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भारत और जापान के बीच हुई असैन्य परमाणु संधि

११ नवम्बर २०१६

छह बरसों से जारी बातचीत के बाद भारत और जापान ने असैन्य परमाणु ऊर्जा संधि पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. जापान की यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री ने जापान से भारत को परमाणु ईंधन, उपकरण और तकनीक की आपूर्ति सुनिश्चित कर ली है.

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Japan Treffen der Premierminister Indiens und Japans - Narendra Modi & Shinzo Abe
तस्वीर: Reuters/F. Robichon

दुनिया में परमाणु हमला झेल चुके इकलौते देश जापान ने पहली बार एनपीटी पर हस्ताक्षर ना करने वाले किसी देश के साथ ऐसी संधि की है. तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. तेज आर्थिक विकास के लिए भारत परमाणु उर्जा की प्रचुर आपूर्ति चाहता है. ऐसे में जापान के साथ हुआ यह परमाणु ऊर्जा समझौता काफी महत्वपूर्ण है.

संधि के अनुसार तमाम परमाणु आपूर्तियों का इस्तेमाल केवल असैन्य और शांतिपूर्ण मकसदों के लिए किया जाना है. इस बारे में दोनों देशों के बीच एक अतिरिक्त दस्तावेज पर भी हस्ताक्षर हुए हैं जिसमें साफ लिखा है कि यदि भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो जापान इस समझौते को अपनी तरफ से रद्द कर सकता है. सन 1998 के बाद से भारत ने खुद ही परमाणु परीक्षण पर रोक लगाई हुई है. 

भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार सुबह जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे से मुलाकात की. उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि एनपीटी भेदभावपूर्ण है और भारत को क्षेत्र के परमाणु-शक्ति संपन्न देशों चीन और पाकिस्तान को लेकर कुछ चिंताएं हैं.

अमेरिका स्थित वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक के साथ भारत की बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है. इसका स्वामित्व जापानी कंपनी तोशीबा के पास है. यह कंपनी दक्षिण भारत में छह परमाणु संयंत्र स्थापित करने वाली है. ये नए परमाणु संयत्र भारत की परमाणु क्षमता को 2032 तक दस गुना तक बढ़ाने की सरकारी योजना का हिस्सा हैं.

तोशीबा और मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज जैसी जापानी परमाणु संयंत्र निर्माता कंपनियों के लिए अपना कारोबार जापान से बाहर के देशों में फैलाना जरूरी है. 2011 में हुए फुकुशिमा परमाणु हादसे के कारण घरेलू बाजार में नए ऐसे संयंत्रों की मांग बहुत कम है.

भारत 2008 में अमेरिका के साथ ऐसा ही असैन्य परमाणु समझौता कर चुका है. कई दशकों तक परमाणु तकनीक के मामले में विश्व मंच पर अलग थलग पड़ने के बाद भारत के लिए वह एक महत्वपूर्ण बिंदु था. प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि जापान और भारत के प्रगाढ़ होते संबंधों से एशियाई और विश्व स्तर पर क्षेत्रीय शक्तियों के बीच संतुलन स्थापित करने में मदद मिलेगी.

आरपी/एके (पीटीआई)