1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

क्या मलेशिया की तरह तुर्की भी भारत के निशाने पर है?

चारु कार्तिकेय
२० जनवरी २०२०

भारत सरकार की नीतियों की आलोचना करने के लिए मलेशिया के खिलाफ अनौपचारिक व्यापारिक प्रतिबंध लगाने के बाद क्या भारत तुर्की के खिलाफ भी ऐसे ही कदम उठा सकता है?

https://p.dw.com/p/3WUe2
Türkei Istanbul Rede Erdogan
तस्वीर: Getty Images/AFP/O. Kose

बीते कुछ दिनों से कूटनीति की दुनिया में अटकलें लग रही हैं कि भारत के कुछ कदमों के खिलाफ बोलने वाले मलेशिया और तुर्की के खिलाफ सरकार ने व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए हैं. भारत सरकार ने अभी तक औपचारिक रूप से यह माना नहीं है, लेकिन कथित कदमों का ठोस असर मलेशिया पर साफ दिख रहा है. मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने अपनी आलोचना वापस तो नहीं ली लेकिन उन्होंने भी इन अनौपचारिक प्रतिबंधों के लागू होने और उनकी वजह से मलेशिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहे असर को स्वीकारा है.

क्या इसी तरह तुर्की भी भारत के निशाने पर है? तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्य्प एर्दोवान ने पिछले साल सितंबर में संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने 80 लाख कश्मीरियों की दुर्दशा को नजरअंदाज कर दिया है. यह भारत सरकार की तरफ से कश्मीर में उठाए गए कदमों की तीखी आलोचना थी और तब से भारत एर्दोवान से नाराज है. पिछले दिनों खबर आई थी कि भारत तुर्की से तेल और इस्पात के उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगाने की योजना बना रहा है. लेकिन असलियत यह है कि भारत तुर्की से जितनी चीजें खरीदता है, उससे कहीं ज्यादा अपनी चीजें तुर्की को बेचता है.

2018 में दोनों देशों के बीच लगभग आठ अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जिसमें भारत ने करीब तीन अरब डॉलर का सामान तुर्की से खरीदा और करीब पांच अरब डॉलर का सामान बेचा. जाहिर है व्यापार की दृष्टि से तुर्की के खिलाफ कदम उठाने की भारत के पास ज्यादा गुंजाइश नहीं है. कुछ और कदम भारत पहले ही उठा चुका है. अक्तूबर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार द्विपक्षीय दौरे पर तुर्की जाने वाले थे, लेकिन उन्होंने वो दौरा रद्द कर दिया.

ये भी पढ़िए: कितना बदल गया तुर्की

जानकारों का कहना है कि भारत ने सरकारी कंपनी हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड और तुर्की की कंपनी आनादोलू शिपयार्ड के बीच जहाज बनाने की 2.3 अरब डॉलर की एक परियोजना पर हो रही बातचीत को रद्द कर दिया था.

इसके अलावा जानकार मानते हैं कि भारत सरकार के पास टर्किश एयरलाइंस की भारतीय उड़ानों को कम करने का विकल्प भी है. अनुमान है कि 2018 में भारत से 1.2 लाख से भी ज्यादा पर्यटक तुर्की गए थे. अगर उड़ानें रद्द की गईं तो इनकी संख्या पर भी असर पड़ेगा और उससे तुर्की की पर्यटन से होने वाली आय प्रभावित होगी.

लेकिन इसके बाद भारत के पास ऐसा कोई भी कदम बचता नहीं है जिससे वह तुर्की को व्यापारिक दृष्टि से नुकसान पहुंचा सके. मलेशिया जैसा असर रखने वाला कदम तो बिल्कुल भी नहीं.

उलटे भारत ने हाल ही में प्याज की बढ़ती कीमतों की वजह से उभरे संकट को खत्म करने के लिए तुर्की से अतिरिक्त प्याज आयात कर मिश्रित इशारे दे दिए. जिंदल स्कूल ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स के प्रोफेसर और डीन श्रीराम चौलिया कहते हैं, "मलेशिया के मुकाबले तुर्की के खिलाफ हमारे पास उतनी प्रभावी क्षमता नहीं है." इसके अलावा, चौलिया कहते हैं कि तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान जैसे "तानाशाह और कट्टर इस्लामी नेता" को अपनी इच्छा के अनुसार झुकाने की उम्मीद रखना शायद ख्याली पुलाव हो.

ये भी पढ़िए: तुर्की के ऐतिहासिक ग्रैंड बाजार की एक सैर

लेकिन वह यह भी कहते हैं कि इसके बावजूद तुर्की के खिलाफ जो कार्रवाई भारत पहले ही कर चुका है वो महत्वपूर्ण है क्योंकि उससे भारत एक संदेश देने में सफल रहा है कि वह एक बड़ा बाजार है और अगर कोई देश उसके मूल संप्रभु मुद्दों का आदर नहीं करता तो उस देश को इस बाजार से वंचित किया जा सकता है. 

हालांकि कई जानकारों की राय इससे अलग है. वरिष्ठ पत्रकार नीलोवा रॉय चौधरी कहती हैं कि ये "मेरे दुश्मन का दोस्त मेरा भी दुश्मन है" कहावत को सिद्ध करने जैसा एक दृष्टिकोण है और उन्हें नहीं लगता कि ये अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में सबसे बेहतर तरीका है. वह कहती हैं कि ताड़ के तेल के जरिए मलेशिया को नुकसान पहुंचाने जैसा कोई भी आयात हमारे पास नहीं है जिसके जरिए हम तुर्की को कोई गंभीर नुकसान पहुंचान सकें. 

इसके अलावा वह यह भी कहती हैं कि तुर्की के खिलाफ कदम उठाने का मतलब है कि भारत ने तुर्की के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों को किनारे कर देने का फैसला ले लिया है. ये संबंध उस्मानी साम्राज्य और खिलाफत आंदोलन के जमाने से हैं.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी