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मानहानि के गैरअपराधीकरण की पहल

आशुतोष पांडे२२ जुलाई २०१५

मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्रिका में लेख लिखने के कारण कोई अपराधी नहीं बन जाता. यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब सुप्रीम कोर्ट में मानहानि को अपराध के दायरे से निकालने पर बहस छिड़ी है.

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राहुल गांधीतस्वीर: UNI

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आपराधिक मानहानि के कानून को थोड़ा कम सख्त नहीं बनाया जा सकता ताकि यह धारणा दूर हो सके कि इस कानून से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है. कोर्ट ने कहा कि इस कानून के विवादास्पद प्रावधानों के तहत राजनीतिक भाषण और वाद-विवाद के मामलों को दर्ज कराने से परहेज करना चाहिए.

अब मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन और के रविचंद्रबाबु की खंडपीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, “दुनिया भर में मानहानि को आपराधिक मामला नहीं मानने का ट्रेंड है. सुप्रीम कोर्ट भी इस मुद्दे पर सुनवाई कर रहा है. ऐसे में यह संभव नहीं है कि हम मानें कि कोई सिर्फ इसलिए आपराधिक पृष्ठभूमि का व्यक्ति बन जाता है क्योंकि उसके खिलाफ एक पत्रिका में लेख लिखने के कारण मानहानि की निजी शिकायत दर्ज की गई है.”

खंडपीठ एक स्वतंत्र पत्रकार द्वारा दायर एक याचिका पर आदेश सुना रही थी. पत्रकार का आरोप था कि तमिलनाडु और पुडुचेरी के बार काउंसिल ने उसका वकील के रूप में पंजीकरण का आवेदन केवल इसलिए अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उसके खिलाफ आपराधिक मानहानि की एक शिकायत लंबित थी.

Indien Wahlen Arvind Kejriwal
अरविंद केजरीवालतस्वीर: picture alliance/Anil Shakya

सितम्बर 2014 में प्रकाशित मीडिया कानून पर एक संयुक्त परामर्श पत्र में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के उल्लंघन का हवाला देते हुए भारत के विधि आयोग ने भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) को निरस्त करने की आवश्यकता को स्वीकार किया है. आयोग ने मानहानि के लिए दो साल तक की क़ैद की सजा के अत्यधिक कठोर होने के संकेत दिए थे.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में राहुल गांधी और सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा आपराधिक मानहानि से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने माना था कि राजनीतिक बहस मानहानि के लिए आपराधिक मामले की परिभाषा के तहत नहीं आ सकती.

स्वामी और गांधी ने दलील दी थी कि दोनों धाराओं का भाषण और अभिव्यक्ति, विशेष रूप से राजनीतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक "निरोधात्मक प्रभाव" पड़ता है, बल्कि वे प्रतिष्ठा के संरक्षण के लिए कार्य करते हैं.

दोनों नेताओं पर तमिलनाडु और महाराष्ट्र में उनके राजनीतिक भाषणों के लिए इन कानूनों के तहत आपराधिक मानहानि के आरोप लगे हैं. आपराधिक मानहानि के मुकदमे झेल रहे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी मानहानि कानून के गैरअपराधीकरण की मांग की है. लेकिन केंद्र सरकार इन धाराओं को हटाने के पक्ष में नहीं है. उसका मानना है कि आपराधिक मानहानि सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों को बदनाम करने की बढ़ती प्रवृत्ति के खिलाफ निवारक के रूप में काम करेगा.