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भारत के 58 फीसदी बच्चों में है खून की कमी

१५ मार्च २०१७

ताजा हेल्थ सर्वे दिखाता है कि पांच साल से नीचे के 58 फीसदी से अधिक भारतीय बच्चों में खून की कमी हैं. अवरुद्ध विकास भी भारत के बच्चों में एक बड़ी समस्या बनी हुई है.

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Indien Kinderarmut
तस्वीर: picture-alliance/AP Images

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के आंकड़े दिखाते हैं कि भारत के सात करोड़ यानी 58 फीसदी से भी अधिक बच्चे एनीमिया के शिकार हैं. एनीमिक अवस्था उसे कहते हैं जब खून में हीमोग्लोबिन का स्तर औसत से कम हो. ऐसी अवस्था में खून में ऑक्सीजन कम घुलता है और पर्याप्त ऑक्सीजन ना मिलने के कारण बच्चे जल्दी थक जाते हैं. हीमोग्लोबिन की कमी से बच्चों को कई तरह के संक्रमण भी घेर लेते हैं और इससे उनके दिमाग के विकास पर भी असर पड़ता है.

सर्वे में पता चला कि इन सात करोड़ एनीमिक बच्चों में से पांच करोड़ में शारीरिक विकास भी अवरूद्ध है. इनमें से कई का वजन उनकी लंबाई के अनुपात में नहीं था तो कई की उम्र के हिसाब से लंबाई और वजन कम रह गया था.

बाल स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से भारतीय बच्चों की सेहत में काफी सुधार हुआ है. दस साल पहले कराये गये पिछले हेल्थ सर्वे 2005-06 में बच्चों में गंभीर कुपोषण पाया गया था. ज्यादातर मामलों की वजह गरीबी थी. यूनीसेफ की पोषण विशेषज्ञ गायत्री सिंह ने बताया, "कई मामलों में सुधार है, जैसे एनीमिया जो कि पिछले सर्वे में 69.4 प्रतिशत से काफी कम हुआ है. लेकिन छह महीने से ज्यादा उम्र के बच्चों को दूध के अलावा अन्य आहार देने में अब भी ज्यादा सुधार नहीं आया है."

खाने की क्वालिटी में कमी, सफाई में कमी और साफ सुथरी आदतें सीखने में भारत के बच्चे काफी पीछे पाये गए हैं. भारतीय बच्चों में पोषण का हाल दुनिया के सबसे बुरे देशों में से एक है. ग्लोबल हंगर इंडेक्स को देखें तो भुखमरी में अभी भी भारत 118 विकासशील देशों में 97वें नंबर पर है.

भारत में स्वास्थ्य के मद पर देश की कुल जीडीपी का एक फीसदी से कुछ अधिक ही खर्च होता है. सेहत पर विश्व भर के देशों के खर्च का औसत छह फीसदी के आसपास है. पिछले सर्वे से तुलना करें तो ज्यादा बच्चे इम्युनाइजेशन कवरेज के दायरे में आये हैं और महिलाओं के सशक्तिकरण से बच्चों की सेहत में भी सुधार आया है.

आरपी/एके (डीपीए)