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कैसे एनजीओ भारत में काम कर सकेंगे

क्रिस्टीने लेनन
१२ दिसम्बर २०१६

एनजीओ यानी गैर सरकारी संगठनों की पहचान सामाजिक न्याय, विकास और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए काम करने वाले समूह के रूप में की जाती है. लेकिन पिछले कुछ सालों में एनजीओ की इस प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा है.

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Indira Jaising
जानी मानी वकील इंदिरा जयसिंह लॉयर्स कलेक्टिव नामक एनजीओ भी चलाती हैं.तस्वीर: Indira Jaising

भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में एनजीओ को जनता से जुड़ने का महत्वपूर्ण साधन माना जाता है. इसमें शक नहीं कि देश में सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना के विकास एवं कुरीतियों से निजात दिलाने में इन गैर सरकारी संगठनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. हालांकि कुकुरमुत्तों की तरह उग आये एनजीओ के चलते इनकी कार्यप्रणाली पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. खास तौर पर विदेशी धन पाने वाले या विदेशी एनजीओ की राष्ट्र के प्रति निष्ठा पर ज्यादा सवाल उठाये जा रहे हैं. विदेशी चंदा नियमन कानून का पालन नहीं करने के कारण कुछ एनजीओ पर बंदिशें लगायी जा रही हैं.

विदेशी चंदा नियमन कानून का दुरूपयोग

अमेरिकी एनजीओ ‘कंपैशन इंटरनेशनल' और जानी-मानी वकील इंदिरा जयसिंह द्वारा संचालित संगठन ‘लॉयर्स कलेक्टिव' को विदेशी चंदा नियमन कानून 2011 यानी एफसीआरए के दुरूपयोग के चलते बंदिशों का सामना करना पड़ रहा है. विदेशी चंदा नियमन कानून के तहत, कोई एनजीओ पूर्व अनुमति श्रेणी के तहत केवल दो बार विदेश से चंदा प्राप्त कर सकता है लेकिन नियम का कड़ाई से क्रियान्वयन नहीं होने की वजह से अब तक इसका दुरूपयोग होता रहा है. गृह मंत्रालय अब इस पर कड़ी निगरानी रख रहा है. कंपैशन इंटरनेशनल का कहना है कि एफसीआरए में हुए बदलाव उसकी राह में रोड़ा अटकाने वाला है. इसी साल मार्च में कंपैशन इंटरनेशनल पर पाबंदी लगाई गई थी जिसे अमेरिकी विदेश सचिव जॉन केरी के हस्तक्षेप के बाद हटा लिया गया. हालांकि इसे अब भी निगरानी सूची में ही रखा गया है. कंपैशन इंटरनेशनल के अलावा 1 दर्जन से ज्यादा संस्थाओं को पिछले दो सालों में निगरानी सूची में डाला गया है. 

DNP+ - Demonstration in Neu Delhi
लॉयर्स कलेक्टिव एड्स रोगियों के अदिकार से लेकर कई तरह के मुद्दों पर काम करता रहा है. 2007 में नई दिल्ली में किया एक प्रदर्शन.तस्वीर: AP

एनजीओ पर अमेरिकी और भारतीय पक्ष

कंपैशन इंटरनेशनल पर भारत में धर्म परिवर्तन में लिप्त रहने का आरोप है. लेकिन इसके समर्थन में कुछ अमेरिकी सांसदों ने आवाज़ उठाई है. अमेरिकी कांग्रेस की विदेशी संबंध समिति के अध्यक्ष ईडी रॉयस का कहना है की कंपैशन इंटरनेशनल भारत में घोर गरीबी में जी रहे बच्चों की मदद करने वाला अकेला बड़ा संगठन है. उनका का कहना है कि 1,45,000 बच्चों को अनिवार्य मदद से वंचित नहीं किया जा सकता है. कंपैशन इंटरनेशनल के सम्बन्ध में अमेरिकी संसद में हुई चर्चा पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप का कहना है, "ऐसा प्रतीत होता है कि यह चर्चा भारत, इसके समाज और संविधान एवं कानून के बारे में सीमित समझ पर आधारित थी." विकास स्वरूप ने कहा कि भारत में एनजीओ के आचरण एवं कार्य को लेकर स्थापित कानूनी फ्रेमवर्क है.

एनजीओ की संख्या 30 लाख

सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में में 31 लाख से अधिक एनजीओ की मौजूदगी है लेकिन अधिकांश सफेद हाथी की तरह ही हैं. पिछले दो दशकों में एनजीओ की संख्या तेजी से बढ़ी है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सीबीआई एनजीओ की बढ़ती संख्या की जांच कर रही है. 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सैकड़ों भारतीय और विदेशी एनजीओ के एफसीआरए लाइसेंसों को रद्द किया गया है. इनमें ग्रीनपीस इंडिया और फोर्ड फाउंडेशन शामिल हैं. दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के एनजीओ कबीर पर भी सरकार के नियमों की गाज गिरी है. सभी पर विदेशी चंदा के दुरूपयोग का मामला बनाया गया है.

वैसे, भारत में सक्रिय अधिकांश एनजीओ को तो देश की सरकार से ही आर्थिक मदद मिल जाती है लेकिन बड़ी संख्या में ऐसे भी एनजीओ हैं जिन्हें अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड, नीदरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, फिनलैंड और डेनमार्क जैसे देशों से आर्थिक मदद मिलती है.

एनजीओ के पक्ष में दलील

सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता रवि श्रीवास्तव कहते हैं की हाल के वर्षों में कई एनजीओ ने सामाजिक न्याय, विकास और मानवाधिकारों के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किया है. ईमानदारी से काम करने वाले एनजीओ का रुख अधिकतर सरकार विरोधी ही दिखाई पड़ता है. उनका कहना है कि केवल इस आधार पर ही एनजीओ की साख पर सवाल नहीं खड़े करने चाहिए. ‘लॉयर्स कलेक्टिव' ने स्वयं पर हुई कार्रवाई को संविधान के तहत प्रदत्त ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार' पर हमला बताया है.

सामाजिक कार्यकर्ता बालकृष्ण नायक का कहना है, "इसमें संदेह नहीं है की बहुतों ने एनजीओ को एक व्यवसाय बना डाला है, जिसके कारण आम लोगों के बीच भी एनजीओ की साख प्रभावित हुई है." उनका कहना है कि गलत ढंग से काम करनेवाले एनजीओ पर सरकार जरूर कार्यवाई करे, लेकिन सभी संगठनों पर नकेल कसना लोकतंत्र के खिलाफ है.