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मीडिया ट्रायल से जजों पर असर: हाई कोर्ट

१४ मार्च २०१५

निर्भया कांड पर बनी डॉक्यूमेंट्री पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. एक ओर कार्यकर्ता इस फिल्म को अलग अलग जगहों पर दिखा रहे हैं तो दिल्ली हाई कोर्ट ने फिल्म के प्रसारण पर लगे प्रतिबंध को फौरन हटाने से परहेज किया है.

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Leslee Udwin Regisseurin India's Daughter
तस्वीर: Getty Images/AFP/Chandan Khanna

प्रतिबंध के खिलाफ दायर एक अपील पर दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि कई मुद्दों पर मीडिया के ट्रायलों से जज भी प्रभावित हो जाते हैं और इससे अनजाने में ही उन पर दबाव बन जाता है. यह बात हाल ही में निर्भया कांड पर बनी बीबीसी की डॉक्युमेंट्री के प्रसारण पर अदालत में चल रही सुनवाई में सामने आई. दूसरी ओर इंडियाज डॉटर के आगरा के गांव में प्रसारण के चार दिन बाद दिल्ली के उस स्लम में भी उसका प्रसारण किया गया है जहां निर्भयाकांड के आरोपियों के परिवार रहते हैं.

न्यायाधीशों बीडी अहमद और संजीव सचदेवा की बेंच ने कहा है कि वैसे तो वे डॉक्युमेंट्री 'इंडियाज डॉटर' के प्रसारण के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसे निर्भया मामले में सुप्रीम कोर्ट में दोषियों द्वारा दायर अपील पर फैसला ले लेती है. बेंच ने इस मामले पर अपने अवलोकन के बारे में बताते हुए कहा, "मीडिया ट्रायलों से जज प्रभावित होते हैं. अनजाने में ही एक दबाव सा बन जाता है और इसका असर आरोपी या दोषी के लिए सजा तय करने पर भी पड़ता है."

बेंच का मानना है कि डॉक्यूमेंट्री "न्यायतंत्र में दखलअंदाजी" कर सकती है, लेकिन उन्होंने इस बारे में कोई अंतरिम फैसला नहीं दिया. हाई कोर्ट बेंच का कहना है कि इस पर निर्णय चीफ जस्टिस की बेंच ही सुनाएगी." इस मसले पर अगली सुनवाई के लिए 18 मार्च का दिन तय किया गया है. कोर्ट का मानना है कि इस डॉक्यूमेंट्री को दिखाने से केस पर असर पड़ सकता है.

बेंच ने टिप्पणी की है कि पहले मीडिया खुद ही इस कोड का पालन किया करता था कि वह कोर्ट में विचाराधीन किसी भी मामले पर रिपोर्ट ना करे. लेकिन अब "मीडिया ने उसे (कोड को) फेंक दिया है." केन्द्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रही एडवोकेट मोनिका अरोड़ा ने कार्यक्रम के प्रसारण के विरोध में दलील देते हुए कहा कि इससे दोषी को अपने विचार रखने का एक प्लेटफॉर्म मिल जाएगा और उसने पीड़िता के खिलाफ बहुत सारी अपमानजनक बातें कहीं हैं. वादी पक्ष की ओर से कहा गया कि सरकार इंटरनेट पर डॉक्यूमेंट्री का प्रसार रोक पाने में असफल रही और चूंकि लाखों लोगों के उसे देखने के बावजूद देश में कानून व्यवस्था पर कोई बुरा असर नहीं पड़ा, इसलिए वीडियो को बैन किए जाने का कोई आधार नहीं है.

डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण की अनुमति के अलावा इसमें दिखाए गए दो वकीलों - एडवोकेट एपी सिंह और एमएल शर्मा - के खिलाफ जल्दी कार्रवाई करने की याचिका भी बार काउंसिल ऑफ इंडिया के सामने है. उन पर इस डॉक्यूमेंट्री में महिलाओं के लिए अपमानजनक टिप्पणियां करने का आरोप है.

आरआर/एमजे(पीटीआई)