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मंदी में भारतीय जायके ने तलाशे नए रास्ते

२ जुलाई २०१०

वित्तीय मंदी और इमिग्रेशन पर लगाम कसने के प्रयासों से ब्रिटेन में भारतीय रेस्तरां उद्योग को झटका लगा तो मंदी में मुनाफे के लिए नए रास्ते तलाशे गए. मसालेदार भारतीय व्यंजनों के प्रति लोगों की दीवानगी कम नहीं हुई है.

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तस्वीर: CNC

आंकड़े बताते हैं कि मंदी के चलते रेस्त्रां में भारतीय खाने का स्वाद चखने वाले लोगों की संख्या थोड़ी घटी है. ऐसे में व्यवसायी मुनाफे के लिए अब सुपरमार्केट में रेडीमेड भारतीय खाने की सप्लाई कर रहे हैं. कई लोगों को इस कारोबार में फायदा हो रहा है और मांग पूरी करने के लिए उनके सामने कई बार मुश्किलें भी आती हैं. कई प्रतिष्ठित भारतीय रेस्त्राओं ने हजारों पाउंड खर्च कर अपना विस्तार किया है लेकिन इमिग्रेशन को नियंत्रित करने के प्रयास के चलते स्टाफ की नियुक्ति करना आसान नहीं है.

ब्रैडफर्ड शहर में ही रेस्तरां उद्योग में पांच लाख पाउंड खर्च किए गए हैं जिससे नई नौकरियां पैदा हुई हैं. यही हाल लैस्टर, बर्मिंघम, मैनचेस्टर और लंदन का है जहां नए रेस्तरां खोले गए हैं. जिस तरह से भारतीय रेस्टोरेंट उद्योग का विस्तार हो रहा है, उसी तरह कई कंपनियां रेडीमेड भारतीय खाना सुपरमार्केट में बेच रही है. रेस्टोरेंट के मुकाबले सुपरमार्केट में मौजूद रेडीमेड व्यंजनों की कीमत काफी कम होती है और शायद यही कारण है कि लोग इसे खाना पसंद करते हैं.

लैस्टर में संजय फूड्स का टर्नओवर 50 फीसदी बढ़कर 15 लाख पाउंड हो गया है और उसने ब्रिटेन की एक बड़ी कंपनी से साझेदारी की है. संजय फूड्स के मैनेजिंग डायरेक्टर अतुल लखानी का कहना है कि कई बार चर्च में होने वाली शादियों में भारतीय भोजन परोसा जाता है. कुछ साल पहले तक ऐसा सुना भी नहीं जाता था लेकिन अब ऐसा हो रहा है. ब्रिटेन में भारतीय भोजन खासा लोकप्रिय है और चिकन टिक्का मसाला, बॉम्बे आलू, लैम्ब पसंदा, लैम्ब रोगन जोश, चिकन मद्रास जैसे व्यंजन लोगों को लुभाते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़

संपादन: ए कुमार