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मानव मल से खाद बना कर हल होगी कई मुश्किलें

आयु पुरवानिंगसीह
२९ दिसम्बर २०१८

इंसान के बदबूदार और गंदे मल को निबटाना भारत और कई दूसरे विकासशील देशों के लिए एक बड़ी समस्या रही है. रिसर्चर इस मल से खाद बनाने की कोशिश में हैं. उनकी यह कोशिश रंग ला रही है.

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Uni Bonn Fadli Mustamin Agrarwissenschaftler aus Indonesien
तस्वीर: DW

विशेषज्ञों का कहना है कि मानव मल खेती में खाद की तरह इस्तेमाल हो सकता है. एक आकलन है कि 10 लाख लोगों के मल से हर साल 1,200 टन नाइट्रोजन, 170 टन फॉस्फोरस, 330 टन पोटैसियम बनाया जा सकता है.

जर्मनी के बोखुम की रूअर यूनिवर्सिटी में एक टीम इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या शहरी कचरे का जमीन और खेती में इस्तेमाल हो सकता है. इस टीम में बॉन यूनिवर्सिटी के एक इंडोनेशियाई रिसर्चर फादली मुस्तमिन भी हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि वो मानव मल पर रिसर्च कर उससे मिट्टी को उपजाऊ बनाने में कुछ सफलता मिली है.

Uni Bonn Fadli Mustamin Agrarwissenschaftler aus Indonesien
तस्वीर: DW

फादली मल को एक सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल खाद बनाने में जुटे हैं. इसके लिए सबसे आसान और किफायती तरीका है मल की गाद को जैविक कचरे के साथ कम्पोस्ट बनाना और उनसे फिर अहम पोषक तत्वों को खाद मे बदलना.

कम्पोस्ट बनाने में आमतौर पर तापमान 71 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है जिसके कारण मल में मौजूद रोगाणु और कीड़े मर जाते हैं. मल के कम्पोस्ट बनाने का काम श्रीलंका में हुआ और फिर मल की गोलियों को बोखुम लाया गया. इन गोलियों में 70 फीसदी मानव मल और 30 फीसदी जैविक कचरा है. फादली ने मिट्टी तैयार किया जिसमें इन गोलियों को मिलाया गया.

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तस्वीर: DW

लैब में फादली ने मिट्टी की उर्वरता पर मल की गोलियों के असर का पता करने के लिए कुछ विश्लेषण किए. जैसे कि मिट्टी में होने वाली श्वसन की प्रक्रिया, पोषक की मौजूदगी और मिट्टी का कार्बनिक पदार्थ. फादली ने बताया, "50 दिनों की इनक्यूबेशन प्रक्रिया के जरिए हमें पता चलता है कि सूक्ष्म जीवों के सांस लेने से कितना कार्बन डाइऑक्साइड पैदा हुआ. ज्यादा कार्बन डाइ ऑक्साइड पैदा होने का मतलब है ज्यादा सूक्ष्म जीवाणु सक्रिय हैं और तब मिट्टी भी ज्यादा उपजाऊ होगी."

इंडोनेशिया में 95 फीसदी मल का निबटारा सही तरीके से नहीं होता है. ज्यादातर को नालियों या फिर नदियों में बहा दिया जाता है. इसकी वजह से 70 फीसदी नदियां बेहद प्रदूषित है और स्वास्थ्य की समस्या पैदा करती हैं.

भारत की नालियों और नदियों में भी बड़ी मात्रा में मल बहाया जाता है. कृषि क्षेत्र अब तक रासायनिक खादों पर निर्भर है और यह सस्ता नहीं है. इसके साथ ही रासायनिक खाद का ज्यादा इस्तेमाल एक तरफ मिट्टी की उर्वरता को घटाता है तो दूसरी तरफ पर्यावरण को प्रदूषित भी करता है.

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फादली मुस्तमिनतस्वीर: DW

हालांकि एक समस्या मानव मल के साथ भी है. अगर इंसान ड्रग्स जैसी हानिकारक चीजों का इस्तेमाल करे तो फिर उसके मल से उपजाऊ बनी जमीनों पर उगे पौधों में भी उसका असर होगा. फादली मुस्तमिन बताते हैं, "यह सुरक्षित है या नहीं यह सवाल अभी भी कायम है. आगे भी रिसर्च करने की जरूरत है लेकिन 70 डिग्री तक तापमान के आधार पर मैं कह सकता हू कि यह खाद मिट्टी और पौधों के लिए सुरक्षित है."

श्रीलंका में इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, बोखुम की रूअर यूनिवर्सिटी और बॉन यूनिवर्सिटी के इस साझा प्रोजेक्ट का मकसद कचरे के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है. यह रिसर्च कचरे को मौके में बदल कर कुछ मुद्दों का हल ढूंढने की कोशिश में है.