1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

समस्या बन रहा है इंसानों का कारोबार

विश्वरत्न श्रीवास्तव, मुंबई४ मार्च २०१६

मानव व्यापार पूरी दुनिया के लिए चुनौती बन गया है. आधुनिक युग की दासता समझा जाने वाला यह व्यापार भारत में भी प्रतिबंधों के बावजूद व्यापक पैमाने पर फलफूल रहा है. अनुमान है कि करीब 6 करोड़ तक लोग इसकी चपेट में हैं.

https://p.dw.com/p/1I7F2
Menschenhandel Nigeria
तस्वीर: Kriesch/Scholz

सरकारी प्रयासों के बावजूद पीड़ितों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत में रोजाना औसतन चार सौ महिलाएं और बच्चे लापता हो जाते हैं. इन लोगों को ट्रैक करने का कोई कारगर तंत्र ना होने के कारण इनमें से अधिकांश का कभी पता नहीं चलता. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार देश में हर आठवें मिनट में एक बच्चा लापता होता है. गायब होते ये लोग मानव व्यापार के शिकार बन जाते हैं. बड़ी तादाद में बच्चों को देह व्यापार के घृणित पेशे में झोंक दिया जाता है. छत्तीसगढ़ के रिसर्चर अभिषेक अग्रवाल का कहना है कि छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड से रोजाना सैकड़ों युवतियां गायब हो जाती हैं और उनका कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं होता.

2014 के ग्लोबल स्लेव इंडेक्स के मुताबिक भारत को दुनिया का 'स्लेव कैपिटल' बताया गया था. इंडेक्स के मुताबिक दुनिया भर में आधुनिक गुलामी झेल रहे लगभग साढ़े तीन करोड़ लोगों में से अकेले भारत में ही करीब डेढ़ करोड़ लोग इसका शिकार हैं. प्रोफेसर शिलादित्य कहते हैं कि आधुनिक गुलामी या मानव तस्करी के पीड़ित हर जगह पाए जा सकते हैं. सिर्फ खेतों पर बंधुआ मजदूरी या जबरन यौनकर्म में लगाये गए लोग ही नहीं अपितु ये आधुनिक गुलाम घरों या फैक्ट्रियों में काम करने वाले भी हो सकते हैं.

Symbolbild Moderne Sklaverei Menschenhandel Indien
तस्वीर: picture-alliance/dpa

झारखंड की वीणा पहान कहती हैं कि दिल्ली और अन्य बड़े शहरों में कामकाजी दंपतियों की बढ़ती तादाद के कारण घरेलू काम करने वाली लड़कियों की मांग बढ़ी है. कुकुरमुत्तों की तरह उग आई सैकड़ों प्लेसमेंट एजेंसियां गरीब आदिवासी लड़कियों को सुनहरे सपने दिखाकर उन्हें घरेलू नौकरानी के काम पर लगा देती हैं. वे कहती हैं, ‘अक्सर इन लड़कियों और बच्चों को शारीरिक और मानसिक उत्पीडन का शिकार होना पड़ता है.' उनका कहना है कि ऐसी प्लेसमेंट एजेंसियों पर नियंत्रण का कोई असरदार कानून नहीं है.

गरीबी और अशिक्षा

विशेषज्ञों का मानना है कि गरीबी और अशिक्षा के साथ अधिकारों के प्रति अज्ञानता भी मानव व्यापार के लिए जिम्मेदार है. रोजगार या बेहतर जिंदगी की तलाश में लोग मानव तस्करों के शिकार बन जाते हैं. मुंबई के सामाजिक कार्यकर्ता रवि श्रीवास्तव मानव व्यापार को एक दुष्चक्र और पूरी तरह संगठित अपराध मानते हैं. उनका कहना है, "मानव तस्करी के अधिकतर मामलों में शुरुआत अमूमन गांव के किसी व्यक्ति और प्लेसमेंट एजेंसी के गठजोड़ से होती है. ऐसे कई मामले आ चुके हैं जिसमें घनिष्ठ परिचित या करीबी रिश्तेदार ही दलाल बन गए." अभिषेक अग्रवाल कहते हैं कि आदिवासी इलाकों में खाने की वस्तुएं, कपड़े, या क्रीम-पाउडर देकर भी दलाल पीड़ितों को अपने जाल में फंसा लेते हैं.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व सदस्य डॉ पीएम नायर मानव व्यापार को रोकने के लिए एक अलग सेल बनाने पर जोर देते है. वे कहते हैं, "विशेष पुलिस और प्रशासनिक प्रशिक्षण देकर मानव व्यापार पर काबू पाया जा सकता है." प्रभावित राज्यों के उन क्षेत्रों में जहाँ मानव व्यापार के ज्यादा मामले सामने आते हैं वह विशेष थानों का गठन करने की मांग करते हैं. इससे दोषियों पर जल्दी कार्रवाई संभव हो सकेगी. इसके अलावा हेल्पलाइन सेवा भी सहजता से सुलभ कराने की जरूरत है. छत्तीसगढ़ सरकार ने मानव व्यापार में लगीं प्लेसमेंट एजेंसियों पर रोक लगाने के लिए कानून पास किया है. छत्तीसगढ़ ऐसा करने वाला देश का पहला राज्य है. ऐसे ही कानून अन्य राज्यों में भी लागू किये जाने की जरूरत है.

10.04.2015 DW Doku Menschenhandel

जागरूकता जरूरी

अरुणाचल प्रदेश के पूर्व राज्यपाल डॉ माता प्रसाद का मानना है कि सिर्फ कानून से मानव व्यापार पर काबू कर पाना मुश्किल है. उनके अनुसार सबकी सहभागिता से ही मानव व्यापार पर रोकना संभव है. लेकिन आर्थिक और सामाजिक विषमता भी इस समस्या को बढ़ा रही है. वीणा पहान मानव व्यापार को केवल कानूनी समस्या नहीं मानती, उनके अनुसार यह एक बड़ी सामाजिक समस्या है. जिसे रोकने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है.

नेपाल के श्याम पोखरेल ने इस समस्या पर काफी शोध किया है. नेपाल देह व्यापार के होने वाले मानव तस्करी का प्रमुख केंद्र है. हर साल सैकड़ों नेपाली और बांग्लादेशी लड़कियां मुंबई और कोलकाता में देह व्यापार में झोंक दी जाती हैं. पोखरेल का भी मानना है कि इस समस्या से निपटने में पुलिस, प्रशासन और सामाजिक संगठनों को एक साथ आना पड़ेगा. वे कहते हैं, "मानव तस्करी रोकने के लिए सबसे जरूरी जो चीज है, वह है ग्रामीणों की जागरूकता."