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भारत की सांख्यिकीय प्रणाली पर क्यों उठे हैं सवाल

चारु कार्तिकेय
७ जनवरी २०२०

सरकारी आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने के लिए बनी एक नई समिति से जेनएयू के एक अर्थशास्त्री ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा है कि मौजूदा हालात में समिति सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता बहाल नहीं कर पाएगी.

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Indien Wirtschaft l Caronlites - Geschäftsführer Som Narayan
तस्वीर: DW/S. Phalnikar

नई दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रों और शिक्षकों पर हमले के एक ही दिन बाद छह जनवरी को विश्वविद्यालय के जाने माने अध्यापक प्रोफेसर सीपी चंद्रशेखर ने एक महत्वपूर्ण सरकारी समिति से इस्तीफा दे दिया. अर्थशास्त्री प्रोनब सेन की अध्यक्षता में आर्थिक आंकड़ों की स्थायी समिति का गठन केंद्र सरकार ने सरकारी आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने के लिए दिसंबर 2019 में किया था. चंद्रशेखर ने समिति की पहली बैठक से ठीक पहले इस्तीफा दे दिया. खबर है कि उन्होंने जेएनयू में मौजूदा हालात की वजह से बैठक में शामिल होने में असमर्थता जताई. उन्होंने अपने इस्तीफे में यह भी लिखा कि उन्हें नहीं लगता कि मौजूदा हालात में समिति सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता बहाल कर पाएगी.

जेएनयू पर हमले के अलावा उनके इस्तीफे ने उन्हीं सवालों को फिर से खड़ा कर दिया है जिनकी छाया में इस समिति का गठन हुआ था. आंकड़ों के प्रति मोदी सरकार के पूरे दृष्टिकोण की ही 2015 से आलोचना हो रही है. 2015 में मोदी सरकार ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का हिसाब लगाने के लिए आधार वर्ष को 2004-05 से बदल कर 2011-12 कर दिया था. ऐसा करने से उनकी पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान का जीडीपी का अनुमान गिर गया. 2004-05 के आधार वर्ष वाली प्रणाली के हिसाब से 2010-11 में भारतीय अर्थव्यवस्था ने 10.26 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की थी, जो कि अब तक की सबसे ऊंची दर थी, वहीं नई प्रणाली के तहत यह विकास दर गिर कर 8.5 प्रतिशत पर आ गई.

जीडीपी अनुमान पर क्यों उठे सवाल

पिछली जीडीपी सीरीज भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा कराए गए कंपनियों के सर्वे पर बनती थी, जब कि नई सीरीज केंद्रीय कॉर्पोरेट कार्य मंत्रालय के पंजीकृत कंपनियों के "एमसीए-21" डाटाबेस पर आधारित थी. डाटाबेस का कभी कोई परीक्षण नहीं हुआ और अर्थशास्त्रियों ने शुरू से ही इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया था. मई 2019 में बिजनेस न्यूजपेपर, द मिंट की एक रिपोर्ट ने दावा किया कि एनएसएसओ की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है कि "एमसीए-21" डाटाबेस में शामिल कंपनियों में से एक तिहाई से भी ज्यादा कंपनियों का या तो पता नहीं लग पा रहा है या उन्हें गलत तरीके से वर्गीकृत किया गया है. 

Indien Neu-Delhi Premierminister Narendra Modi trifft Nobelpreisträger Abhijit Banerjee
तस्वीर: IANS

इतना ही नहीं, जीडीपी की नई प्रणाली तय करने के बाद मोदी सरकार को खुद अपने कार्यकाल में हुई विकास दर को बढ़ा चढ़ा कर दिखाने में मदद मिली. जून 2019 में मोदी सरकार के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रकाशित एक शोध पत्र में कहा कि 2011-12 और 2016-17 के बीच भारत की आर्थिक विकास दर को लगभग 2.5 प्रतिशत ज्यादा आंका गया. उनके अनुसार, इस अवधि की विकास दर लगभग सात प्रतिशत के आधिकारिक अनुमान की जगह 4.5 प्रतिशत के आस पास होनी चाहिए. इसके अलावा सरकार पर यह भी आरोप है कि जब भी एनएसएसओ जैसी सरकारी संस्थाओं के सर्वेक्षणों में ऐसी जानकारी सामने आई जो सरकार को शर्मिंदा कर सकती थी, तब सरकार ने उस रिपोर्ट को जारी ही नहीं किया.

संस्थानों की विश्वसनीयता

जनवरी 2019 में बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने दावा किया था कि एनएसएसओ की एक अप्रकाशित रिपोर्ट से पता चला है कि 2017-18 में भारत में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ऊंचे स्तर पर थी. माना जाता है कि इस रिपोर्ट को दबा कर रखने की ही वजह से राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहनन और गैर सरकारी सदस्य जेवी मीनाक्षी ने आयोग से इस्तीफा दे दिया था. नवंबर 2019 में सरकार ने घोषणा की थी कि वह उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण 2017-18 को भी प्रकाशित नहीं करेगी. सरकार का कहना था कि रिपोर्ट की डाटा गुणवत्ता ठीक नहीं है. बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने इस रिपोर्ट को भी हासिल कर लिया और खबर छापी कि रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017-18 में देश में चार दशक में पहली बार उपभोक्ता खर्च गिरा है.

इसके पहले मार्च 2019 में जीडीपी और बेरोजगारी आंकड़ों से संबंधित विवाद की पृष्ठभूमि में दुनिया भर के 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने एक खुला पत्र जारी किया था जिसमें उन्होंने देश में सांख्यिकीय आंकड़ों को प्रभावित करने के लिए हो रहे राजनीतिक हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त की. इस पत्र में उन्होंने सांख्यिकीय संगठनों की संस्थागत स्वतंत्रता लौटाए जाने की भी अपील की थी. इन 108 अर्थशास्त्रियों में प्रोफेसर अभिजीत बनर्जी भी थे, जिन्होंने बाद में अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार जीता.

Indien Mahindra Scorpio
तस्वीर: imago/Indiapicture

आंकड़ों की गफलत

चंद्रशेखर का इस्तीफा यह दिखाता है कि भारत की सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता को लेकर चिंताएं अभी भी वैसी की वैसी ही हैं. अर्थशास्त्री आमिर उल्लाह खान कहते हैं कि सरकार की सांख्यिकीय प्रणाली की विश्वसनीयता अपने सबसे निचले स्तर पर गिर चुकी है और इस बारे में कोई शक नहीं है. वो कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि विश्वसनीयता बहाल नहीं की जा सकती. हमारी सांख्यिकीय प्रणाली अभी भी इतनी मजबूत है कि अगर किसी भी जानकार अर्थशास्त्री को स्वतंत्रता दे दी जाये तो वो डाटा को साफ कर असली तस्वीर दिखा देगा. लेकिन समस्या यही है कि सरकार के डर से किसी में वो हिम्मत ही नहीं है." 

इसके दुष्परिणामों के बारे में बताते हुए खान कहते हैं कि डाटा के गलत होने से हर व्यापारी की व्यापार योजना गलत साबित हो जाती है. वो कहते हैं, "अगर सरकार ने कह दिया कि 6.5 प्रतिशत के दर से विकास होगा, तो उसी के आधार पर हिसाब लगा कर गाड़ियां बनाने वाली कंपनी मान लो 8,000 गाड़ियां बनाती है, पर बिकती हैं सिर्फ 2,000. तो गलत आंकड़ा देने का नतीजा हुआ कि आपके पास बड़ी संख्या में माल पड़ा रह जाता है जो बिका ही नहीं. और इसका मूल्य किसी भी व्यापार को मार देता है."