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महिलाओं ने मांगी शौच की आजादी

११ मार्च २०१६

मुंबई में कई गैर सरकारी संगठन महिलाओं के लिए पब्लिक टॉयलेट की बेहतर व्यवस्था की मांग कर रहे हैं. उन पुरुषों से भी इस अभियान में शामिल होने की मांग की जा रही है जो खुले में शौच करने को विवश हैं.

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Bildergalerie Indien Hygiene
तस्वीर: PRAKASH SINGH/AFP/Getty Images

इन संगठनों का मानना है कि लिंग भेद को एक किनारे रख एक दूसरे के प्रति संवेदनशीलता से समस्याओं का जल्द समाधान निकल सकता है. शौच के अधिकार की मांग से प्रेरित यह अभियान 33 गैर मुनाफा संगठनों ने छेड़ा है. उनका मकसद है मुंबई में मुफ्त, साफ और सुरक्षित पब्लिक टॉयलेट के अभाव की तरफ ध्यान खींचना. 2.2 करोड़ की आबादी वाले शहर में भुगतान कर इस्तेमाल किए जाने वाले 11,000 शौचालयों में से एक तिहाई ही महिलाओं के लिए हैं.

इस अभियान से जुड़ी समाजसेविका सुप्रिया सोनर कहती हैं, "पुरुषों और महिलाओं के बीच सुविधाओं में भारी अंतर है, ऐसा खासकर लिंग भेद को लेकर अधिकारियों की असंवेदनशीलता के कारण है." इसीलिए इस अभियान में पुरुषों से भी जुड़ने का आह्वान किया जा रहा है. उन्हें एहसास दिलाया जा रहा है कि उनके पास भी पर्याप्त सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.

Infografik Cost of the lack of proper sanitation

झुग्गियों में रहने वालों के लिए समस्या और भी बड़ी है. कंस्ट्रक्शन के इलाकों और सड़कों पर रहने वालों के लिए भी विकल्प मौजूद नहीं हैं. महिलाओं के लिए मौजूद पब्लिक टॉयलेट बेहद गंदे हैं. अक्सर उनके दरवाजे टूटे होते हैं या फिर लाइट या पानी नहीं होता. शौचालय ना होने पर अक्सर महिलाएं सुनसान जगह ढूंढती हैं जिसमें उनके यौन उत्पीड़न का भी खतरा रहता है.

समाजसेवी संस्था दसरा के मुताबिक कई मामलों में देखा गया है कि टॉयलेट पास ना होने की स्थिति में कामकाजी महिलाएं कम पानी पीकर दिन गुजारना पसंद करती हैं ताकि उन्हें शौचालय ना जाना पड़े. अक्सर वे खुद को 13 घंटे तक शौचालय ना जाने पर मजबूर करती हैं जिससे उनके ब्लाडर पर जोर पड़ता है. ऐसा करने से उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है.

Modi Sauberkeit Kampagne 02.10.2014
तस्वीर: UNI

मुंबई में अक्सर पुरुष सड़क किनारे पेशाब करते दिख जाते हैं. महिलाओं के लिए शौचालय बनाए जाने के लिए 100 इलाकों पर निर्णय लिया गया था. लेकिन सोनर के मुताबिक, "इस दिशा में आगे कुछ नहीं हुआ और रकम खर्च होने की समय सीमा निकल गई."

वह कहती हैं, "यह महिलाओं के गरिमा की बात है. हम मुंबई कॉर्पोरेशन से इस बारे में सोचने की मांग करते हैं. और हम चाहते हैं कि जो पुरुष खुले में पेशाब करते हैं वे भी हमारे साथ इस अभियान में शामिल हों ताकि प्रशासन पर ज्यादा दबाव बनाया जा सके."

भारत में शौचालयों का अभाव देश भर की बड़ी समस्या है. दसरा के मुताबिक देश की करीब 6.3 करोड़ किशोर लड़कियों के पास शौचालय नहीं हैं. शौचालयों के आभाव के कारण बड़ी संख्या में देश की लड़कियां माहवारी शुरू होने पर स्कूल जाना छोड़ देती हैं.

संयुक्त राष्ट्र की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक यह अजीब विडम्बना है कि भारत में प्रति 100 व्यक्ति मोबाइल फोन की संख्या ज्यादा है और टॉयलेट की कम. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार सैनिटेशन पर होने वाले हर रुपये खर्च पर गरीबी में कमी और स्वास्थ्य खर्चों में कटौती के रूप में 3 से 34 रुपये का रिटर्न आता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान के साथ इस समस्या से निबटने की कोशिश की है. इसके अलावा 20 शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए अलग से 7.5 अरब डॉलर का अभियान चल रहा है.

एसएफ/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)