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मध्य पूर्व पर ट्रंप के फैसलों को पलटना कितना आसान है?

१९ जनवरी २०२१

अपनी सत्ता के आखिरी दिनों में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने यमन, इराक और उत्तरी अफ्रीका में जो कुछ किया है, उसकी भारी आलोचना हो रही है. नए राष्ट्रपति जो बाइडेन को पद संभालने के बाद खासी मशक्कत करनी होगी.

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यमन में कई साल से गृह युद्ध चल रहा है
यमन में ट्रंप के फैसले से सबसे ज्याादा मुश्किल हो सकती हैतस्वीर: AHMAD AL-BASHA/AFP/Getty Images

अपने कार्यकाल के आखिरी पंद्रह दिनों में ट्रंप प्रशासन ने मध्य पूर्व में अपनी विदेश नीति की छाप छोड़ने के लिए कई कदम उठाए हैं. बीते दिनों अमेरिका ने यमन में लड़ रहे ईरान समर्थित हूथी बागियों को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया जबकि एक इराकी सैन्य अधिकारी और कई ईरानी संगठनों पर पाबंदियां लगी दीं. इससे पहले दिसंबर में अमेरिका ने पश्चिमी सहारा इलाके के विवादित क्षेत्र पर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता दे दी.

इन सभी कदमों के जरिए ईरान को ज्यादा से ज्यादा अलग थलग और क्षेत्र में इस्राएल को मजबूत करने की कोशिश की गई है. लेकिन सबसे ज्यादा आलोचना यमन के बारे में किए गए फैसले की हो रही है.

विश्लेषकों का कहना है कि हूथी बागियों को आतंकवादी संगठन घोषित करने से युद्धग्रस्त यमन में काम कर रही सहायता एजेंसियां प्रभावित होंगी. संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने कहा कि इससे वहां "इतने बड़े पैमाने पर सूखा पड़ सकता है जैसा कि हमने लगभग 40 साल से ना देखा हो." संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने भी ऐसी ही आशंका जताई है.

घरेलू राजनीति और विदेश नीति का घालमेल

मोरक्को का विवाद दुनिया के सबसे पुराने विवादों में से एक है. दिसंबर में जब अमेरिका ने पश्चिमी सहारा पर मोरक्को की संप्रभुता को मान्यता दी तो इसका कड़ा विरोध हुआ. शायद ऐसा करके अमेरिका ने मोरक्को को इस्राएल के साथ फिर से राजनयिक संबंध कायम करने का इनाम दिया है.

विदेश मामलों पर यूरोपीय परिषद में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका कार्यक्रम निदेशक जूलियन बारनेस-डेकेय कहते हैं कि "ट्रंप घरेलू राजनीति का विदेश नीति के साथ बहुत बुरे तरीके से घालमेल कर रहे हैं. वे लोग एक तरह की विरासत छोड़कर जाना चाहते हैं. वे अमेरिका को ऐसी स्थिति में लाकर खड़ा करना चाहते हैं जिसे बाइडेन पलट ना पाएं."

लेकिन क्या बाइडेन इन सब कदमों को पलट पाएंगे? ऐसा अगर संभव भी हुआ तो यह प्रक्रिया कितनी जटिल और कितनी लंबी होगी? बर्लिन के हार्टी इंस्टीट्यूट में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रोफेसर मारिना हेंके कहती हैं, "सैद्धांतिक रूप से कुछ बदलाव तो तुरंत हो सकते हैं. तकनीकी रूप से बहुत से बदलाव एक ही दिन में हो सकते हैं."

मिसाल के तौर पर मोरक्को और पश्चिमी सहारा को लेकर फैसला एक घोषणा के रूप में था. इसे कानून का रूप नहीं दिया गया है. नए राष्ट्रपति एक नई घोषणा के जरिए इसे पलट सकते हैं. इसी तरह ट्रंप के अध्यादेशों की जगह नए अध्यादेश लाकर उन्हें बदला जा सकता है.

पश्चिमी सहारा
पश्चिमी सहारा में लंबे समय से आजादी और एक अलग देश की मांग उठ रही हैतस्वीर: Louiza Ammi/abaca/picture alliance

संवेदनशील विदेश नीति

वहीं किसी को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किए जाने का मामला थोड़ा जटिल है. यह प्रक्रिया इस तरह होती है: सबसे पहले विदेश मंत्री को घोषणा करनी होती है कि वह ऐसा कुछ करने जा रहे हैं. फिर इस पर आपत्ति दर्ज करने के लिए कांग्रेस के सदस्यों के पास सात दिन का समय होता है. हूथी बागियों के मामले में कांग्रेस के पास बीते रविवार तक का समय था, लेकिन कोई आपत्ति नहीं आई.

हेंके कहती हैं, "निश्चित तौर पर कांग्रेस दूसरे कामों में व्यस्त थी. इसलिए यह मामला थोड़ी समस्या पैदा कर सकता है." मौजूदा अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पेयो ने विदेश नीति के इर्द गिर्द ऐसा आवरण तैयार कर दिया है कि उसमें एकदम से छेड़छाड़ अमेरिकी मतदाताओं को नाराज कर सकती है, खासकर ईरान, चीन और क्यूबा से जुड़े मुद्दों पर.

हेंके कहती हैं, "अगर बाइडेन बहुत तेजी से कदम उठाएंगे तो रिपब्लिकनों को लगेगा कि वह आतंकवादियों से वार्ता करने की तरफ बढ़ रहे हैं. कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं चाहेगा कि किसी को ऐसा लगे. लेकिन अगर वे ज्यादा ही इंतजार करेंगे तो राष्ट्रपति एक झटके में अपनी कलम से इसे बदल देंगे."

बाइडने प्रशासन के नए विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन
बाइडेन ने बेहद अनुभवी एंटनी ब्लिंकेन को विदेश मंत्री पद के लिए चुना हैतस्वीर: Chandan Khanna/AFP/Getty Images

अरब-इस्राएल संबंध

ट्रंप प्रशासन ने विदेश नीति के मोर्चे पर कुछ ऐसे भी कदम उठाए हैं जिन्हें पलटने के बारे में बाइडेन प्रशासन नहीं सोचेगा. बारनेस-डेकेय कहते हैं, "इस्राएल के साथ अरब देशों के सामान्य होते संबंधों को दोनों ही पार्टियों का समर्थन हासिल है." वह कहते हैं कि अमेरिकी दूतावास को येरुशलम से वापस तेल अवीव ले जाने की संभावना नहीं दिखती.

ईरान का मुद्दा भी अमेरिका के नए प्रशासन के लिए बहुत अहम है. लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स में मध्य पूर्व केंद्र के सीनियर फैलो इयान ब्लैक कहते हैं, "मेरी राय में मुख्य मुद्दा है ईरानी डील में वापस लौटना. इसके लिए बहुत ज्यादा दबाव है. हालांकि ट्रंप प्रशासन ने बहुत मेहनत की है कि खाड़ी के देश इस्राएल के करीब जाएं और ईरान के खिलाफ रहें."

विशेषज्ञ पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि ईरानी परमाणु डील की समीक्षा में लंबा समय लगेगा. ईरानी संगठनों और ईरानी अधिकारियों पर लगे प्रतिबंधों की जटिल परतें हैं. इनमें से कई प्रतिबंध मई 2018 में अमेरिका के डील से हटने से पहले लगाए गए और कई उसके बाद. इन सब पर विचार करने में समय लगेगा. शायद एक साल. इस बारे में जल्दबाजी की उम्मीद कर रहे लोगों को निराशा हाथ लग सकती है.

रिपोर्ट: काथरीन शेर/एके

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