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मर्दों की कुकिंग क्लास

२७ फ़रवरी २०१४

कितने भारतीय मर्द खाना बनाने में फख्र महसूस करते होंगे? आज भी देश का एक बड़ा वर्ग रसोई का काम औरतों का मानता है. ऐसे में पुणे की मेधा गोखले मर्दों को किचन संभालना सिखा रही हैं. इसके पीछे उनका खास मकसद है.

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तस्वीर: Costa Pelechas

पुणे के सदाशिव पेठ में मेधा के घर से आ रही खाने की शानदार खुशबू उनका घर ढूंढना आसान बना देती है. घर के अंदर पहुंच कर अलग ही मंजर देखने को मिलता है. मेधा के इर्द गिर्द पुरुषों का जमघट और बीच में खड़ी मेधा पैन में चम्मच हिला रही हैं. हर कोई देखना चाहता है कि अब अगला स्टेप क्या होगा, वह अगला कौन सा मसाला डालेंगी. मेधा इन लोगों को खाने की टिप्स के साथ यह भी सिखाती हैं कि खाना बनाते समय आसपास स्लैब पर सफाई कैसे रखी जाए.

मेधा स्टेज और टीवी कलाकार होने के साथ लेखिका भी हैं. उन्होंने डॉयचे वेले से कहा, "पुरुषों के लिए कुकिंग क्लास के जरिए मैं उनकी मानसिकता बदलना चाहती हूं." भारत में इस तरह की कुकिंग क्लास आम नहीं है. मेधा कहती हैं कि भारत में यह धारणा आम है कि पुरुषों का रसोई घर में कोई काम नहीं. खासकर मध्यमवर्गीय परिवारों में लड़कों को यह नहीं सिखाया जाता है. जबकि ज्यादातर होटलों में शेफ खानसामा पुरुष ही होते हैं. बहरहाल उन्होंने कहा, "ज्यादातर भारतीय परिवारों में पुरुष उम्मीद करते हैं कि बिना इस बात की सुध लिए कि खाना कैसे बनता है, स्वादिष्ट खाने की थाली मेज पर उनके सामने सज कर आ जाए."

शादी शुदा मर्द खाना क्यों बनाएं

53 वर्षीय मेधा यह काम बड़ी सावधानी और हंसी मजाक के साथ करती हैं ताकि पुरुष इस काम को सीखने में सहज महसूस करें. कई ऐसे युवक भी खाना बनाना सीखने आते हैं जो जल्द ही पढ़ाई के लिए विदेश जाने वाले हैं. मेधा ने बताया कि कई शादी शुदा और ऐसे पुरुष भी उनकी क्लास में आते हैं जो अकेले रहते हैं या जो विधुर हैं.

Kochkurse für Männer in Indien
मेधा चाहती हैं मर्द भी जानें कि परिवार का पेट भरना आसान काम नहीं.तस्वीर: Costa Pelechas

मेधा बताती हैं, "कई पुरुष जब मेरी क्लास में आते हैं तो वे इस बात की ग्लानि से भरे होते हैं कि उन्हें स्टोव जलाना या चाय तक बनाना नहीं आता. मैं उन्हें इस बात का आश्वासन दिलाती हूं कि इसमें कोई बुरी बात नहीं, मैं उन्हें शुरुआत से सिखाने को तैयार हूं."

मेधा चार दिन की कुकिंग क्लास के अलावा कई बार इन लोगों से बात कर उनकी पारिवारिक स्थिति को समझने की भी कोशिश करती हैं. कई लोग इस बात का दबाव भी महसूस करते हैं कि अगर वे घर में खाना बनाते हैं तो समाज में अक्सर उनका मजाक उड़ाया जाता है.

जावेद इनामदार की पत्नी भी नौकरी करती हैं, इसलिए वह भी मेधा की क्लास में आते हैं ताकि अपनी पत्नी की किचन में मदद कर सकें. उन्होंने बताया कि वह अपने साथियों को नहीं बताते हैं कि वह घर लौटकर किचन का काम भी करते हैं. जावेद ने कहा, "अगर आप किसी को बताते हैं कि आप घर जाकर बीवी के लिए खाना बनाते हैं तो आपको अच्छी नजर से नहीं देखा जाता. वे अक्सर इस तरह के ताने भी मारते हैं कि शादी ही क्यों की अगर खुद ही खाना बनाता था."

महिलाओं की कद्र

मेधा मुंबई में बड़ी हुईं. वह बताती हैं वह अपने पिता से काफी प्रभावित रहीं, जो मां की तबियत खराब होने पर या उनके मायके जाने पर किचन का काम संभालने में शर्माते नहीं थे. 14 साल की उम्र तक मेधा को भी तरह तरह की रेसिपी पढ़ कर खाना बनाने का खूब शौक हो गया था. उन्होंने बताया कि उनका भाई भी उनकी किचन में मदद किया करता था. उनके पति खाना बनाने के खास शौकीन तो नहीं लेकिन जरूरत पड़ने पर वह मेधा की मदद करने में हिचकिचाते नहीं हैं.

मेधा मानती हैं, "जब पुरुष किचन में महिलाओं के साथ जिम्मेदारी बांटने लगते हैं को वे महिलाओं को दूसरी नजर से देखते हैं. मेरी क्लास में आने वाले कई लोगों ने मुझे बताया कि जब से उन्होंने यहां आना शुरू किया है वे महिलाओं की इज्जत करना सीख गए हैं और उन्हें समझ आने लगा है कि परिवार का पेट भरना आसान काम नहीं."

मेधा मानती हैं कि आधुनिक समाज के रहन सहन के तरीकों में घर पर खाना बनाने का चलन कम होता जा रहा है. कामकाजी महिलाओं को जब घर पर पति का साथ नहीं मिलता तो वे भी अक्सर खाना बनाने से बचने लगती हैं. ऐसे में रेस्तरां और फास्टफूड वाली जीवनशैली को बढ़ावा मिल रहा है. उन्होंने कहा, "पुरुष या महिला, हर किसी को अपना खाना खुद बनाना आना चाहिए. खुद का बनाया हुआ खाना पोषक और तसल्ली देने वाला होता है."

रिपोर्ट: सोनिया फलनिकर/एसएफ

संपादनः आभा मोंढे

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