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मिस्र में संविधान समर्थकों को मामूली बढ़त

१६ दिसम्बर २०१२

मिस्रवासियों ने मामूली बढ़त से मुस्लिम ब्रदरहुड के तैयार किए संविधान के पक्ष में वोट दिया है. दो चरणों के जनमत संग्रह के पहले दौर का यह नतीजा है. विपक्षी दल इस संविधान को सबसे बड़े अरब मुल्क को बांटने वाला बता रहे हैं.

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तस्वीर: Reuters

अगले हफ्ते जनमत संग्रह के दूसरे दौर के लिए भी उम्मीद की जा रही है कि बहुमत हां के पक्ष में ही रहेगा. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि जिन इलाकों में तब वोट पड़ेंगे वो मुस्लिम पार्टियों से ज्यादा सहानुभूति रखने वाले जिले हैं जानकार कह रहे हैं कि संविधान को मंजूरी मिलती दिख रही है. हालांकि मामूली बढ़त से मिली जीत राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को ज्यादा खुश होने का मौका नहीं देगी क्योंकि देश में दरार चौड़ी हो रही है और कड़े आर्थिक सुधारों के लिए उन्हें आम सहमति की जरूरत होगी. अगर संविधान को मंजूरी मिल जाती है तो अगले साल के शुरुआत में संसदीय चुनाव होंगे.

आधिकारिक नतीजे तो दूसरे दौर के जनमत संग्रह के बाद ही आएंगे लेकिन मोहम्मद मुर्सी को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बिठाने वाली मुस्लिम ब्रदरहुड पार्टी ने कहा है कि 56.5 फीसदी लोगों ने संविधान के मसौदे का समर्थन किया है. उधर विपक्षी गुट के एक अधिकारी ने यह तो माना है कि पहले दौर में संविधान के समर्थक जीत गए हैं लेकिन नेशनल साल्वेशन फ्रंट का कहना है कि वह अनाधिकारिक नतीजों की पुष्टि नहीं करेगा. फ्रंट ने यह भी कहा है कि मतदान की प्रक्रिया में कई तरह की गड़बड़ियां, हेरफेर और कमियां हैं.

Referendum in Kairo
तस्वीर: picture-alliance/dpa

मतदान के दौरान अधिकांश कार्यकर्ताओं ने पोलिंग स्टेशन के देर से खुलने, अधिकारियों के लोगों को वोट देने के तरीके बताने और घूसखोरी की शिकायत दर्ज की है. इन लोगों ने बड़े पैमाने पर धार्मिक प्रचार का भी आरोप लगाया जिसमें समर्थन न करने वालों को विधर्मी बताया गया. सात मानवाधिकार गुटों ने संयुक्त बयान जारी कर इन गलतियों को दूसरे दौर के जनमत संग्रह में दूर करने की अपील की है.

मुर्सी औऱ उनके समर्थकों का कहना है कि मिस्र में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे ले जाने के लिए संविधान बेहद जरूरी है. विरोधियों का कहना है कि बुनियादी कानून जरूरत से ज्यादा इस्लामी है और यह अल्पसंख्यकों के अधिकारों को रौंद रही है. अल्पसंख्यकों में ईसाई समुदाय के लोग भी हैं जो देश की आबादी में कुल 10 फीसदी हैं. शनिवार को हुए जनमत संग्रह पर विरोध प्रदर्शनों की छाया है. 22 नवंबर को मुर्सी ने जब अपने लिए असीमित अधिकार हासिल कर लिए तभी से विरोध प्रदर्शनों की आंच मिस्र को एक बार फिर जलाने लगी. इसके तुरंत बाद ही मुर्सी ने संविधान को भी एसेंबली से पास कराने में जल्दबाजी दिखाई जहां उनके समर्थक मुस्लिम सांसद ही बहुमत में हैं. इन सब के बावजूद जनमत संग्रह शांति से गुजर गया और मतदान केंद्रों के बाहर लंबी लंबी कतारें देखी गईं. विपक्ष ने देश में जारी विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए फिलहाल वोटिंग नहीं कराने की मांग की थी.

Ägypten Protest
तस्वीर: AFP/Getty Images

बढ़ती दरार

चुनाव खत्म होने के साथ ही इस्लाम समर्थकों ने उदारवादी वफ्द पार्टी के अखबार के दफ्तर पर हमला किया. यह नेशनल साल्वेशन फ्रंट का हिस्सा है और संविधान का विरोध कर रहा है. मुस्लिम ब्रदरहुड ने राजधानी काहिरा समेत सभी 10 इलाकों के सारे पोलिंग स्टेशनों पर अपने प्रतिनिधि खड़े कर रखे थे. विपक्षी नेता मोहम्मद अल बरदेई ने ट्विटर पर लिखा है, "देश बड़ी तेजी से बंट रहा है और राष्ट्र के स्तंभ झुकने लगे हैं. गरीबी और अशिक्षा धर्म के कारोबार के लिए उपजाऊ जमीन तैयार कर रहे हैं. लोगों में अज्ञानता तेजी से बढ़ रही है." नेशनल साल्वेशन फ्रंट में कई बड़े नेता हैं. मोहम्मद अल बरदेई के साथ ही अरब लीग के पूर्व प्रमुख अम्र मूसा और फायरब्रांड वामपंथी नेता हमदीन सबाही भी इसी गुट के साथ हैं. इस गुट में समाजवादी, ईसाई और उदारवादी मुस्लिम समुदाय शामिल हैं जिसने होस्नी मुबारक के हटने के बाद हुए पिछले दो चुनावों में हार देखी है.

Ägypten Protest
तस्वीर: AFP/Getty Images

हिंसा और विरोध प्रदर्शन

जानकार सवाल उठा रहे हैं कि क्या विपक्षी गुट संसदीय चुनाव तक खुद को एक साथ रख सकेगा. मुस्लिमों के बहुमत वाले संसद के निचले सदन को कोर्ट के आदेश के बाद पहले ही भंग किया जा चुका है. काहिरा और दूसरे शहरों में जनमत संग्रह से पहले काफी हिंसा हुई है. विपक्षी गुटों के विरोध प्रदर्शन और राष्ट्रपति भवन को घेरने की कोशिश के दौरान हुई झड़पों में कम से कम आठ लोग मारे गए हैं. संविधान को मंजूरी के लिए वोट देने वाले कुल लोगों में से कम से कम 50 फीसदी लोगों के हां की जरूरत होगी. करीब 8.3 करोड़ की आबादी वाले देश में 5.1 करोड़ लोग वैध मतदाता है.

इस्लामी ताकतें अपने अनुशासित नेताओं और समर्थकों पर भरोसा कर रही है, उधर मिस्र उठापटक के खत्म होने के इंतजार में है जिसने देश की मुद्रा को डॉलर के मुकाबले पिछले आठ सालों में सबसे कमजोर स्थिति में ला दिया है. सेना ने पोलिंग स्टेशनों की हिफाजत के लिए 120,000 सैनिकों के साथ ही 6000 टैंक और बख्तरबंद गाड़ियों को तैनात किया है. सेना मुबारक और उनके पहले के शासकों को बचाती रही है लेकिन मौजूदा संकट में अभी तक उसने कोई दखल नहीं दिया है.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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