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मंदी की कगार पर पहुंची जर्मन अर्थव्यवस्था

१४ अगस्त २०१९

दूसरी तिमाही में भी निर्यात में गिरावट के कारण जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ा है. इसके जल्द उबरने के आसार भी नहीं हैं क्योंकि ब्रेक्जिट और टैरिफ को लेकर चलते विवादों के कारण मैनुफैक्चरिंग सेक्टर प्रभावित है.

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Deutschland Symbolbild Auto-Export
तस्वीर: Getty Images/D. Hecker

साल की पहली तिमाही से तुलना करें तो दूसरी तिमाही में कुल उत्पादकता में 0.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है. इसके कारण अब तक किसी भी तरह का राजस्व प्रोत्साहन देने में अनिच्छुक रही सरकार पर ऐसा करने का दबाव बढ़ता दिख रहा है. विशेषज्ञ बता रहे हैं कि अगर अब ऐसा नहीं किया गया तो देश की अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर जाने से बचाया नहीं जा सकेगा.

चीन की औद्योगिक उत्पादकता भी इस जुलाई बीते 17 सालों में सबसे कम गति से बढ़ी है. इसके कारण पूरे विश्व के बाजारों पर असर पड़ रहा है. यूरोजोन भी इस मंदी से प्रभावित है जहां की औद्योगिक उत्पादकता में वृद्धि की दर दूसरी तिमाही के दौरान घट कर केवल 0.2 फीसदी रह गई. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पारंपरिक रूप से निर्यात पर निर्भर रही है. यही कारण है कि जर्मनी पर इसका ज्यादा असर पड़ा है. लंबे समय से घरेलू स्तर पर जिस मांग का उसे फायदा मिल रहा था उसमें भी कमी आई है. मार्केट रिसर्च फर्म आईएनजी के विश्लेषक कार्सटेन ब्रजेस्की कहते हैं, "आज जीडीपी की रिपोर्ट ने एक तरह से जर्मन अर्थव्यवस्था के सुनहरे दशक का अंत कर दिया है." उन्होंने बताया कि "व्यापारिक संकट, वैश्विक अनिश्चितताएं और संघर्ष करते ऑटोमोटिव सेक्टर ने अंतत: इसे घुटनों पर ला दिया है."

फेडरल स्टैटिस्टिक्स ऑफिस की रिपोर्ट दिखाती है कि पहली तिमाही के आंकड़ों के हिसाब से सालाना वृद्धि दर 0.9 प्रतिशत से कम होकर 0.4 पर आ गई.  पूरे 2019 के लिए इसके 0.5 फीसदी होने का अनुमान है जबकि 2018 में यह 1.5 फीसदी थी. जर्मन वित्त मंत्री पेटर आल्टमायर ने भी इस तरह के वित्तीय आउटलुक को नरम बताया है और आने वाले 31 अक्टूबर को ब्रिटेन के ईयू से बाहर निकलने के बाद एक और झटका लगने की बात कही है. आल्टमायर ने जर्मन अखबार बिल्ड से बातचीत में इन आंकड़ों को जागने की घंटी बताते हुए कहा, "हम आर्थिक कमजोरी के चरण में हैं लेकिन अभी उसे मंदी नहीं कहा जा सकता. अगर हम सही कदम उठाएं तो उसे टाल सकेंगे."

देश के औद्योगिक सेक्टर की मांग है कि सरकार संतुलित बजट रखने की अपनी नीति को बदल कर नए ऋण के माध्यम से सार्वजनिक निवेश को बढ़ावा दे. लेकिन जर्मन सरकार की प्रवक्ता ने बर्लिन में कहा कि फिलहाल "अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए ऐसे किसी कदम की जरूरत नहीं समझी जा रही है." जर्मन अर्थव्यवस्था के इस साल भी थोड़ा बढ़ने का ही अनुमान है. निर्माण क्षेत्र में कमी देखने को मिली है लेकिन कुल मिलाकर घरेलू मांग बनी हुई है. बीते सालों में इससे देश की अर्थव्यवस्था को काफी मदद मिली थी. देश की ऊंची रोजगार दर, वेतन में मुद्रास्फीती को पाटने वाली बढ़ोत्तरी और सस्ते कर्ज के कारण उपभोक्ताओं का भरोसा बना रहा है. वित्तीय विश्लेषक ब्रजेस्की का मानना है कि स्टिमुलस के माध्यम से देश की मौद्रिक नीति में थोड़ी ढील देने की मांग आने वाले समय में राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन सकती है. सन 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के समय से ही जर्मन सरकार के आर्थिक प्रबंधन की इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना होती रही है.

आरपी/एनआर (रॉयटर्स)

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