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भारत में सुपरफास्ट 5जी से जुड़ी हैं सुपर चुनौतियां

शिवप्रसाद जोशी
२७ नवम्बर २०१९

भारत में 5जी इंटरनेट का इंतजार और लंबा खिंच सकता है. पहले इसे 2020 में ले आने की बात थी लेकिन केंद्र सरकार के साथ मोबाइल फोन कंपनियों के कुछ वित्तीय और तकनीकी मामले सुलझ नहीं पा रहे हैं.

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5G Mobilfunkauktion
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Roessler

भारतीय मोबाइल फोन कंपनियों के संगठन सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीओएआई) के मुताबिक बेस कीमतों में अत्यधिक बढ़ोत्तरी, अपर्याप्त स्पेक्ट्रम और नये बैंड्स की अनुपलब्धता के चलते 5जी को अगले पांच साल के लिए टालना पड़ रहा है. मीडिया में सीओएआई के महानिदेशक राजन एस मैथ्यूज का एक बयान प्रकाशित हुआ है जिसके मुताबिक 5जी को अगले पांच साल के लिए इसलिए रोका जा रहा है क्योंकि पहले कीमतों के निर्धारण की समस्या थी और अब क्वांटम का मुद्दा आ गया है. ऑपरेटरों की मांग 100 मेगाहर्ट्ज की है लेकिन मिल रहा है उन्हें सिर्फ एक मेगाहर्ट्ज और वो भी बहुत ऊंची कीमत पर. जाहिर है ऑपरेटरों के लिए मुश्किल दोतरफा है क्योंकि उन्हें अपने उपभोक्ताओं को कीमत और सर्विस को लेकर संतुष्ट करना भी जरूरी होगा. अंतरराष्ट्रीय कीमतों और ऋण के दबाव को देखते हुए ऑपरेटरों का कहना है कि एक मेगाहर्ट्ज के लिए 492 करोड़ रुपए देना अटपटा सौदा है. और जितना 5जी स्पेक्ट्रम वाणिज्यिक सेवाओं के लिए भारत में दिया जा रहा है वो नाकाफी है.

सीओएआई, निजी टेलीफोन कंपनियों की प्रतिनिधि संगठन है जिसमें भारती एयरटेल, रिलायंस जिओ, और वोडाफान आईडिया के अलावा गीयर निर्माता कंपनियां हुआवाई, एरिकसन, सिस्को और सिएना भी शामिल हैं. एरिक्सन ने भी कह दिया है कि 5जी सब्सक्रिप्शन देश में अब 2022 से पहले उपलब्ध नहीं होंगे. उसके मुताबिक 2025 के अंत तक करीब 11 प्रतिशत मोबाइल सेवाएं ही 5जी हो पाएंगी. मोबाइल फोन उद्योग साढ़े सात लाख करोड़ के कर्ज के बोझ से दबा है. कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते वित्तीय दबाव भी बने हुए हैं. जिओ लाभ में हैं तो एयरटेल और वोडफान-आईडिया बेहाल हैं. इस बीच मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां अपनी दरों में बढ़ोत्तरी करने की योजना बना रही है.

सीओएआई का दावा है कि पहले भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कहा था कि 300 मेगाहर्टज का स्पेक्ट्रम उपलब्ध है लेकिन ये 5जी चलाने के लिए अपर्याप्त है. क्योंकि इसमें से सिर्फ 175 मेगाहर्टज ही टेलीकॉम कंपनियों को 5जी चलाने के लिए मिलेगा. बाकी रक्षा विभाग और अंतरिक्ष कार्यक्रम से जुड़ी एजेंसियों ने मांगा है. केंद्र सरकार ने इसी साल सितंबर में दावा किया था कि साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में भारत में 5जी आवंटन के लिए निलामी शुरू कर दी जाएगी. लेकिन इन हालात में लगता नहीं कि केंद्र का ये दावा पूरा होने वाला है. दूसरी ओर स्मार्टफोन निर्माता कंपनियां बड़े जोर शोर से 5जी हैंडसेट को लॉन्च करने की घोषणाएं कर रही हैं. अब अगर स्पेक्ट्रम को लेकर जारी विवाद नहीं सुलझता तो आशंका है कि भारत 5जी की रेस में दुनिया के अन्य देशों से पीछे छूट जाएगा.

