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समाज

भागती दौड़ती दावतें और परवान चढ़ती दोस्तियां

अपूर्वा अग्रवाल
४ जुलाई २०१८

कॉलेज के दिनों में भाग-भाग कर आपने भी खाना खाया होगा, लेकिन जब दफ्तरी काम के चलते व्यवस्थित जिंदगी में ऐसा करना पड़े तो थोड़ी हैरानी तो होती है. लेकिन मजा भी आता है. फिर ऐसे ही भाग-भाग कर खाने को कहते हैं "रन एंड डाइन".

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DW Running Dinner
तस्वीर: DW

आजकल ऑफिस इतने बड़े हो गए हैं कि कई बार लोगों को एक दूसरे के बारे में जानने का समय ही नहीं मिलता. कीबोर्ड की ठक-ठक पर घड़ी की आवाजें ऐसे गुम हो जाती हैं कि साथ काम कर रहे लोगों को पता ही नहीं चलता. ना ये पता चलता है कि कब सुबह से शाम हो गई. रोजाना ऐसा ही काम होता है, और दिन, महीने और साल बीत जाते हैं और बगल के कमरों में बैठे लोगों से ठीक से जान-पहचान नहीं हो पाती.

दफ्तर जब डॉयचे वेले का हो तो स्थिति और भी अलग हो जाती है जहां 60 देशों के लोग दिन-रात काम करते हैं. लेकिन एक दूसरे को ठीक से जानने-समझने का मौका कम ही मिलता है. ऐसे में हाल में एक आयोजन में मुझे लगा कि देश चाहे भारत हो या जर्मनी, लोगों की जान-पहचान और दोस्ती खाने-पीने पर जितनी बढ़ती है उतनी शायद ही कही और होती हो. दरअसल पिछले हफ्ते दफ्तर में हुआ "रन एंड डाइन." इसका मतलब है दौड़-दौड़ के खाना. ये एक खेल था लोगों की खाने पर जान पहचान कराने का.

इस खेल में आप या तो स्टार्टर्स बना सकते थे, या मेनकोर्स या भोजन के बाद रात में खाया जाने वाला मीठा. मैंने इसमें मेनकोर्स बनाया, लेकिन मुझे किसी अन्य मेजबान के घर स्टार्टर्स और डेसर्ट खाने का मौका दिया गया. मेरी तीन लोगों की टीम थी. मैं जिसके घर पहुंची उसके घर मेरी टीम के अलावा तीन लोग और आए थे. खाने के लिए हमारे पास बस 45 मिनट ही थे, क्योंकि इसके बाद हमें भी हमारे घर आने वालों पांच मेहमानों की मेजबानी करनी थी. उसके बाद मिठाई खाने भी भागना था. मेरे घर आए मेहमान डॉयचे वेले के तो थे ही, साथ में इसमें एक टीम 1+1 थी. इसलिए चार डॉयचे वेले के थे और एक जर्मन पुलिस का जवान जो अपनी पत्नी के साथ खाने पर आया था. दुनिया के सबसे अच्छे रेस्तरां

1+1 का मतलब था कोई पत्नी अपने पति के साथ मिलकर, तो वहीं पति अपनी पत्नी के साथ मिलकर टीम बना सकते थे. ऐसी करीब 20 टीमें बनी जो दौड़-भाग कर खाना खाते रहे, लोगों से मिलते रहे, और बातें होती रहीं. खेल खत्म होने के बाद जब सारी टीमें शहर के एक कैफे में मिली तो ऐसे चेहरों को भी देखा जिन्हें देखकर कई बार पहले सोचा था कि ये डॉयचे वेले में नहीं कहीं और काम करते हैं. पहली बार मेरी अफ्रीकी मिठाइयों से पहचान बढ़ी तो हमने अल्बानिया से जर्मनी आए प्रवासियों पर भी खुलकर चर्चा की. काम के बाद ये सब करना थोड़ा थकाऊ तो होता है लेकिन अगर बात करते-करते किसी जायकेदार शाम के गुजरने का पता नहीं चले तो मान ही लेना चाहिए कि आपको मजा आया.