मंदिर से नाराज मोदी
१२ फ़रवरी २०१५गुजरात के राजकोट में बनाए गए मोदी मंदिर और उसमे लगी अपनी मूर्ति से नाराज प्रधानमंत्री ने कहा, "हमारी परंपरा हमें ऐसा मंदिर बनाना नहीं सिखाती. मैं दुखी हूं. यह चौंकाने वाला है और भारत की महान परंपरा के खिलाफ है." मोदी ने प्रशंसकों से कहा कि उन्हें अपनी ऊर्जा स्वच्छ भारत अभियान में लगानी चाहिए.
मंदिर बनाने में कुछ साल लगे. इसे बनाने के लिए कोठारिया गांव के 350 मोदी प्रशंसकों ने पैसा जमा किया. मंदिर बनाने में पांच लाख रुपये खर्च हुए. प्रधानमंत्री की नाराजगी के बाद मंदिर बनाने वालों को पीछे हटाना पड़ा है. मंदिर योजना के संयोजक रमेश उद्धव ने कहा, "हमने मोदीजी के प्रति अपना प्यार और विश्वास दर्शाने के लिए मंदिर बनाया. लेकिन अगर वह नाखुश हैं या हमारे कदम से आहत हुए हैं तो हम उनकी प्रतिमा हटा देंगे."
प्रधानमंत्री मोदी इस वक्त आत्ममंथन की मुद्रा में हैं. दिल्ली के चुनावों में मिली करारी हार ने उनके सामने कई सवाल खड़े किए हैं.
भारत में जीवित व्यक्तियों के मंदिर नहीं बनाए जाते हैं. लेकिन राजनीति को चाटुकारिता का दलदल बनाने वाले इसकी परवाह नहीं करते. बीते साल दक्षिण भारत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का मंदिर बना दिया गया. पुलों, भवनों और संस्थानों का राजनीतिक नामकरण बड़ी आम बात है. इसे कुछ नेता परिवार विशेष या व्यक्ति विशेष के प्रति अपनी वफादारी साबित करने का एक मात्र तरीका मानते हैं.
चाटुकारिता की यह आदत अब राजनीतिक संस्कृति बनती जा रही है. कई राज्यों में जगह जगह बड़े नेताओं के बड़े बड़े पोस्टर दिखते हैं. इन पोस्टरों को नेता नहीं छपवाते बल्कि निवेदक छपवाते हैं. पोस्टरों में निवेदकों की तस्वीर होती है और उनका नाम होता है. कुछ राज्यों में तो ऐसे पोस्टर राष्ट्रीय राजमार्गों के साइन बोर्ड पर लगाए गए हैं. महत्वपूर्ण साइन बोर्डों पर लिखी जानकारियां ढंक दी जाती हैं. कोशिश होती है कि दौरा करने वाले नेता की चरण वंदना भी हो जाए और स्थानीय स्तर पर धौंस भी जम जाए.
ओएसजे/आईबी (एएफपी, डीपीए)