले सिस्टम को लेकर आशंकित हैं. उन्हें लगता है कि यह मॉडल उनके हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है और खासतौर पर उत्तर सागर से निकलने वाले तेल की सारी कमाई और वेलफेयर स्टेट में मिलने वाली सुविधाओं का बंटवारा पक्षपातपूर्ण है. पिछले कुछ सालों में हॉलीरुड की क्षेत्रीय संसद में स्कॉटिश राष्ट्रवादियों के सत्ता में आने के बाद से ही स्कॉट जनता की राय ब्रिटेन के बजाए ज्यादा से ज्यादा यूरोप के पक्ष में झुकती गई है.

एसएनपी को बड़ी जीत मिलने का अर्थ होगा कि कैमरन की कंजर्वेटिव या मिलीबैंड की लेबर पार्टी दोनों में से कोई भी वेस्टमिंस्टर में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाएंगे. ऐसे में एक त्रिशंकु संसद ही सबसे संभावित स्थिति लगती है, जो कि कुछ दलों के गठजोड़ से ही बनेगी. एसएनपी और लेबर पार्टी के साथ आने का अर्थ होगा- यूके के टूटने की शर्तें तय करना. दूसरी ओर, वर्तमान गठबंधन को बरकरार रखते हुए कैमरन के नेतृत्व में लिबरल डेमोक्रेट्स और कंजर्वेटिव पार्टी का साथ आना भी बहुत मुश्किल लगता है.

एक दूसरा खतरा यूनाइटेड किंगडम इंडिपेंडेंस पार्टी या यूकिप के रूप में है. 1990 के दशक की शुरूआत में इस पार्टी का जन्म ही यूरोपीय संघ में ब्रिटेन की सदस्यता के विरोध के लिए हुआ था. इन चुनावों के पहले ही देश के बुजुर्गों के बीच खासे लोकप्रिय हो चुके यूकिप नेता निगेल फराज के नेतृत्व में पार्टी को संसद में दाखिल होने का पूरा भरोसा है. यूकिप के आप्रवासन-विरोधी और ईयू-विरोधी रवैये के कारण उन्हें भले ही बहुमत ना मिले लेकिन कम से कम वे डेविड कैमरन की कंजर्वेटिव पार्टी से कई वोट जरूर झटक लेंगे. अगर कैमरन एक अल्पसंख्यक सरकार बना भी लेते हैं तो भी उन्हें यूकिप की मांगों के आगे झुकना पड़ेगा. 2017 में जिसका नतीजा एक और जनमत संग्रह के रूप में दिखेगा जब ब्रिटेन यूरोपीय संघ में अपनी सदस्यता बरकरार रखने को लेकर फैसला लेगा.

इन्हीं सब कारणों से कई टीकाकार इस निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि चाहे ब्रिटिश जनता इस गुरुवार कोई भी चुनाव करे, "यूनाइटेड किंगडम" का अंत तय लग रहा है. इसके अलावा, अगर यूरोप की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अगर यूरोपीय संघ को छोड़ती है तो यह यूरोप के लिए भी बुरी खबर होगी. इससे ब्रिटेन को भी निर्यात में करीब 400 अरब यूरो का नुकसान होगा. पूरे विश्व में यूरोप के राजनीतिक प्रभाव में कमी आएगी लेकिन ब्रिटेन के लिए तो शायद यह ऐतिहासिक आपदा की घड़ी होगी.