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"मनमोहन सिंह हाजिर हों"

११ मार्च २०१५

कोयला घोटाले की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को समन भेजा. अदालत ने पूर्व प्रधानमंत्री से आठ अप्रैल को अदालत में पेश होने को कहा.

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तस्वीर: Reuters/B. Mathur

10 साल तक देश के प्रधानमंत्री रह चुके मनमोहन सिंह को मिले समन से राजनीतिक गहमागहमी तेज हो गई. समन मिलने के बाद संसद में सिंह ने कहा, "मुझे पूरा भरोसा है कि सत्य सामने आएगा और मुझे सभी तथ्यों के साथ अपने मामले को आगे बढ़ाने का मौका मिलेगा. मैंने हमेशा कहा है कि मैं कानूनी समीक्षा के लिए तैयार हूं. जाहिर है कि मैं थोड़ा निराश भी हूं, लेकिन ये तो जीवन का हिस्सा है."

दिल्ली की विशेष अदालत ने बुधवार को कोयला आवंटन घोटाले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व कोयला सचिव पीसी परख और उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला समेत बाकी आरोपियों को समन भेजा. विशेष जज भारत प्रासहर ने सीबीआई की केस बंद करने की याचिका ठुकराते हुए आरोपियों को आठ अप्रैल को कोर्ट में हाजिर होने का कहा है.

सीबीआई को लताड़

इससे पहले मामले की जांच कर रही सीबीआई ने अदालत से केस को बंद करने की याचिका की. इस पर नाराजगी जताते हुए विशेष जज ने सीबीआई को लताड़ लगाई. अदालत ने कहा, "पहली नजर में इतने दस्तावेजी रिकॉर्ड हैं" कि परख और बिड़ला पर मुकदमा चलाया जा सके.

Kohlenlager in Indien ARCHIV 2012
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Jaipal Singh

केस हिंडाल्को कंपनी को कोयला खदान आवंटित करने का है. आरोप हैं कि आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी हिंडाल्को को खदान देने के लिए नियमों को ताक पर रखा गया. सीबीआई ने अक्टूबर 2014 में परख, बिड़ला और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की. एफआईआर के मुताबिक परख ने पहले किये गए फैसले को पलटते हुए हिंडाल्को को कोयला खदानें दीं. पूर्व कोयला सचिव पर हिंडाल्को को मदद पहुंचाने का आरोप है. जिस वक्त परख ने यह फैसले लिए उस वक्त कोयला मंत्रालय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास था.

मनमोहन सिंह पर आरोप

कोर्ट ने कहा कि पहली नजर में ही यह साफ है कि कोयला मंत्री और कोयला सचिव अलग अलग भूमिका निभा रहे थे, लेकिन दोनों की ये मंशा थी कि हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक दिये जाएं. 2004 में प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह ने करीब पांच साल तक कोयला मंत्रालय अपने पास रखा. इस दौरान कोयला आवंटन में बड़ी धांधलियां हुई.

कोयला घोटाला 2012 में सीएजी की रिपोर्ट के बाद सामने आया. सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए सरकार ने औने पौने दाम में कोयला खदानें बांटीं, जिसके चलते सरकारी राजस्व को अथाह नुकसान हुआ. सीएजी और मीडिया रिपोर्टों के बाद एक याचिका को संज्ञान में लेते हुए सरकार को तलब किया. अदालत के नोटिस के जवाब में तत्कालीन यूपीए सरकार बहुत ही बेढंगी दलील दी और कहा कि, यह मामला संसदीय समिति देख रही हैं, लिहाजा अदालत को इस मुद्दे पर विचार नहीं करना चाहिए.

सरकार के इस रुख के बाद हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच का आदेश दिया. मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में भी हुई. अगस्त 2014 में सर्वोच्च अदालत ने धांधलियों के चलते जुलाई 1993 के बाद हुए सभी कोयला खदान आवंटन अवैध घोषित कर दिए.

ओएसजे/आरआर (पीटीआई)