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बर्लिन का सहिष्णुता धरना

मार्सेल फुर्स्टेनाऊ१४ जनवरी २०१५

बर्लिन का एकजुटता समारोह धार्मिक सहिष्णुता की अपील का भावपूर्ण समारोह बन गया. डॉयचे वेले के मार्सेल फुरस्टेनाऊ का कहना है कि धार्मिक नेताओं और जर्मन राष्ट्रपति के दोटूक शब्दों के बाद अब इसके अनुरूप कदम उठाने की जरूरत है.

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तस्वीर: Reuters/Fabrizio Bensch

मुश्किल लोगों को करीब लाती है. मानवजाति के इस पुराने अनुभव की इन दिनों दुनिया भर में प्रभावी तरीके से पुष्टि हो रही है. रविवार को पेरिस की तस्वीरें दुनिया भर में गईं जहां लाखों लोगों ने इस्लामी चरमपंथियों द्वारा मारे गए लोगों को याद किया. बर्लिन में सोमवार को हजारों लोगों ने ब्रांडेनबुर्ग गेट पर धरना दिया. इसका आयोजन मुसलमानों की केंद्रीय परिषद और बर्लिन के तुर्क समुदाय ने किया था. उन पर अब धार्मिक चरमपंथ और आतंकवाद के खिलाफ कुछ नहीं करने का आरोप नहीं जा सकेगा. पिछले दिनों जर्मनी में इस तरह के आरोप अक्सर सुने जा रहे थे.

मुसलमानों की केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष आयमान माजिएक ने कहा, "हम सब जर्मनी हैं." जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने इन शब्दों को दोहराया. इससे अच्छा संकेत और कुछ नहीं हो सकता था. जो लोग वहां मौजूद थे और जिन लोगों ने इसे टेलिविजन पर देखा उनके दिमाग में एक तस्वीर चस्पां हो गई है, मुसलमान, ईसाई और यहूदी धरने के अंत में एक दूसरे की बांह में बांह डाले हैं. शुरुआत माजिएक ने की. वे यहूदियों कूी केंद्रीय परिषद के प्रमुख अब्राहम लेरर के शब्दों का जवाब भी दे सकते थे जिन्होंने इस्लाम में बढ़ते चरमपंथ की कड़ी आलोचना की थी.

इस्लाम सचमुच जर्मनी का हिस्सा

माजिएक ने आलोचना का जबाव देने का लोभ रोक लिया. इसके बदले उन्होंने पेरिस के आतंकी हमले को सबसे बड़ी ईशनिंदा और इस्लाम के साथ धोखा बताया जिसके सिद्धांतों को गंदगी में खींचा गया है. कोई धार्मिक प्रतिनिधि इससे ज्यादा साफ तौर पर आतंकवाद की आलोचना नहीं कर सकता. उनका घोषणा शपथ जैसा लगा कि जर्मनी के मुसलमान भविष्य में समाज का आलोचक सदस्य बनने के लिए और प्रयास करेंगे. अब उन्हें इन्हीं शब्दों के पैमाने पर मापा जाएगा.

यही बात राजनीति के लिए भी लागू होती है. यह एक अच्छा संकेत था कि ब्रांडेनबुर्ग गेट पर इस धरने के एक दिन पहले चांसलर अंगेला मैर्केल ने पूर्व राष्ट्रपति क्रिस्टियान वुल्फ का 2010 में दिया गया एक बयान दोहराया था, "इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है." वुल्फ को राष्ट्रपति के रूप में दिए गए इस बयान के लिए अनुदारवादियों की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी. पांच साल बाद यह वाक्य अभी भी विवादित है, लेकिन यह विवाद उन दिनों की तुलना में और बकवास लगता है.

ईसाई प्रभाव वाला जर्मनी

तथ्य है कि आप्रवासन के देश जर्मनी में लाखों मुसलमान रहते हैं. कोई इस पर सवाल नहीं उठाता कि समाज पर सैकड़ों साल तक ईसाइयत का प्रभाव रहा है. और यह कि ईसाइयत ने जर्मन समाज को ढाला है और भविष्य में भी दूसरे किसी धर्म की अपेक्षा ज्यादा प्रभावित करता रहेगा. इसके बावजूद इस्लाम जर्मनी का हिस्सा है और सौभाग्य से यहूदी धर्म भी जर्मनी का हिस्सा है.

धर्म से ऊपर उठकर घोषित सार्वजनिक भावना का यह त्रासद पहलू है कि वह धर्म की विकृति का जवाब है. दुर्भाग्य है कि पेरिस का आतंकी हमला भगवान के नाम पर किया गया आखिरी हमला नहीं रहेगा. इसलिए दुनिया भर में धर्मों के बीच देखी जा रही सहिष्णुता को रोजमर्रा में देखना और भी महत्वपूर्ण है. जर्मन राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने इसके लिए उचित शब्दों का इस्तेमाल किया कि आप्रवासियों और अधिवासियों के बीच की दूरियां और अलग अलग जगह से आए आप्रवासियों के बीच की भी दूरियां अब तक बहुत कम मिटी हैं. उन्होंने कहा, "बहुलता को मुलाकातों की जरूरत है." राष्ट्रपति के ये शब्द सबके लिए हैं और उन्हें इसके अनुरूप बर्ताव करना चाहिए.