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भारत में बढ़ रही है बेरोजगारों की फौज

प्रभाकर मणि तिवारी
९ नवम्बर २०१८

भारत में बेरोजगारों की फौज लगातार बढ़ रही है. रोजगार सृजन के केंद्र सरकार के तमाम दावों के बावजूद देश में बेरोजगारी दर बीते दो वर्षों के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है.

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Indien Mitarbeiter der Bosch Ltd in Bangalore
तस्वीर: imago/photothek

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अक्टूबर में यह दर 6.9 फीसदी रही. बीते साल अक्टूबर में 40.07 करोड़ लोग काम कर रहे थे लेकिन इस साल अक्तूबर के दौरान यह आंकड़ा 2.4 फीसदी घट कर 39.70 करोड़ रह गया. इससे पहले अंतररष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी अपनी एक रिपोर्ट में देश में रोजगार के मामले में हालात बदतर होने की चेतावनी दी थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते चार वर्षों के दौरान रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां खत्म हुई हैं.

बावन साल के समीर मंडल कोलकाता की एक निजी कंपनी में बीते 22 साल से काम कर रहे थे. लेकिन बीते साल जून में एक दिन अचानक कंपनी ने खर्चों में कटौती की बात कह कर उनकी सेवाएं खत्म कर दीं. अभी उनके बच्चे छोटे-छोटे थे. महीनों नौकरी तलाशने के बावजूद जब उनको कहीं कोई काम नहीं मिला तो मजबूरन वह अपनी पुश्तैनी दुकान में बैठने लगे. समीर कहते हैं, "इस उम्र में नौकरी छिन जाने का दर्द क्या होता है, यह कोई मुझसे पूछे. वह तो गनीमत थी कि पिताजी ने एक छोटी दुकान ले रखी थी. वरना भूखों मरने की नौबत आ जाती.”

Trotz guter Wirtschaftzahlen steigt die Arbeitslosigkeit in Indien
समीर मंडलतस्वीर: DW/P. Tewari

समीर अब वहीं पूरे दिन बैठकर पान-सिगरेट और घरेलू इस्तेमाल की दूसरी चीजें बेच कर किसी तरह अपने परिवार का गुजर-बसर करते हैं. वह बताते हैं कि पहले वेतन अच्छा था. लिहाजा वह बड़े मकान में किराए पर रहते थे. बच्चे भी बढ़िया स्कूलों में पढ़ते थे. लेकिन एक झटके में नौकरी छिनने के बाद उनको अपने कई खर्चों में कटौती करनी पड़ी. पहले मकान छोटा लिया. फिर बच्चों का नाम एक सस्ते स्कूल में लिखवाया. अब हालांकि उनकी जिंदगी धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है. लेकिन समीर को अब तक अपनी नौकरी छूटने का गम सताता रहता है.

पश्चिम बंगाल में दक्षिण 24-परगना जिले के रहने वाले मनोरंजन माइती ने एक प्रतिष्ठित कालेज से बीए (आनर्स) की पढ़ाई करने के बाद नौकरी व बेहतर भविष्य के सपने देखे थे. लेकिन नौकरी की तलाश में बरसों एड़ियां घिसने के बाद उनका मोहभंग हो गया. आखिर अब वह कोलकाता के बाजार में सब्जी की दुकान लगाते हैं. मनोरंजन बताते हैं, "कालेज से निकलने के बाद मैंने पांच साल तक नौकरी की कोशिश की. लेकिन कहीं कोई नौकरी नहीं मिली. जो मिल रही थी उसमें पैसा इतना कम था कि आने-जाने का किराया व जेब खर्च भी पूरा नहीं पड़ता. यही वजह है कि मैंने सब्जी व फल बेचने का फैसला किया. कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता.”

