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मदद करेगा क्वाड्रोकॉप्टर

३० अप्रैल २०१४

प्राकृतिक आपदाएं अक्सर रोड, रेल और संचार नेटवर्क भी तबाह कर देती हैं. जर्मनी के वैज्ञानिक मॉडल हेलीकॉप्टरों को ऐसी तकनीक से लैस करने में लगे हैं ताकि दुश्वारी के बीच संचार सेवाएं फटाफट दुरुस्त की जा सकें.

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तस्वीर: Getty Images

फिलीपींस में हैयान तूफान, नवंबर 2013 में आए शक्तिशाली तूफान ने बिजली और इमरजेंसी सेवाओं को भी ध्वस्त कर दिया. लेकिन क्या क्वाड्रोकॉप्टर के जरिए आपदा के बावजूद दुशवार जगह तक पहुंचा जा सकता है. जर्मनी की इल्मेनाऊ यूनिवर्सिटी के आईटी एक्सपर्ट टोबियास सिमोन अपने साथियों के साथ ऐसे मिनी हेलिकॉप्टरों पर काम कर रहे हैं जो टूटे हुए रेडियो सम्पर्क को जोड़ सके, "आपदा वाले इलाके में हमारे सिस्टम का अलग अलग इस्तेमाल हो सकता है. जैसे नेटवर्क के सेंटरों का पता करना, नेटवर्क होल्स को खत्म करना. जरूरत होने पर नेटवर्क बनाना या मरम्मत करना."

इसके लिए टीम ने वायरलेस नेटवर्क टेक्नोलॉजी से लैस कॉप्टर बनाया है. तकनीक कुछ मोबाइल नेटवर्क जैसी है. आईटी एक्सपर्टों ने मॉडल हेलिकॉप्टर को इस तरह प्रोग्राम किया है कि वे खुद तय कर सकें कि कब उन्हें स्टार्ट करना है, उड़ना है और नेटवर्क को रिपेयर करना है. क्वाड्रोकॉप्टरों की खास बात यह है कि वह पूरी तरह लिनक्स सिस्टम पर आधारित है. इसका मतलब कि बेसिक स्टेबिलाइजेशन, नेविगेशन और अलग अलग कॉप्टरों के बीच मिशन कॉर्डिनेशन, सारा काम एक जगह से होता है.

ऑटोमैटिक रिपेयरिंग सिस्टम

ये कॉप्टर किस तरह से रेडियो संपर्क को फिर से बहाल करते हैं, इसे यह टेस्ट दिखाता है. चार नेटबुक के जरिए एक काम करने वाले नेटवर्क को सिमुलेट किया जाता है. यहां हर नेटबुक नेटवर्क रूटर का प्रतीक है. आपदा क्षेत्र में जैसे ही एक रूटर काम करना बंद कर देता है, बेस स्टेशन नेटवर्क में गड़बड़ी की खबर देता है. यह सूचना कॉप्टर को मिलती है वह अपने आप रिपेयर प्रोग्राम शुरू कर देता है. जब गड़बड़ी के स्रोत का पता चल जाता है तो कॉप्टर यह आकलन करता है कि नेटवर्क में कमी कहां है. कॉप्टर खुद वहां पहुंचता है और स्कैन मोड से एडहॉक मोड में चला जाता है.

इसका मतलब यह हुआ कि कॉप्टर नेटवर्क रूटर की जगह ले लेता है. वह अपनी वायरलेस नेटवर्क तकनीक की मदद से पड़ोसी रूटर के साथ इंटरनेट संपर्क कायम करता है. इससे नेटवर्क में आई दरार भर जाती है और पूरा नेटवर्क फिर से काम करने लगता है. कॉप्टर की सबसे बड़ी चुनौती उसके उड़ने का समय है. सबसे हल्का मॉडल सिर्फ 20 मिनट तक हवा में रह सकता है. लेकिन उड़ान के समय को बढ़ाने की संभावनाएं भी हैं.

टोबियास सिमोन कहते हैं, "कॉप्टर को किसी छत पर उतारा जा सकता है. उसे किसी ऊंची जगह पर उतार कर मोटर को और प्रोपेलर को ऑफ कर सकते हैं और फिर हेलिकॉप्टर के कंप्यूटर सिस्टम और कम्यूनिकेशंस को चालू रख सकते हैं. इस तरह ऊर्जा बचाकर इसे कई दिनों तक काम में लगाया जा सकता है."

भारत, पाकिस्तान और यूक्रेन जैसे देशों के आईटी एक्सपर्ट भी टोबियास के साथ क्वाड्रोकॉप्टर को बेहतर बनाने के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. अगले कुछ महीनों में ये मॉडल हेलिकॉप्टर बिना रिमोट कंट्रोल के साथ काम करने लगेंगे. एंटीना के जरिए वे आपस में अपने कामों का बंटवारा करेंगे. एक साल में वे मोबाइल नेटवर्क को रिपेयर करने की हालत में होंगे.

रिपोर्टः कर्स्टिन श्राइबर/एमजे

संपादनः आभा मोंढे