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महिलाओं ने लगाया शिकार पर अंकुश

२९ अगस्त २०१४

'बिल्ली के हाथों छीके की रखवाली' कुछ ऐसा ही जोखिम मोल लिया दुधवा टाइगर रिजर्व के एक वन अफसर ने और नतीजे शानदार रहे. यहां महिलाओं की निगरानी में शिकार में भारी कमी आई.

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Indien Tharu Frauen auf Patrouille in Dudhwa Park
तस्वीर: DW/S. Waheed

दुधवा के गांवों की जिन थारू महिलाओं पर वन अपराधों में संदिग्ध रूप से शामिल होने का शक था, उन्हीं को इसे रोकने पर लगा दिया गया. दुधवा पार्क की सीमा के अंदर ही थारू जनजातियों के 37 गांव हैं. मान्यता है कि थारू जनजाति के लोग प्राचीन काल से जंगलों में रहते आए हैं और जंगली जीवन के अभ्यस्त होते हैं. मूल रूप से नेपाल की थारू जनजाति के लोग दुधवा में काफी समय से बसे हैं. दुधवा प्रशासन का मानना रहा है कि दुधवा में वन अपराध स्थानीय थारू लोगों के सहयोग के बिना नहीं हो सकता और दुधवा में जंगली शिकार काफी समय से बड़ी समस्या बना हुआ है.

इसे रोकने के लिए बहुतेरे प्रयास किए गए लेकिन अंकुश नहीं लग सका. एक वन अधिकारी वीके सिंह ने मॉनसून पैट्रोलिंग के लिए जब थारू महिलाओं को तैनात करने का प्रस्ताव रखा तो पहले तो उच्चाधिकारी चौंके लेकिन जब उन्होंने अपनी विशेष दलीलें दीं तो कहा गया कि एक बार यह जोखिम उठा लेने में हर्ज नहीं है.

नतीजा यह कि थारू कबीले की 24 महिलाओं का प्रांतीय रक्षक दल में नामांकन करा कर उन्हें दुधवा पार्क में मॉनसून पैट्रोलिंग के लिए लगाया गया. इससे जंगली चोरी में काफी कमी आई. वीके सिंह बताते हैं कि अवैध तरीके से मछली मारने की घटनाएं इन महिलाओं के आ जाने के बाद से काफी कम हुईं. उनके अनुसार ये महिलाएं इस क्षेत्र की अच्छी जानकार हैं, दिन में 12-14 किलोमीटर पैदल चल लेती हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि पूरे इलाके की मुखबिरी करती हैं. इसी मकसद से इनको तैनात किया गया है.

Indien Tharu Frauen auf Patrouille in Dudhwa Park
तस्वीर: DW/S. Waheed

इन्हें संकेत मिलते रहते हैं कि कहां पर चोरी की आशंका है और किस गिरोह के लोग चोरी करने वाले हैं. वीके सिंह ने बताया कि इन्हें 142 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से पारिश्रमिक दिया जाता है. वो बताते हैं कि वर्दी, पारिश्रमिक और मान सम्मान पाकर ये महिलाएं काफी खुश हैं. इनमें से अधिकांश मामूली साक्षर हैं.

पहले कहा जाता था कि इन्हीं थारू महिलाओं की वजह से इलाके में अपराध होते हैं. जंगली शिकार करने वाले इन्हीं की सूचनाओं पर शिकार करते हैं क्योंकि इन महिलाओं को वन विभाग के कर्मचारी भी आने जाने से रोकते नहीं हैं. इसीलिए इनके कंधों पर ही वन की रक्षा का भार वीके सिंह ने डाल दिया. उन्होंने बताया, "इन 24 थारू महिलाओं के साथ 82 वन रक्षक और तीन गाड़ियां भी दी गई हैं. इनकी निगरानी को अभी कुछ ही समय हुआ है और अवैध रूप से मछली मारने के 11 मामले पकड़ में आ चुके हैं. कई अन्य अपराध भी घटे हैं और सबसे बड़ी बात यह कि अवैध आवाजाही को भी हम रोक पाने में कामयाब होते दिख रहे हैं क्योंकि अब हमें मुखबिरी की समस्या नहीं रही." वह बताते हैं कि इन महिलाओं से निगरानी कराने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि उन जंगली रास्तों में भी अब पैट्रोलिंग होने लगी है जहां थारू जनसंख्या वाले गांव हैं. इन क्षेत्रों में वन रक्षक पहले जाने से डरते थे.

इस मामले का दूसरा पहलू यह भी है कि दुधवा के 70 फीसदी से अधिक वन रक्षकों की आयु 50 वर्ष से ज्यादा है. इनसे अब बहुत दूर तक पैदल चला नहीं जाता. एक और मुश्किल है कि दुधवा में वन रक्षक के पद 297 हैं जिनमें से केवल 198 पदों पर ही रक्षक कार्यरत हैं बाकी पद खाली हैं. इन हालात में थारू महिलाओं की तैनाती ने दुधवा प्रशासन को राहत दी है. दुधवा टाइगर रिजर्व के निदेशक संजय सिंह भी इस कामयाबी से खुश हैं, "थारू महिलाएं पार्क के अंदर पहले भी रहती थीं और अब भी रहती हैं. फर्क इतना है कि अब ये हमारे लिए काम कर रही हैं." उन्होंने बताया कि जंगल के पेचीदा विषयों से ये महिलाएं बखूबी वाकिफ हैं, इसलिए इन्हें हम दक्ष मानते हैं.

रिपोर्टः एस वहीद, लखनऊ

संपादनः ए जमाल