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भारत को तत्काल कोई डर नहीं

१ अक्टूबर २०१३

भारत की अर्थव्यवस्था मुश्किल से जूझ रही है. ऐसे में अमेरिकी संसद में बजट पर गतिरोध का उस पर असर हो सकता है. अर्थशास्त्री राजीव कुमार का कहना है कि तत्काल डर की कोई बात नहीं है. उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

अमेरिकी सरकार का कामकाज बंद होने के भारत के लिए क्या मायने हैं?

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते अमेरिका में कुछ भी होता है तो उसका असर दुनिया के बाकी देशों पर पड़ना लाजमी है. सबसे बड़ा असर यह होगा कि जो हमारे यहां के निर्यात हैं और जिनमें सरकारी एजेंसियां शामिल होती हैं वो कम हो जाएंगे, उसका सीधा असर होगा. इसके साथ ही वहां की सरकारी अर्थव्यवस्था अस्त व्यस्त होने के जो नतीजे होंगे उनका असर भी हमारी अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है, जैसे कि रक्षा खरीदारी या जो हमारे और दूसरे ठेके हैं उन पर भी असर पड़ेगा. पर यह समझना होगा कि हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था अमेरिका पर बहुत ज्यादा निर्भर नहीं है. तो ऐसी स्थिति में अमेरिकी सरकार के बंद होने का असर लैटिन अमेरिका या कैरेबियाई देशों पर जितना होगा उतना हमारे यहां नहीं.

अभी रुपये की हालत बहुत खराब चल रही है, वह लगातार नीचे जा रहा था और पिछले दिनों उसमें थोड़ा सुधार होता दिखा है. तो क्या विनिमय दर पर कोई असर होगा?

मुझे ऐसा नहीं लगता कि मौजूदा स्थिति में रुपया कमजोर होगा बल्कि, डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत भी हो सकता है क्योंकि सरकारी कामकाज बंद होने से डॉलर पर तो खराब ही असर होगा. संपत्ति डॉलर में रखने वाले लोगों को थोड़ी अनिश्चितता होगी. हालांकि मुझे नहीं लगता कि सरकार के बंद होने का डॉलर के एक्सचेंज पर कोई खास असर होगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं चल रही और सरकार भी थोड़ी घबराई सी दिख रही है, विकास के आंकड़े निराश करने वाले हैं. ऐसी हालत में पूरी अर्थव्यवस्था पर लंबे समय के लिए भी क्या कोई असर हो सकता है?

पहले तो यह उम्मीद करनी चाहिए कि अमेरिकी सरकार के कामकाज का बंद होना ज्यादा दिन नहीं चलेगा क्योंकि अगर यह ज्यादा दिन चला तो पूरे विश्व की वित्तीय राजधानी होने के कारण फिर हमारे बैंकों और दूसरी बहुत सी चीजों पर असर पड़ेगा. यह अव्यवस्था पूरे विश्व के लिेए मुश्किल खड़ी कर सकती है. मगर हमारी अर्थव्यवस्था का जो सुधार कार्यक्रम हैं, या फिर अमेरिकी निर्यात और निवेश को बढ़ाने के लिए सुधार के जिन कदमों के लिए दबाव बनाया जा रहा था उसमें कमी आएगी. क्योंकि फिलहाल उनका ध्यान अपने यहां की अव्यवस्था को सुधारने में ही रहेगा. मेरी निजी राय में यह दबाव बना रहे तो अच्छा है क्योंकि इसी बहाने कुछ सुधार हो जाएंगे. मगर हमारे यहां नीति बनाने वाले जो कुछ लोग हैं वो राहत की सांस ले सकते हैं कि कुछ समय के लिए उन पर दबाव कम होगा.

भारत की कोई रक्षा खरीद या करार है जिसमें इस वजह से देरी होगी या कोई और बाधा पड़ेगी.

ऐसा कोई बड़ा सौदा तो नहीं है क्योंकि लड़ाकू विमानों वाला जो करार होना था वो तो फ्रांस के पास चला गया. हां बड़े मालवाहक जहाज सी-140 का एक करार होना है. इसमें करीब 7-8 अरब डॉलर का निर्यात अमेरिका से होना था इसमें थोड़ी देरी हो सकती है.

मोटे तौर पर कह सकते हैं कि तत्काल डरने जैसी कोई बात नहीं है?

फिलहाल डर की कोई बात नहीं क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था काफी आत्मनिर्भर है और अमेरिका की अर्थव्यवस्था के साथ इसका ताना बाना बहुत गहरा नहीं है. पर यह जरूर है कि अगर अमेरिका की स्थिति लंबी चली तो फिर भारत ही नहीं पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में इसकी वजह से भूचाल आ सकता है.

इंटरव्यूः निखिल रंजन

संपादनः महेश झा

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