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भारत के कई हिस्सों में महिला जन्म दर अत्यंत कम

फैसल फरीद
२३ जून २०१७

धनी भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर हो रही है, सेल फोन, स्कूली शिक्षा और बैंक अकाउंट. लेकिन दूसरे इलाकों में महिलाओं के विकास के संकेत नहीं हैं. बड़े प्रांतों में महिलाओं का जन्मदर गिरना जारी है.

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Indien Kinderarbeit Mädchen arbeitet am Nehru Stadion in Neu Delhi
तस्वीर: Getty Images/D. Berehulak

लड़कियां भले हर समाज के हर क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ रही हो लेकिन भारत में लडकियों की घटती संख्या चिंता का विषय बन गयी है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक लडकियों की संख्या में थोड़ी बढोत्तरी हुई है लेकिन अभी भी स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती. सर्वे में लडकियों की संख्या 919 प्रति 1000 पुरुष है जो पिछले पांच साल में हुए जन्म के आंकड़ों पर आधारित हैं. ये संख्या 2005-06 के सर्वे में 914 लड़कियां प्रति हजार लड़के थी. यानि दस साल में इस संख्या में मात्र पांच का इजाफा हुआ.

भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाली सूबे उत्तर प्रदेश में स्थिति अभी भी चिंताजनक है. पिछले दो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में लड़कियों की संख्या घटती जा रही है और राष्ट्रीय औसत से भी कम हो गयी है. ये संख्या अब 922 (2005-06) से घट कर 903 (2015-16) पर पहुंच गयी है. इसीलिए सरकार अब भ्रूण की पहचान बताने वाले अल्ट्रासाउंड सेंटर और नर्सिंग होम पर शिकंजा कसने की तैयारी कर रही है.

इन सेंटरों में भ्रूण की पहचान किये जाने से संबंधित सूचना देने वाले को पुरस्कृत किया जायेगा. ये प्रोत्साहन राशि दो लाख रुपये तक हो सकती है. इस योजना का खाका तैयार हो चुका है और सूचना देने वाले का नाम भी गुप्त रखा जायेगा. सरकार की मंशा है की इस 'मुखबिर' योजना के तहत ऐसे सेंटरों की पहचान हो सकेगी और उन्हें पकड़ा जा सकेगा.

उत्तर प्रदेश सरकार अपने स्तर पर भ्रूण परीक्षण को रोकने के लिए एक अलग सेल के गठन पर भी विचार कर रही है. इस सेल का काम होगा संदिग्ध सेंटरों पर छापा मारना और अपराधियों को पकड़ना. सूचनाओं पर तुरंत कार्रवाई भी होगी. इसके अलावा सरकारी अधिकारी छदम ऑपरेशन करने पर भी विचार कर रही है जिसमें किसी भी सेंटर पर जा कर भ्रूण परीक्षण करवाने के लिए जाल बिछाया जायेगा और फिर अपराधियों को रंगे हाथ पकड़ा जायेगा.

उत्तर प्रदेश की सरकार को भ्रूण परीक्षण के मुद्दे पर तकनीकी सहयोग देने वाली वात्सल्य संस्था का मानना है कि अभी भी भ्रूण परीक्षण होता है, तभी लिंगानुपात घटता जा रहा है. ऐसा लोगों में फैली धारणा के कारण हो रहा है. वात्सल्य संस्था के अंजनी कुमार सिंह कहते हैं, "उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में प्रति हजार मात्र 870 लड़कियां हैं. लखनऊ विकसित है और लोग भी पढ़े लिखे हैं. इसलिए कार्रवाई होना बहुत जरूरी है." उनका मानना है कि  इस योजना से लोगों और सेंटर में डर बनेगा और इस कुप्रथा पर लगाम लगेगी.

सच्चाई ये है कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में लडकियों की संख्या बहुत घट गयी है. जनपद जालौन में तो प्रति हजार लडकों पर मात्र 653 लड़कियां हैं. अन्य जनपद जहां ये संख्या बेहद कम हैं वो हैं, बागपत 763, बुलंदशहर 886, बिजनौर 800, लखनऊ 870, इटावा 813, हरदोई 803, झांसी 815, और मेरठ 858 लड़कियां. लडकियों की गिरती संख्या पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चिंता जता चुके हैं.

आमतौर पर मानसिकता में बदलाव की प्रक्रिया बहुत धीमी है. लोग अभी भी बेटियों पर बेटों को तरजीह देते हैं. मुख्य धारणा ये है कि लडको से वंश चलता है, जबकि लड़कियों को पराया धन समझा जाता है जो शादी के बाद दूसरे घर चली जाती हैं. लड़की का मतलब परिवारों के लिए अतिरिक्त खर्च होता है. समाज में लडकियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों की वजह से लोग बेटी के बदले बेटा चाहते हैं. तकीनीकी विकास से गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता चल जाता है और बेटी होने पर गर्भपात करा दिया जाता है.

हालांकि उत्तर प्रदेश में भ्रूण परीक्षण करने वाले सेंटरों के खिलाफ कार्रवाई के लिए प्री कंसेप्शन एंड प्री नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स एक्ट 1994 मौजूद है. इस कानून के मुताबिक हर सेंटर पर अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में साफ साफ लिखा बोर्ड लगाना जरूरी है कि वहां लिंग परीक्षण नहीं होता. ये कानूनन अपराध है. इस कानून के तहत पांच साल की कैद और एक लाख रुपये का जुर्माना भी हो सकता है.