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भारत के मुसलमानों को 'नहीं चाहिए हज सब्सिडी'

फैसल फरीद
२० जनवरी २०१७

भारत सरकार ने पिछले दिनों एक पैनल बनाया जो पता लगाएगा कि हज सब्सिडी देने की जरूरत है या नहीं. दिलचस्प बात यह है कि बहुत से मुसलमान भी हज सब्सिडी के हक में नहीं हैं.

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Bildergalerie Muslimisches Opferfest Eid al Adha 2012
तस्वीर: Reuters

हज करना हर मुसलमान की ख्वाहिश होती है. हज इस्लाम धर्म के पांच आयामों में से एक है. भारत में आमतौर से मुसलमान जीवन भर बचत कर एक बार हज यात्रा जरूर करना चाहता है.

हज सब्सिडी पर जब तब सवाल उठते रहे हैं. जहां बहुत से लोग हज सब्सिडी को खत्म करना चाहते हैं वहीं मुसलमान भी हज सब्सिडी के पक्ष में नजर नहीं आ रहे हैं. हिन्दू संगठन हज सब्सिडी को तुष्टिकरण की नीति का परिचायक मानते हैं वहीं मुसलमान इसको उनके कंधे पर रख कर बन्दूक चलाने वाली स्थिति कहते हैं क्योंकि वो भी हज सब्सिडी लेने के इच्छुक नहीं दिखते.

हैदराबाद के सांसद और आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने खुले तौर पर एलान कर दिया है कि मुसलमानों को हज सब्सिडी देना बंद कर दिया जाए और उस धनराशि को मुस्लिम लड़कियों की पढाई पर खर्च किया जाए. शायद पहली बार हिन्दू नेता भी इस मुद्दे पर ओवैसी के पक्ष में खड़े हैं. केंद्र सरकार हज सब्सिडी की समीक्षा करने के लिए अब समिति बनाने को तैयार हो गई है.

देखिए हज में लोग क्या क्या करते हैं

जीवन में एक बार हज करना प्रत्येक हैसियत वाले मुसलमान पर फर्ज हैं. इस बार अभी तक लखनऊ में 19000 फॉर्म स्टेट हज कमेटी से बंट चुके हैं जबकि आखिरी तारीख 24 जनवरी हैं. सऊदी अरब सरकार भारत को मुसलमानों की आबादी के अनुपात में एक निर्धारित कोटा देती हैं जिसे केंद्र सरकार राज्य सरकारों को आवंटित करती हैं. आमतौर पर ये काम सेंट्रल हज कमेटी, मुंबई के जरिए संबंधित राज्य की स्टेट हज कमेटी करती है.

भारत में हज सब्सिडी लगभग 650 करोड़ रुपये है. ये आमतौर पर सऊदी अरब जाने के लिए हवाई किराये के रूप में दी जाती हैं. मुसलमानों का यही मानना है की सब्सिडी एयरलाइन्स को दी जा रही हैं न की उनको.  हज यात्री को दो केटेगरी में यात्रा करने का अवसर मिलता है. पहली ग्रीन केटेगरी और दूसरी अजीजिया केटेगरी. पिछले साल (2016) में हज यात्रा का खर्चा कुछ इस प्रकार था.

ग्रीन केटेगरी

मक्का में रुकने का खर्च 81,000 रुपये

मदीना में रुकने का खर्च 9,000 रुपये

एयरलाइन्स का टिकट 45,000 रुपये

अन्य खर्च 76,320 रुपये

कुल खर्च 21,1320 रुपये

अजीजिया केटेगरी

मक्का में रुकने का खर्च 47,340 रुपये

मदीना में रुकने का खर्च 9,000 रुपये

एयरलाइन्स का टिकट 45,000 रुपये

अन्य खर्च 76,320 रुपये

कुल खर्च 17,7660 रुपये

अब सारा खेल एयरलाइन्स के टिकट का है, जिसके लिए हज यात्रियों से 45,000 रुपये लिए जाते हैं उसका हैं. सरकारी तौर पर एयरलाइन का आने जाने का टिकट 70,340 रुपये का बताया जाता हैं जिसमे यात्री को केवल 45000 देने होते हैं बाकी का सब्सिडी के रूप में सरकार सीधे एयरलाइन्स को देती हैं.

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ओवैसी ने कहा, "देखिये सरकार सिर्फ एयर इंडिया या फिर सऊदी एयरलाइन्स के ज़रिये ही हज यात्रियों को भेजती हैं. ये किराया बहुत महंगा हैं. सीधे ग्लोबल टेंडर करना चाहिए और अच्छी एयरलाइन्स भी इससे कम पर ले जाने को तैयार हो जाएंगी."

वहीं लखनऊ की ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली का मानना है कि ग्लोबल टेंडर के ज़रिए किराया लगभग 60 फीसदी कम हो जाएगा. हज यात्रियों को भी सब्सिडी के नाम पर बदनाम नहीं किया जा सकता.

लखनऊ के एक ट्रेवल और टिकटिंग एजेंट शोइब खान कहते हैं कि अनुसार मुंबई या दिल्ली से जेद्दाह का हवाई टिकट लगभग 18,000 का होता हैं और अगर दो महीने पहले टिकट कराया जाए तो यही टिकट आने जाने का मिला कर 25,000-28,000 रुपये तक में मिल जाएगा.  ज़ाहिर हैं फिर किसी सब्सिडी की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी.

ओवैसी ने कहा, "यही बात मैं पिछले 11 साल से उठा रहा हूँ. पिछले साल तो तुर्किश एयरलाइन्स के जहाज़ से लोग गए थे क्योंकि उनको काम सबलेट कर दिया था. इसका मतलब बीच में अपना हिस्सा रखा गया. ग्लोबल टेंडर से इस सब चीज़ से निजात मिलेगी और मुसलमानों के ऊपर एहसान भी हट जाएगा."

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