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मांस और मवेशियों पर टैक्स लगाने से रुकेगी महामारी!

३० अक्टूबर २०२०

वैज्ञानिकों ने मांस और मवेशियों पर टैक्स लगाने का सुझाव दिया है. उनका कहना है इससे महामारी को रोका जा सकेगा. इसके लिए स्थानीय लोगों को जंगल और जमीन पर अधिकार देना और उनकी सलाह मानने को भी कारगर बताया जा रहा है.

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Frisch geschlüpfte Hühner-Küken
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Kondratuk

वैज्ञानिक इसे प्रकृति की बेहतर सुरक्षा के लिए जरूरी बता रहे हैं और इस बारे में एक रिसर्च रिपोर्ट भी छपी है. रिसर्च का नेतृत्व करने वाले पीटर डासचाक एक जीवविज्ञानी हैं. रिपोर्ट पेश करते वक्त उन्होंने पत्रकारों से कहा, "जरूरत से ज्यादा मीट खाना हमारी सेहत के लिए नुकसानदेह है. यह पर्यावरण पर होने वाले असर के लिहाज से भी लंबे समय तक नहीं चल सकता. यह महामारियों का जोखिम भी बढ़ाने वाला है."

इनफ्लुएंजा वायरस के फैलाव और नई महामारी के विस्तार के पीछे मुख्य वजह "अतुलनीय रूप से भारी मात्रा में पोल्ट्री और पोर्क का दुनिया के कुछ इलाकों में उत्पादन है, जो पूरी दुनिया में होने वाली खपत के अनुरूप है." इसके अलावा गोमांस के लिए मवेशियों को पालना भी लातिन अमेरिका में जंगलों की कटाई और इकोसिस्टम के नुकसान की एक जानी मानी वजह है.

Thailand - Hühnerfarm - Chicken
तस्वीर: Getty Images/P. Bronstein

इस रिसर्च रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि कोविड-19 की तुलना में महामारियां और ज्यादा आएंगी, तेजी से फैलेंगी, भारी नुकसान होगा और ज्यादा लोगों की जान जाएगी. इसे रोकने का यही तरीका है कि उन आवासों को खत्म होने से बचाया जाए जो वायरसों को जंगली जीवों से इंसानों तक पहुंचने से रोकते हैं.

रिसर्चरों ने सहकारों से यह भी अनुरोध किया है कि वे महामारी को रोकने के लिए कदम उठाएं ना कि उनके उभरने के बाद उनसे बचने के लिए. यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय स्तर के 22 वैज्ञानिकों ने मिल कर तैयार की है. इसमें मोटे तौर पर आमसहमति है कि लोगों को मीट खाना घटाना होगा. इसमें शामिल डच वैज्ञानित थिज्स कुइकेन का कहना है, "आपकी खुराक को इस तरह बदलना होगा ताकि आप उचित मात्रा में मीट खाएं जो महामारियों का खतरा घटाने के साथ ही जैव विविधता और प्रकृति को बचाने के लिए बहुत जरूरी है."

जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान

डासचाक मानते हैं कि मवेशियों पर या फिर मीट पर टैक्स लगाने का फैसला "विवादित" है लेकिन भविष्य की महामारियों को रोकने के लिए यह कीमत अभी चुकानी होगी. उन्होंने कहा, "नई पीढ़ी आ रही है जो इस तरह के निजी फैसले करना चाहती है, जिनसे टिकाऊ जीवनशैली बन सके और हम उम्मीद कर रहे हैं कि इससे हमारी धरती की जैवविविधता, जलवायु परिवर्तन और महामारियों के जोखिम से रक्षा हो सकेगी."

तेजी से बढ़ता वैश्विक मवेशी उद्योग "बहुत मुनाफे वाला" वाला है और पहले की रिसर्चों से पता चलता है कि मीट के उत्पादन और उपयोग पर टैक्स लगाने से उद्योग को इस तरह व्यवहार करने पर विवश किया जा सकेगा, जिससे कि धरती और लोगों का कम नुकसान हो." वे मानते हैं कि यह एक ऐसी रणनीति है जो अपनाई जा सकती है और इसके लिए सरकारी और अंतरसरकारी संगठनों को आगे ले जाना होगा.

Bildergalerie Lebensmittel Skandal Hühnerstall Italien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

खासतौर से विकसित देशों और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों में मांस की भारी मांग ने जैव विविधता को खतरा पहुंचाया और साथ ही यह जलवायु परिवर्तन में भी बड़ा योगदान दे रहा है. यह रिपोर्ट अंतर्सरकारी साइंस पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम ने जारी की है. इसके सदस्यों में 130 देश शामिल हैं. इसने ध्यान दिलाया है कि ब्राजील और दूसरे अमेजन देशों में वर्षावनों की क्षति के कारण कार्बन उत्सरन बढ़ गया है और इससे धरती की गर्मी बढ़ रही है.

घरेलू और स्थानीय उपाय

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन खतरनाक और महंगी बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है. इनमें टिक बोर्न एंनसेफाइटिस भी है जो एक घातक बीमारी है और उत्तरी यूरोप में सिर उठा रहा है.

इस रिसर्च में यह भी कहा गया है कि घरेलू लोगों और स्थानीय समुदायों के पास जो जानकारी है, उसे महामारी को रोकने के उपायों में शामिल किया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए लंबे समय से जंगली जानवरों का शिकार करते रहने के कारण वे लोग सुरक्षित रहने के तरीकों के बारे में लंबे समय से जानकारी रखते हैं.

बोलिविया के वैज्ञानिक कार्लोस जामब्राना टोरेलियो का कहना है कि जंगल में रहने वाले लोगों को उस जमीन पर अधिकार देने से भी महामारी के खतरे को रोकने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा, "जमीन पर स्वामित्व को बेहतर करना... जंगल की कटाई को इन इलाकों में रोकेगा, इसके बाद वहां कृषि का स्थानीय समुदायों में विस्तार नहीं होगा और इससे महामारी का उभार रुकेगा."

एनआर/आईबी (रॉयटर्स)

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