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भेदभाव की शिकार महिला पुलिस

२२ अगस्त २०१५

जनता की रक्षा करने वाली पुलिस सेवा के लोगों में भी महिला पुलिसकर्मियों के खिलाफ लैंगिक भेदभाव की शिकायतें सामने आई हैं. भारतीय पुलिस सेवा में पहले ही महिलाओं की तादाद बेहद कम है जिस पर हर राज्य को ध्यान देने की जरूरत है.

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तस्वीर: Reuters

एक कॉमनवेल्थ स्टडी में पाया गया है कि भारत की पुलिस सेवा में कार्यरत कई महिलाओं से मामूली काम करवाया जाता है, उन्हें प्रमोशन प्रक्रिया में दरकिनार कर दिया जाता है और वे खुद अपने पुरुष सहकर्मियों के यौन उत्पीड़न की शिकार बनने पर भी उनकी शिकायत करने में डरती हैं. यह रिपोर्ट कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव ने तैयार की है. इसमें बताया गया कि पुलिस सेवा में न्यूनतम 33 फीसदी महिलाओं को भर्ती करने के निर्देश के बावजूद भारत के 23 लाख पुलिसकर्मियों में केवल 6.11 फीसदी महिलाएं हैं.

अमेरिका जैसे देश में पुलिस सेवा में 12 फीसदी और मालदीव में 7.4 फीसदी महिलाएं हैं, जबकि पाकिस्तान में केवल एक फीसदी से भी कम. भारत के पांच राज्यों में महिला और पुरुष पुलिसकर्मियों से बातचीत के आधार पर तैयार इस स्टडी "रफ रोड्स टू इक्वॉलिटी: वीमेन पुलिस इन साउथ एशिया" की सह-लेखिका हैं देविका प्रसाद बताती हैं कि पुलिस सेवा में भी औरतों को अपनी नियुक्ति से लेकर पूरी करियर के दौरान गहरी जड़ें जमाए बैठे लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ा.

चुनाव प्रक्रिया से लेकर इंटरव्यू पैनल तक किसी बोर्ड में कोई महिला नहीं होती. प्रसाद ने कहा, "हमने पाया कि महिलाओं को डेस्क और क्लर्क वाले काम दिए गए और किसी केस में जांच या फ्रंटलाइन पर किसी ऑपरेशन का संचालन करने की ड्यूटी नहीं दी जाती. पुरुष पुलिसकर्मियों से बार बार यही सुनने को मिला कि पुलिस का काम पुरुषों का काम है, औरतें इसे नहीं कर सकतीं क्योंकि वे शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत नहीं होतीं." नतीजतन महिलाओं का पूरा करियर पुलिस की निचली रैंक में ही बीतता है और उन्हें कुछ चुनिंदा 'महिला और बच्चों' वाले अपराधों में ही बयान दर्ज करवाने और शिकायत दर्ज करने का मौका मिल पाता है. इस तरह वे अनुभव के मामले में पीछे रह जाती हैं और उनके प्रमोशन की संभावनाएं और भी कमजोर पड़ जाती हैं.

स्ट्डी में पाया गया कि 80 प्रतिशत से अधिक महिला पुलिसकर्मी कॉन्सटेबल हैं, जो कि पुलिस सेवा की सबसे निचली रैंक है. मात्र 7.8 फीसदी हेड कॉन्सटेबल और 3.35 प्रतिशत असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर तक पहुंचीं. पुलिस सेवा में महानिजेशक या अतिरिक्त महानिद्शक की टॉप रैंक तक केवल 0.02 प्रतिशत महिलाएं ही पहुंची हैं. यह भी पता चला कि खुद कई महिला पुलिसकर्मियों को भी कार्यस्थल में होने वाले यौन उत्पीड़न के बारे में मौजूदा कानूनों की जानकारी नहीं है, शिकायत दर्ज कराना तो दूर की बात है. इस पर प्रसाद कहती हैं, "इस बात का उन्हें (महिला पुलिसकर्मियों को) बहुत डर है कि उनकी छवि कराब करने, सजा देने या किसी तरह प्रताड़ित करने की कोशिशें होंगी."

गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने इस स्टडी की खोजों को काफी चिंताजनक बताया और कहा कि वे इस विचार का समर्थन नहीं करते कि महिलाएं फील्ड ऑपरेशन में हिस्सा लेने के लिए कमजोर हैं. केंद्र सरकार ने देश के 29 राज्यों से पुलिस सेवा में महिलाओं की हिस्सेदारी को कम से कम 33 फीसदी तक लाने को कहा है. चूंकि पुलिस राज्यों का मामला है इसलिए केंद्र सरकार इस आदेश को बाध्य नहीं बना सकती. एक मिसाल पेश करने के लिए रिजिजू ने यह वादा किया कि कम से कम भारत के 7 केंद्र शासित प्रदेशों में वे एक तिहाई महिलाओं की नियुक्ति जरूर सुनिश्चित करेंगे.

आरआर/ओएसजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)