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ब्लड कैंसर का दुश्मन 'लिविंग ड्रग'

२३ फ़रवरी २०१४

कैंसर के इलाज के एक नए तरीके की मदद से वयस्कों में ल्यूकेमिया के 88 फीसदी मामलों में सफलता मिली है. इस इलाज में मरीज की खुद की रोग प्रतिरोधक क्षमता का इस्तेमाल होता है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिकी वैज्ञानिकों की ताजा रिसर्च में ये परिणाम सामने आए हैं. इसे इम्यूनोथेरैपी के क्षेत्र में बड़ी सफलता के रूप में देखा जा रहा है. साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन पत्रिका में छपे नतीजों के अनुसार नए परीक्षणों में ब्लड कैंसर के खास प्रकार एडल्ट बी सेल एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया(एएलएल) के 16 मामले शामिल किए गए थे. 2013 में कैंसर के इलाज की दिशा में खास उपलब्धि के रूप में साइंस पत्रिका ने इसे 'लिविंग ड्रग' नाम से संबोधित किया था.

अमेरिका में हर साल एएलएल से करीब 1,400 लोगों की मौत होती है. इस प्रकार के कैंसर का आमतौर पर इलाज संभव है. इसलिए कई मामलों में शरीर में कीमोथेरैपी के प्रति प्रतिरोधकता पैदा हो जाती है और बीमारी फिर लौट आती है. इस शोध में 16 में से 14 मरीज पूरी तरह ठीक हो गए. उनके टी सेल जेनेटिक इंजीनियरिंग से ठीक किए गए ताकि कैंसर को शरीर से मिटाया जा सके. इन मरीजों की औसत आयु पचास वर्ष है. जब इन्हें इस इलाज के लिए लाया गया तो ठीक होने की सारी उम्मीदें छोड़ी जा चुकी थीं. उन पर कीमोथेरैपी या किसी अन्य विधि का असर पड़ना बंद हो गया था.

टी सेल कम करना

इस विधि में मरीज के शरीर से कुछ टी सेल निकाल कर एक खास जीन से उनकी जेनेटिक इंजीनियरिंग इस तरह की गई कि वह कैंसर सेल पर मौजूद सीडी19 प्रोटीन को पहचान कर उस पर असर कर सकें.

टी सेल का काम होता है शरीर को खतरनाक हमलों से बचाना. लेकिन वे कैंसर को बढ़ने से नहीं रोक पाते हैं. रिपोर्ट को तैयार करने वाले मेमोरियल स्लोन केटेरिंग कैंसर सेंटर के रेनियर ब्रेंत्येंस ने बताया, "असल में हम टी सेल को प्रयोगशाला में जीन थेरैपी की मदद से यह सिखाते हैं कि वह कैंसर सेल को पहचान कर उसे कैसे नष्ट करे." ब्रेंत्येंस के अनुसार एक खास तरह के मरीजों पर यह विधि कारगर है.

पिछले साल इस टीम ने इस तरीके से पांच ऐसे मरीजों का इलाज किया था जिनमें इलाज के बाद कैंसर पलट कर वापस आ जाता था. इसके बाद से इस शोध में 60 से 80 और अमेरिकी मरीज शामिल हुए. इलाज के इस तरीके पर यूरोप में भी शोध जारी है.

एसएफ/एएम (एएफपी)

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