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ममता और मोदी की सियासत में पिसते छात्र

प्रभाकर मणि तिवारी
२४ अक्टूबर २०१७

भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के बीच लंबे अरसे से जारी राजनीतिक खींचतान का असर अब सांस्कृतिक आयोजनों पर भी पड़ने लगा है.

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Kombobild Narendra Modi Mamta Banerjee
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar/K. Frayer

इस मामले की सबसे ताजा मिसाल है केंद्र की ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत योजना'. राज्य सरकार ने इसमें हिस्सा लेने से इंकार किया तो केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने बंगाल के तीन केंद्रीय शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले बंगाल के छात्रों को ही इसके दायरे से बाहर कर दिया. बावजूद इसके इन संस्थानों ने राज्य के छात्रों को इसमें शामिल करने की पहल की है.

योजना  

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार बल्लभ भाई पटेल की 140वीं जयंती के मौके पर आपसी अनुभव और ज्ञान को साझा करते हुए एक श्रेष्ठ भारत के निर्माण के लिए ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' नामक महात्वाकांक्षी योजना का एलान किया था. इसके तहत किसी भी दो राज्यों के छात्रों की जोड़ी बनायी जानी है जो अपने ज्ञान और अनुभवों का आदान-प्रदान कर बेहतर तालमेल बनाएंगे और एक-दूसरे की धरोहर और सांस्कृतिक परंपराओं की सही जानकारी हासिल करेंगे.

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प्रधानमंत्री की ओर से इस योजना के एलान के बाद केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने बीते साल नवंबर में तमाम राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को पत्र भेज कर एक-दूसरे राज्यों के साथ करार कर सांस्कृतिक और शैक्षणिक भागीदारी बढ़ाने की अपील की थी. लेकिन बंगाल सरकार ने इसमें हिस्सा लेने से मना कर दिया था. पश्चिम बंगाल ऐसा करने वाला देश का अकेला राज्य है. दूसरी ओर, इधर पश्चिम बंगाल के उच्च शिक्षा विभाग की दलील है कि ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत' कार्यक्रम में भागीदारी के बारे में केंद्र से उसे कोई पत्र नहीं मिला है.

विवाद

हाल में केंद्रीय मानव संस्धान मंत्रालय की ओर से जब आईआईटी-खड़गपुर परिसर में "एक भारत श्रेष्ठ भारत" के आयोजन संबंधी सर्कुलर पहुंचा तो प्रबंधन यह देख कर हैरान रह गया कि उसमें बंगाल का कहीं नाम ही नहीं है. इस बारे में पूछताछ करने पर पता चला कि चूंकि बंगाल ने इस योजना में शामिल होने से इंकार कर दिया है इसलिए उसके छात्रों को किसी दूसरे राज्यों के छात्रों के साथ नहीं जोड़ा गया है. राज्य के उच्च शिक्षा सचिव आरएस शुक्ल कहते हैं, "क्या आप हमारी हालत की कल्पना कर सकते हैं? बंगाल में स्थित इस संस्थान के आधे से ज्यादा कर्मचारी और लगभग 20 फीसदी छात्र इसी राज्य के हैं. अब जब हमारे परिसर में कार्यक्रम आयोजित होगा तो इन छात्रों को महज दर्शक की भूमिका में कैसे रखा जा सकता है?"

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शुक्ल कहते हैं कि केंद्र की ओर से इस कार्यक्रम में शामिल होने का कोई प्रस्ताव ही नहीं मिला. ऐसे में इससे इंकार करने का सवाल कहां पैदा होता है? इसके अलावा आईआईटी में आयोजनों की जिम्मेदारी केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की है, राज्य सरकार की नहीं.

अब आईआईटी के अलावा राज्य में दो अन्य केंद्रीय शिक्षण संस्थानों विश्वभारती विश्वविद्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियरिंग साइंस और टेक्नोलाजी (आईआईइएसटी) ने भी बंगाल के छात्रों को इस योजना में शामिल करने की पहल की है. उक्त योजना के तहत नवंबर के अलावा अगले साल जनवरी में परिसर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना है. आईआईटी-खड़गपुर के निदेशक पीपी चक्रवर्ती कहते हैं, "राज्य के किसी भी छात्र को इस योजना के दायरे से बाहर नहीं रखा जाएगा." इससे छात्रों में इस बात की खुशी है कि अब वह भी इन कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर सकते हैं.

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शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय के कार्यवाहक वाइस –चांसलर स्वपन कुमार दत्त कहते हैं, "हमने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को एक पत्र भेज कर इस गतिरोध को दूर करने की अपील की है. बंगाल के छात्रों की भागीदारी के बिना इस कार्यक्रम का आयोजन ही नहीं हो सकता." आईआईइएसटी के निदेशक अजय राय कहते हैं, "संस्थान को केंद्र का जो सर्कुलर मिला है उसमें बंगाल के छात्रों को इस कार्यक्रम से अलग रखा गया है. लेकिन हम यहां तमाम छात्रों को इसमें शामिल करने के इच्छुक हैं."

वैसे, विभिन्न कार्यक्रमों पर ममता बनर्जी सरकार और केंद्र का विवाद कोई नया नहीं है. वह चाहे 15 अगस्त मनाने का सर्कुलर हो या फिर प्रधानमंत्री के भाषण के शैक्षणिक संस्थानों में सीधे प्रसारण का, सरकार उनका विरोध करती रही है. राज्य सरकार इन कार्यक्रमों को शैक्षणिक परिसरों के भगवाकरण का बीजेपी का प्रयास बताती रही है. शिक्षाविदों का कहना है कि सांस्कृतिक कार्यक्रमों को राजनीति की छाया से दूर रखा जाना चाहिए. लेकिन बीजेपी-विरोध की नीति पर बढ़ती ममता बनर्जी को इसकी परवाह कहां है!