रिपोर्ट

सीएमआईई ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि दो साल पहले हुई नोटबंदी के बाद रोजगार में कटौती का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह अब तक नहीं थमा है. इस दौरान श्रम सहभागिता दर 48 फीसदी से घट कर तीन साल के अपने निचले स्तर 42.4 फीसदी पर आ गई है. यह दर काम करने के इच्छुक वयस्कों के अनुपात का पैमाना है. रिपोर्ट में बेरोजगारी दर में इस भारी गिरावट को अर्थव्यवस्था व बाजार के लिए खराब संकेत करार दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, सक्रिय रूप से नौकरी तलाशने वाले बेरोजगारों की तादाद बीते साल जुलाई के 1.40 करोड़ के मुकाबले दोगुनी बढ़ कर इस साल अक्तूबर में 2.95 करोड़ पहुंच गई. बीते साल अक्तूबर में यह आंकड़ा 2.16 करोड़ था.

बेरोजगारी पर अब तक जितने भी सर्वेक्षण आए हैं, उनमें आंकड़े अलग-अलग हो सकते हैं. लेकिन एक बात जो सबमें समान है वह यह कि इस क्षेत्र में नौकरियों में तेजी से होने वाली कटौती की वजह से हालात लगातार बदतर हो रहे हैं. बीते दिनों अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की ओर से प्रकाशित एक सर्वेक्षण में कहा गया था कि देश में विभिन्न क्षेत्रों में ज्यादातर लोगों का वेतन अब भी 10 हजार रुपए महीने से कम ही है. स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया, 2018 शीर्षक वाले इस सर्वेक्षण रिपोर्ट में दावा किया गया था कि रोजगार के क्षेत्र में विभिन्न कर्मचारियों के वेतन में भारी अंतर है. इस खाई को पटाना जरूरी है. एक अन्य सर्वे में कहा गया है कि भारत में 12 करोड़ युवाओं के पास फिलहाल कोई रोजगार नहीं है.

Trotz guter Wirtschaftzahlen steigt die Arbeitslosigkeit in Indien
मनोरंजन माइतीतस्वीर: DW/P. Tewari

इससे पहले अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भी अपनी एक रिपोर्ट में भारत में बेरोजगारी के परिदृश्य पर चिंता जताई थी. संगठन ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में नौकरियों की तादाद जरूर बढ़ी है लेकिन इनमें से ज्यादातर की गुणवत्ता मानकों के अनुरूप नहीं हैं. संगठन ने कहा था कि सबसे ज्यादा मुश्किलें 15 से 24 आयु वर्ग के युवाओं के लिए हैं. इस आयु वर्ग के युवाओं में 2014 में बेरोजगारी दर 10 फीसदी थी जो 2017 में 10.5 फीसदी तक पहुंच गई. अब अगले साल इसके बढ़ कर 10.7 फीसदी तक पहुंच जाने का अंदेशा है.

विशेषज्ञों की राय

विशेषज्ञों का कहना है कि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की वजह से खास कर निजी क्षेत्रों में नौकरियों में बड़े पैमाने पर कटौती हुई है. इसके साथ ही सरकारी नौकरियों में भी पहले की तरह बहालियां नहीं हो रही हैं. दूसरी ओर, देश में हर साल सैकड़ों की तादाद में खुलते कालेजों से पढ़ कर निकलने वाले युवाओं की भीड़ बढ़ती जा रही है. इस वजह से रोजगार के क्षेत्र में बदहाली नजर आ रही है. महानगर के एक कालेज  में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे देवाशीष बनर्जी कहते हैं, "सूचना तकनीक, दूरसंचार और ऐसे दूसरे क्षेत्रों में खास कर बीते दो वर्षों के दौरान लाखों नौकरियां कम हुई हैं. निजी क्षेत्र में लाखों लोग छंटनी के शिकार हुए हैं. इससे बेरोजगारों का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है.”

एक अन्य समस्या लगातार श्रम बाजार में आते नए स्नातकों की है. विशेषज्ञ डा. मोहन लाल दास कहते हैं, "हर साल लगभग सवा करोड़ नए लोग रोजगार की तलाश में उतरते हैं. लेकिन मांग के मुताबिक नौकरियां पैदा नहीं हो रही हैं. यही वजह है कि चपरासी की नौकरी के लिए भी डॉक्टर, इंजीनियर और पीएचडी करने वाले युवा आवेदन देते हैं.” विशेषज्ञों का कहना है कि मांग और सप्लाई में भारी अंतर ने तस्वीर को और चिंताजनक बना दिया है. फिलहाल हालात में सुधार की उम्मीद भी कम ही नजर आ रही है.

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