मिलिए अफ्रीका के घने जंगलों में रहने वाले पिग्मी लोगों से
पिग्मी अफ्रीकी देश कॉन्गो के घने जंगलों में रहते हैं. लेकिन अब उनके पुरखों के इलाके पर धीरे धीरे कब्जा होता जा रहा है और उन्हें अपनी संस्कृति को बचाने के लिए जंगलों के और अंदर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
घने जंगलों में शरण
मोवियो एक युवा आका-बेंजेले पिग्मी है और वो पहले पूरे जंगल में शिकार करने और खाना इकट्ठा करने के लिए स्वच्छंद घूमता था. लेकिन जब उसके समुदाय के लोगों पर जमींदारों, वन विभाग और खनन से जुड़े लोगों की वजह से खतरा मंडराने लगा, तब उन्होंने अपनी खानाबदोश संस्कृति को छोड़कर जंगल के अंदर की तरफ एक जगह बस जाने का फैसला किया.
अफ्रीका के आखिरी शिकारी खानाबदोश
पिग्मी लोग अफ्रीका के आखिरी शिकारी खानाबदोश समुदायों में से हैं. कभी ये लोग पूरी कॉन्गो घाटी में रहा करते थे, लेकिन अब इनका इलाका सिमट गया है. केंद्रीय अफ्रीका के नौ देशों के जंगलों में अभी भी करीब 9,00,000 पिग्मी रहते हैं, लेकिन मोवियो जैसे युवाओं के लिए अब अपनी शिकारी परंपरा को जिंदा रखना और मुश्किल होता जा रहा है.
जीने के तरीके पर ही खतरा
पिग्मी लोग जंगलों के रहस्य और उनसे जुड़े रिवाज अपने बच्चों को जन्म के साथ ही सिखाना शुरू कर देते हैं. लेकिन आका-बेंजेल समुदाय को अब यह चिंता है कि अब वो यह ज्ञान आने वाली पीढ़ियों को नहीं दे पाएंगे. केंद्रीय अफ्रीका के अधिकांश इलाकों में पिग्मी अब स्वतंत्र रूप से उन इलाकों में घूम नहीं सकते जो पारंपरिक रूप से उन्हीं के थे.
लोंगा, जहां मिलती है भेदभाव से पनाह
लोंगा गांव लिकुआला विभाग के वर्षा वनों के गहरे अंदर स्थित है. यहां नस्लीय भेदभाव से दूर सामुदायिक जीवन चुपचाप चल रहा है. कॉन्गो पिग्मी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून पास करने वाला पहला देश था, लेकिन उसके बावजूद आज भी उन्हें सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है.
जंगल के साथ तालमेल
कॉन्गो के समाज में पिग्मी लोगों को तुच्छ समझा जाता है. बैंतु जनजाति के लोग कभी इन्हें गुलामों की तरह रखते थे और आज भी वो इन्हें पिछड़ा हुआ समझते हैं. लेकिन पिग्मी लोगों का वर्षा वनों के पर्यावरण से बहुत करीबी रिश्ता है. वो उसकी पूजा करते हैं, प्रकृति के साथ तालमेल बना कर रहते हैं और पर्यावरण की रक्षा भी करते हैं.
जलवायु के लिए जरूरी जंगल
पिग्मी अपनी आजीविका के लिए पूरी तरह से कॉन्गो घाटी के जंगलों पर निर्भर हैं. ये दुनिया के दूसरे सबसे बड़े वर्षावन हैं और ये वैश्विक जलवायु के संतुलन के लिए भी बहुत महत्ववूर्ण हैं. ये साल में 1.2 अरब टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेते हैं. लेकिन अब इन जंगलों पर पेड़ काटने, खनन और शहरीकरण की वजह से खतरा मंडरा रहा है.
अद्भुत शिकारी और जंगल गाइड
आका-बेंजेले लोग रात में भी जंगल में रास्ता ढूंढ सकते हैं. ये परभक्षियों की पकड़ में ना आने में माहिर होते हैं और प्रतिभाशाली शिकारी होते हैं. ये दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण अभयारण्यों में से एक में रहते हैं, जो 24 करोड़ हेक्टेयर में फैला है और जो 10,000 से भी ज्यादा किस्म के पौधों और हजारों जानवरों का घर है.
वन अधिकारियों द्वारा शोषण
जंगलों के कई हिस्सों में अभयारण्य के पहरेदारों ने पिग्मी लोगों पर अवैध शिकार का आरोप लगा कर उनकी बस्तियों पर हमला कर उन्हें जला दिया. 2016 में सर्वाइवल इंटरनैशनल संस्था ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और अफ्रीका के उद्यानों पर मूल निवासी लोगों के शोषण के सैकड़ों मामलों का आरोप लगाया.
संरक्षण के नाम पर
संयुक्त राष्ट्र की जांच में भी पर्यावरण समूहों द्वारा पिग्मी लोगों के शोषण और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों की पुष्टि हुई है. इससे मूल निवासियों की पारम्परिक जमीन पर अभयारण्य बनाने पर भी सवाल खड़े करता है.
वन देवता 'मोबे'
सूर्यास्त के समय लोंगा में पिग्मी लोगों के वन देवता 'मोबे' का रूप लिए एक शख्स आता है. लोग देवता से फलों और अच्छे शिकार का आशीर्वाद मांगते हैं. कॉन्गो के एथनोलॉजिस्ट सोरेल एटा कहते हैं, "उन्होंने अपनी दुनिया की सालों से रक्षा की है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हम इनके बिना जंगल को बचा नहीं पाते." (मार्को सिमोंसेली)