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फेसबुक पर बच्चों का झूठा खाता

१९ मई २०१४

भारत में कानूनी पाबंदी के बावजूद 13 साल या उससे कम उम्र के लगभग 73 फीसदी बच्चे फेसबुक समेत विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सक्रिय हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

विडंबना यह है कि ज्यादातर मामलों में उनके माता-पिता ही उम्र के बारे में झूठी जानकारी देकर ऐसी साइटों पर उनका खाता खुलवाने में सहायता करते हैं. व्यापार संगठन एसोचैम के एक ताजा सर्वेक्षण में इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा हुआ है.

सर्वेक्षण

द एसोचैम सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन (एएसडीएफ) ने दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, बैंगलूर, अहमदाबाद, पुणे, लखनऊ और देहरादून जैसे देश के प्रमुख शहरों में ऐसे चार हजार से ज्यादा माता पिता से बातचीत की जिनके बच्चों की उम्र आठ से 13 साल के बीच है. इनमें से 75 फीसदी लोगों को पता था कि उनके बच्चे सोशल नेटवर्किंग साइटों पर सक्रिय हैं. ऐसे माता-पिता ने ही शुरूआत में बच्चों को अपनी उम्र बढ़ा कर बताने की अनुमति दी थी. लगभग 82 फीसदी लोगों ने तो खुद ही अपने बच्चों का खाता खोला. सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर लोगों का मानना था कि फेसबुक जैसी साइटों पर खाता खोलने के लिए एक न्यूनतम उम्र जरूरी है. लेकिन 78 फीसदी लोग मानते हैं कि स्कूली गतिविधियों की वजह से बच्चों की उम्र कम होने के बावजूद उनको फेसबुक पर खाता खोलने की अनुमित देने में कोई बुराई नहीं है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि कम उम्र में ऐसी साइटों पर खाता खोलने की स्थिति में बच्चों को फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है. वह साइबर धमकी और ब्लैकमेलिंग के शिकार हो सकते हैं.

मकसद

एसोचैम के सचिव डी.एस. रावत कहते हैं, ‘हमने इस सर्वेक्षण के जरिए अभिभावकों को भावी खतरों से आगाह करने का प्रयास किया है. कम उम्र में ऐसी साइटों पर सक्रिय रहने की स्थिति में बच्चों को कई बार ऐसे लोगों और स्थितियों से दो-चार होना पड़ता है जो उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.' एसोचैम की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डॉ. बीके राव कहते हैं, "कम उम्र के बच्चों में अनुभव और सोशल नेटवर्किंग साइटों के इस्तेमाल के दौरान कोई फैसला लेने की क्षमता की कमी होती है. बच्चों की असली उम्र का पता लगते ही आनलाइन यौन शोषण और दूसरे कई खतरे बढ़ जाते हैं." वह कहते हैं कि तकनीक की आसान उपलब्धता और अभिभावकों की समुचित निगरानी कम होने की वजह से बच्चों में ऐसी साइटों का तकनीकी नशा तेजी से बढ़ रहा है.

सर्वेक्षण से यह बात भी सामने आई है कि जिस घर में माता-पिता दोनों काम करते हैं वहां बच्चों में ऐसी साइटों की भारी लत है. माता-पिता में से किसी एक के नौकरी करने की स्थिति में बच्चे डर के मारे ऐसी साइटों पर ज्यादा समय नहीं देते. लेकिन महानगरों में अब ज्यादातर परिवारों में माता-पिता के कामकाजी होने की वजह से यह समस्या गंभीर होती जा रही है.

साइटों पर सक्रियता

अध्ययन के मुताबिक, शुरूआत में तो बच्चे अपने मित्रों और सहपाठियों के साथ संक्षिप्त चैटिंग करते हैं. लेकिन आगे चल कर वह अपनी तस्वीरें और वीडियो ऐसी साइटों पर अपलोड करने लगते हैं. उसके बाद ही उनके आनलाइन शिकारियों के चंगुल में फंसने का खतरा बढ़ जाता है. इस उम्र के बच्चों में फेसबुक सबसे लोकप्रिय है. इसके अलावा लगभग 85 फीसदी बच्चे गूगल प्लस और स्नैपचैट जैसी दूसरी लोकप्रिय साइटों का इस्तेमाल करते हैं.

बचाव के उपाय

सामाजिक विशेषज्ञों का कहना है कि अभिभावकों को अपनी व्यस्तता में से कुछ समय निकाल कर बच्चों की गतिविधियों पर निगाह रखनी चाहिए. महानगर के एक कालेज में समाज विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर डॉ. धीरेन दासगुप्ता कहते हैं, "कामकाजी होने की वजह से महानगरों में मां-बाप अक्सर अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पाते. ऐसे में स्कूल में या स्कूल की छुट्टी के बाद बच्चे इन साइटों को ही अपने मनोरंजन का साधन बना लेते हैं." बाल मनोवैज्ञानिक डॉ. सावित्री मंडल भी उनसे सहमत हैं. वह कहती हैं, "ज्यादातर घरों में माता-पिता बच्चों की जिद पर उनको स्मार्टफोन और टेबलेट जैसे तकनीकी उपकरण तो खरीद कर दे देते हैं. लेकिन आगे चल कर वह इसका ख्याल नहीं रखते कि बच्चा उन उपकरणों का कैसा इस्तेमाल कर रहा है." एसोचैम की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि अभिभावकों को बच्चों के साथ हमेशा दोतरफा और पारदर्शी बातचीत जारी रखना चाहिए. उनमें उपेक्षा की भावना नहीं पनपने देना चाहिए. इसी से आगे होने वाली समस्याओं पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः आभा मोंढे