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समाज

भारत-पाक सबक लें, यूरेनियम नहीं ऑक्सीजन चाहिए

शामिल शम्स
७ मई २०२१

भारत और पाकिस्तान हथियार खरीद सकते हैं और बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर सकते हैं, लेकिन वे दोनों कोविड संकट से नहीं निबट पा रहे हैं. अब समय आ गया है कि दोनों देश जन स्वास्थ्य में ज्यादा निवेश करें.

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Weltspiegel 27.04.21 | Indien Coronavirus
तस्वीर: Naveen Sharma/ZUMA Wire/imago images

पाकिस्तान में एक प्रगतिशील इतिहासकार डॉक्टर मुबारक अली ने हाल ही में सोशल मीडिया पर लिखा कि भारत और पाकिस्तान में कोरोना संकट से निबटने में जो लापरवाही की गई उससे साबित होता है कि "यूरेनियम से ज्यादा जरूरी ऑक्सीजन है.” भारत और पाकिस्तान इस वक्त कोरोनावायरस की वजह से गंभीर जन स्वास्थ्य संकट से जूझ रहे हैं. भारत में जहां कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन नहीं है, वहीं पाकिस्तान अपने नागरिकों के लिए वैक्सीन उपलब्ध कराने में अक्षम है. हालांकि दोनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं और दोनों ही अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा जरूरतों पर खर्च करते हैं.

भारत में महामारी की स्थिति भयावह है. सिर्फ पिछले एक हफ्ते में 15 लाख 70 हजार लोगों को कोविड-19 हुआ है और 15,100 लोगों की जान गई है. देश में कुल दो लाख 34 हजार 83 लोगों की जान अब तक कोविड-19 से जा चुकी है. पिछले साल जब से कोरोना महामारी शुरू हुई है, तब से भारत में दो करोड़ 15 लाख मामले दर्ज हुए हैं.

कोरोना की यह दूसरी लहर बहुत घातक है और इसने भारत में स्वास्थ्य संबंधी मूलभूत सुविधाओं के खोखलेपन को उजागर कर दिया है. अस्पताल कोविड मरीजों से भरे पड़े हैं और मृत लोगों के अंतिम संस्कार के लिए जगह तक नहीं मिल रही है. पाकिस्तान में भी स्थिति दिनोंदिन बिगड़ती जा रही है. संक्रमण और मौतें दोनों में बढ़ोत्तरी हो रही है. पिछले सात दिन में ही 30 हजार से ज्यादा लोग कोविड की चपेट में आ चुके हैं. देश में 18 हजार 600 से ज्यादा कोरोनवायरस संक्रमण से जा चुकी हैं. हालांकि जानकारों का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज्यादा है.

पाकिस्तान में टीकाकरण की रफ्तार काफी धीमी है क्योंकि सरकार के पास वैक्सीन खरीदने के लिए पैसे ही नहीं हैं. चीन और कुछ अन्य देशों ने कुछ लाख वैक्सीन डोज की मदद दी है लेकिन 22 करोड़ की आबादी वाले देश के टीकाकरण के लिए यह संख्या बहुत कम है.

जिद्दी अहंकार

इन हालात के बावजूद भारत और पाकिस्तान की मौजूदा सरकारें अपनी खर्च नीति का मूल्यांकन करने को तैयार नहीं हैं. आजादी के बाद पिछले सत्तर साल से दोनों ही देशों ने जनकल्याण की तुलना में रक्षा मामलों पर ज्यादा निवेश किया है. दोनों ही देशों की सेनाएं काफी बड़ी हैं, बावजूद इसके कि दोनों ही देशों में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी की रेखा के नीचे रह रहा है.

ऐसा तभी होता है जबकि कोई विकासशील देश सुरक्षा संबंधी खर्चों को प्राथमिकता पर रखता है. भारत और पाकिस्तान के पास अत्याधुनिक टैंक और लड़ाकू जहाज हैं, भले ही उनके अस्पतालों में बिस्तर, आईसीयू और वेंटिलेटर न हों.

Shams Shamil
शामिल शम्स

भारत और पाकिस्तान में कोरोनावायरस का संक्रमण नियंत्रण से बाहर हो चला है और नागरिक प्रशासन के पास इससे निबटने की क्षमता नहीं है. आखिर स्वास्थ्य संस्थाएं एक पीढ़ी में एक बार आने वाली किसी महामारी से कैसे निबट सकती हैं यदि उनकी सरकारों ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में सत्तर साल में भी पर्याप्त निवेश न किया हो?

पाकिस्तान में देश के सत्ताधीशों की आम जनता की दुर्दशा के प्रति उदासीनता तब स्पष्ट हो गई जब 25 मार्च को उन्होंने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम एक मिसाइल का परीक्षण किया जबकि उसी समय वे लोगों को यह बता रहे थे कि उन्हें अभी वैक्सीन के लिए इंतज़ार करना पड़ेगा.

कल्पना कीजिए कि शाहीन-1ए बैलिस्टिक मिसाइल की कीमत में कोरोना वैक्सीन की कितनी डोज खरीदी जा सकती थीं. उसी समय, भारत अपनी सेना को अगले दो साल में तकनीकी स्तर पर और मजबूत करने की तैयारी में था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके लिए वह दृश्य श्रेणी की मिसाइलें, टैंकरोधी हथियार, ड्रोनरोधी रक्षा प्रणाली, गाइडेड बम और एंटी एअरफील्ड हथियार का जखीरा तैयार कर रहा है.

भारत में कोरोना के बेकाबू होने का जिम्मेदार कौन?

गलत प्राथमिकताएं

कोरोना वायरस महामारी की वजह से दुनिया के उन देशों में स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई जहां स्वास्थ्य सेवाएं काफी विकसित स्थिति में हैं. विकासशील देशों में तो इस महामारी ने दिखा दिया कि समृद्धि के लिए बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का होना कितना जरूरी है.

शक्तिशाली सैन्य व्यवस्था और भारी-भरकम रक्षा बजट एक वायरस से नहीं लड़ सकते हैं. इसलिए भारत और पाकिस्तान अपनी जनता के सामने ज्यादा दिनों तक अपनी परमाणु क्षमता को न्यायसंगत नहीं ठहरा सकते हैं, खासकर तब, जबकि उनकी जनता दवाइयों, अस्पतालों और ऑक्सिजन सिलिंडर की कमी से जूझ रही हो.

दोनों देशों के शासकों को अपनी युद्धोन्मादी नीति को किनारे रखकर अपने विवादों को राजनीतिक और कूटनीतिक तरीके से सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. कोविड या फिर भविष्य में ऐसी ही किसी और महामारी से निबटने के सबसे सही तरीका यही है कि पड़ोसी देशों से संबंध अच्छे रहें और क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग मजबूत हों.

कई पाकिस्तानी लोगों ने महामारी की इस स्थिति में जिस तरह से भारतीय लोगों को सहयोग की पेशकश की, उससे यह पता चलता है कि यदि दोनों देश एक-दूसरे की मदद करें तो वे तमाम चुनौतियों से निबट सकते हैं.

इस महामारी ने यह दिखा दिया है कि यदि दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश शांति और सामंजस्य की ओर नहीं बढ़ते हैं तो आगे चलकर उनकी अर्थव्यवस्थाओं को ध्वस्त होने से कोई रोक नहीं सकता, यहां तक कि उनकी शक्तिशाली सेनाएं भी इसे नहीं रोक पाएंगी.

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