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भारत, चीन के चलते कार्बन कटौती बेअसर

३ जुलाई २०१०

दुनिया के बड़े औद्योगिक देशों को राहत देते हुए कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी के लिए एक नई रिपोर्ट में भारत और चीन को जिम्मेदार ठहराया गया है. अमीर देशों की ओर से हुई कटौती भारत और चीन में बढ़ोत्तरी की वजह से 'बेअसर' हुई.

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तस्वीर: AP

नीदरलैंड्स में पर्यावरण मामलों पर काम करने वाली संस्था पीबीएल की ओर से जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2009 में कार्बन उत्सर्जन के स्तर में कोई गिरावट देखने को नहीं मिली. दुनिया में फैले वित्तीय संकट की वजह से कई देशों में विकास का पहिया धीरे घूमा लेकिन कार्बन उत्सर्जन के स्तर पर उसका खास फर्क नहीं पड़ा. पीबीएल ने ही 2006 में बताया था कि चीन ने कार्बन उत्सर्जन के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.

2009 के लिए भी पीबीएल ने चीन और भारत को कटघरे में खड़ा किया है. रिपोर्ट में कहा गया है, "भारत और चीन जैसे देशों में तेजी से कार्बन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ी है जिससे अन्य विकसित देशों की ओर से हुई कटौती बेअसर हो गई है." इसके बावजूद अमीर देशों को इस रिपोर्ट से राहत जरूर मिलेगी क्योंकि 1992 के बाद यह पहली बार है जब ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का स्तर 2009 में स्थिर दिखाई दिया है.

Smog Umweltverschmutzung in China
तस्वीर: AP

पीबीएल की रिपोर्ट के मुताबिक औद्योगिक देशों में जीवाश्म ईंधन से होने वाले उत्सर्जन में सात फीसदी की कटौती आई है. लेकिन भारत और चीन में यह मात्रा नौ फीसदी और छह फीसदी बढ़ी है. रिपोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के उस अनुमान को गलत साबित किया है जिसमें कहा गया था कि 2009 में उत्सर्जन में 2.6 फीसदी की कटौती आएगी जो पिछले 40 सालों में सबसे ज्यादा होगी.

कई देशों में वित्तीय संकट की वजह से उत्पादन में कमी आई है जिससे वहां उत्सर्जन का स्तर कम हुआ है लेकिन वित्तीय हालात सुधरते ही वहां उत्सर्जन फिर बढ़ सकता है. भारत और चीन कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय कर चुके हैं. चीन ने 2020 तक कार्बन उत्सर्जन में 40 फीसदी तक की कटौती की बात कही है तो भारत ने 2020 तक उत्सर्जन में 20 से 25 प्रतिशत की कटौती का वादा किया है जो 2005 के स्तर से मापा जाएगा.

रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि चीन और भारत जैसे देशों में भले ही कार्बन उत्सर्जन अन्य देशों की तुलना में बढ़ रहा हो लेकिन प्रति व्यक्ति उत्सर्जन का स्तर अमीर देशों से अब भी कम ही है.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ओ सिंह