चीन में 5जी की कमर्शियल सेवाएं शुरू हो रही हैं और चार प्रमुख शहरों के उपभोक्ता हाईस्पीड इंटरनेट नेटवर्क का लाभ उठा पाएंगें. साल के अंत तक उसे 50 शहरों को उसके दायरे में ले आने की योजना है. इस तरह दक्षिण कोरिया और चीन के बीच, 5जी बेस स्टेशनों की संख्या के आधार पर सबसे बड़े 5जी नेटवर्क को लेकर प्रतिस्पर्धा भी शुरू हो जाएगी. विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन इस मामले में बाजी मार सकता है. 5जी की सेवाएं किसी न किसी वर्जन में, कहीं व्यापक तो कहीं चुनिंदा शहरों में, दुनिया के कुछ देशों में उपलब्ध हैं. अमेरिका और जर्मनी, इटली, आयरलैंड, ब्रिटेन, स्पेन, समेत यूरोप के नौ देश भी इसमें शामिल हैं. स्विट्जरलैंड और फिनलैंड के बाद इस कतार में अब फ्रांस  भी शामिल होने जा रहा है.

इसमें कोई शक नहीं कि 5जी सिर्फ इंटरनेट की स्पीड को अभूतपूर्व रूप से 4जी से 20 गुना ज्यादा कर देगा और जीवन के कमोबेश हर क्षेत्र में इसकी छाप दिखाई देने लगेगी और रोजमर्रा का जीवन भी पहले जैसा नहीं रह पाएगा. सूचना क्रांति के एक नये चरण का सूत्रपात होगा जिसका चौतरफा और दूरगामी असर होगा - ये सब ठीक है लेकिन भारत जैसे देश में 5जी इंटरनेट के साथ और तीव्र होते डिजिटल विभाजन पर भी गौर किए जाने की जरूरत है. और ये विभाजन कई प्रत्यक्ष और परोक्ष स्तरों पर हो रहा है. यानी डिजिटल विभाजन सिर्फ यही नहीं है कि देश की आबादी का एक प्रमुख हिस्सा अब भी स्मार्टफोन और इंटरनेट से दूर या अछूता है, इस विभाजन का एक आशय ये भी है कि सूचना प्रौद्योगिकी की विशेषताओं, लाभों और कमजोरियों के अलावा और इंटरनेट की बेइंतहा रफ्तार के बारे में एक बड़ी आबादी अनभिज्ञ है. और एक डिजिटल विभाजन उसके सही या गलत इस्तेमाल से भी जुड़ा है. ये उस खतरनाक प्रवृत्ति की ओर भी भी इशारा करता है जिसका संबंध इंटरनेट जनित भ्रामक सूचनाओं से है.

फेक न्यूज, अफवाह और जालसाजी के अलावा साइबर अपराधों को लेकर सरकार और संगठनों और ऑपरेटरों की कोशिशें अभी जारी ही हैं और एक व्यापक, स्पष्ट, पारदर्शी नैतिक और कानूनी व्यवस्थाओं के अभाव के बीच सरकारों की अपनी सख्तियां और अपने लचीलेपन भी हैं. ऐसे में 5जी के आवंटन और आरंभ के साथ इन बातों पर भी गंभीरता से विचार किए जाने की जरूरत है. प्रौद्योगिकीय तौर पर, मुहावरे में ही सही, बेड़ा पार तभी माना जा सकता है जब पानी का भी अंदाजा हो और पतवार का भी.

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