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मिस्टर इंडिया की विदाई

१४ नवम्बर २०१३

फिल्मी मोगैंबो को चकमा देने वाले ब्रेसलेट की चमक 1980 के दशक में जिस वक्त फीकी पड़ी, ठीक उसी वक्त असली मिस्टर इंडिया का उदय हुआ. झक सफेद कपड़ों में 16 साल के करामाती मिस्टर इंडिया ने ब्रेसलेट उतार कर बल्ला थाम लिया.

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तस्वीर: Indranil Mukherjee/AFP/Getty Images

भारत की दुर्दशा थी, अलगाववाद और क्षेत्रवाद चरम पर था. उसी वक्त एक लड़का क्रीज पर आया और अगले ढाई दशकों तक लोगों को गर्व से भरे भारतीयों में बदल गया. उसकी यात्रा एक महान ग्रंथ जैसी है, जिसकी आखिरी पंक्तियां वानखेड़े में लिखी जा रही हैं.

मूंछ दाढ़ी तो छोड़िए, नाजुक और पतली आवाज बोलते बोलते थरथरा जाती थी लेकिन एक स्ट्रेट ड्राइव इन मासूमियतों को बाउंड्री पार पहुंचा दिया करता. बार बार कहा गया है, लेकिन फिर भी दोहराया जा सकता है कि यह उस वक्त की दुनिया थी, जब शीत युद्ध का खतरा था, यूरोप में कम्युनिस्ट ब्लॉक का गढ़ था, जर्मनी बंटा हुआ था और भारत बोफोर्स, मंडल कमंडल और बाबरी मस्जिद के बीच फंसा था.

नेपथ्य में क्रिकेट भी था, वेस्ट इंडीज सबसे बड़ी टीम थी, ऑस्ट्रेलिया का महाशक्ति के रूप में उदय हो रहा था और क्रिकेट के जनक इंग्लैंड का सूरज डूब रहा था. और दक्षिण अफ्रीका का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट शुरू भी नहीं हुआ था. टेलीविजन पर क्रिकेट की पहचान बन रही थी, जहां आमने सामने के दो कैमरों से खेल का प्रसारण होता था. सफेद कपड़ों की वजह से ब्लैक एंड व्हाइट में भी क्रिकेट देखना बुरा नहीं था. हालांकि रंगीन और रिमोट वाले टीवी ने भारत में दस्तक दे दी थी.

Bildergalerie zu dem indischen Cricketspieler Sachin Tendulkar
क्रिकेट के दर्जनों रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नामतस्वीर: Ben Radford/Allsport

फिर अचानक सब कुछ बदल गया. टीवी खुलने और बंद होने का समय सिर्फ एक क्रिकेटर के मैदान पर उतरने और आउट होने से तय होने लगा. तेंदुलकर और तेंडुलकर में फंसा भारतीय मीडिया यह भी नहीं जानता था कि हजारों हजार गांवों में महिलाएं इसे चंदूलकर भी कह दिया करतीं. क्रिकेट का एबीसी न जानते हुए भी माताएं, बहनें टेलीविजन से चिपकने लगीं और “चंदूलकर” के आउट होते ही टीवी बंद कर पढ़ाई शुरू करने की हिदायत देने लगीं. एक खिलाड़ी करोड़ों टीवी के रिमोट नियंत्रित करने लगा. उसी को पूरी भारतीय टीम की बल्लेबाजी माना जाने लगा.

इसके बाद तो मानो युग ही बदल गया. भारत की अर्थव्यवस्था की ही तरह क्रिकेट के इस जादूगर का दायरा भी खुलता चला गया. सफेद से रंगीन कपड़ों में बदल चुका क्रिकेट पता नहीं किस एक नुक्ते पर सचिन से पहचाना जाने लगा. वेस्ट इंडीज का सूरज ढल गया, पाकिस्तान उभर गया, श्रीलंका विश्व चैंपियन बन गया लेकिन क्रिकेट की दुनिया सचिन के ही इर्द गिर्द सिमटी रही. अर्थव्यवस्था खुली तो एक अरब की आबादी वाले देश ने क्रिकेट को भी खूब भुनाया. टेलीविजन कंपनियां, मार्केटिंग एजेंसियां और इश्तेहार के कर्णधार भारतीय बोर्ड की चाटुकारिता करने लगे. पता नहीं चला कि कब क्रिकेट का मुख्यालय इसके मक्का यानी लॉर्ड्स से खिसक कर भारत के पड़ोस दुबई में पहुंच गया और बीसीसीआई दुनिया का सबसे ताकतवर बोर्ड बन गया.

क्रिकेट का मिस्टर इंडिया इन बातों से बेपरवाह रन बरसा रहा था. शेखर कपूर का अदृश्य मिस्टर इंडिया हाड़ मांस का इंसान बन कर पता नहीं कितने ही मोगैंबो की धुलाई कर रहा था. दर्जनों गेंदबाजों की रात की नींद हराम हो गई थी. नींद आती भी तो धुलाई के बुरे सपने आते. सैकड़े हजार में बदल रहे थे, कामयाबी उफान पर थी. दाढ़ी मूंछ उग आई थी, कभी कभी फ्रेंच कट के रूप में दिख भी जाती. लेकिन बल्ले में बदलाव नहीं आया था. गेंदबाजों पर सितम ढाने का तरीका नहीं बदला था.

ये सिलसिला चौबीस साल तक चलता रहा. इस दौरान भारतीय टीम ने शायद सात या आठ बार नीली जर्सी का मॉडल बदला. इस शख्स के बदन पर हर जर्सी नजर आई. दुनिया में दूसरे खेल भी चल रहे थे. भारत के विश्वनाथन आनंद महान ग्रैंडमास्टर बन गए थे. फॉर्मूला वन का सबसे बड़ा नाम माइकल शूमाकर इसी बीच अपने करियर की शुरुआत करके अंजाम तक पहुंचा चुका था. गॉल्फ को दुनिया भर में नाम देने के बाद टाइगर वुड्स बदनाम हो चुके थे. साइकिल से आसमान तक का सफर तय करने वाले लांस आर्मस्ट्रांग विवादों के रसातल में पहुंच गए थे. भारत ने आठ प्रधानमंत्री देख लिए. देश आईटी का गढ़ बन गया. लेकिन हल्की मुस्कान और बर्बर बल्ले वाला सचिन वहीं बाईस गज की क्रीज पर जमा रहा.

आज वह क्रीज खुद को समेट रही है, क्रिकेट करवट ले रहा है. किसी एक शख्स की वजह से पूरा युग जाना जाता है, विश्वास हो रहा है. गांधी के बाद अगर सबसे बड़ा मिस्टर इंडिया कोई हुआ, तो वह सचिन ही है.

ब्लॉग: अनवर जे अशरफ

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी