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मुद्दे से भटकती दिल्ली की बहस

ईशा भाटिया१८ दिसम्बर २०१५

दिल्ली के मामले के साथ भी अब वही हो रहा है जो अधिकतर अन्य राजनीतिक मामलों की बहस के साथ होता रहा है. नेताओं की आपसी बहस के बीच असली मुद्दा गुम होता जा रहा है.

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Indien Bildungsministerin Smriti Irani in New Delhi
तस्वीर: Imago

ट्विटर पर बहस ने नया मोड़ ले लिया. एक तरफ आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल पत्रकार अरनब गोस्वामी पर अरुण जेटली को बचाने के इल्जाम लगाते रहे, तो दूसरी ओर बीजेपी की स्मृति ईरानी पत्रकार सागरिका घोष को "ब्लैसफेमी" का मतलब समझाने में लगी रहीं.

दरअसल ईरानी ने बयान दिया था कि आम आदमी पार्टी अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार के जो इल्जाम लगा रही है, उनके तहत वह एक "ब्लैसफेमस" और बेहूदी मुहिम चला रही है. "ब्लैसफेमस" यानि ईशनिंदनीय. इसी पर घोष ने सवाल करते हुए ट्वीट किया कि क्या ईरानी वाकई भगवान के तिरस्कार वाले शब्द का उपयोग कर रही थीं. जवाब में ईरानी ने लिखा, "मुझसे कुछ कहना है, तो मुझे टैग करो, पीठ पीछे कायर बोलते हैं."

ईरानी के इस जवाब को कई बार रीट्वीट किया गया और यहां से दोनों के बीच की बहस तेज हो गयी. दोनों एक दूसरे को ब्लैसफैमी का मतलब समझाने लगे. यहां ईरानी ने एक और शब्द "इनवायोलेबल" यानि पाक-साफ का इस्तेमाल किया. अंत में ईरानी ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि अगर बहस करनी ही है, तो मुझसे आमने सामने बैठ कर इंटरव्यू कर लें.

लेकिन मुद्दा यहां खत्म ना हो कर, यहां से शुरू हुआ. आम आदमी पार्टी के आशुतोष ने ट्वीट किया कि ईरानी भारत को पाकिस्तान बनाना चाहती हैं और ईशनिंदा वाले कानून लाना चाहती हैं ताकि कोई उनके राजनैतिक ईश्वर की निंदा ना कर सके.

अन्य लोगों ने "ब्लैसफेमस" और "इनवायोलेबल" की परिभाषाएं पोस्ट करनी शुरू की. कुछ ने यह भी लिखा कि ईरानी और घोष के बीच की झड़प सास बहू के कार्यक्रम जैसी रही. आखिरकार मुद्दा जेटली और दिल्ली क्रिकेट संघ के घोटाले से पूरी तरह हट गया और लोग इधर उधर की बहस में उलझ गए. यही हाल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी हुआ. वे भी ट्विटर पर शब्दों की लड़ाई में उलझे दिखे. उन्होंने ट्वीट किया, "कल सीबीआई के एक अधिकारी ने मुझे बताया कि उन्हें सभी विपक्षी पार्टियों पर निशाना लगाने के आदेश मिले हैं."

जाहिर है यह एक संगीन आरोप था, इसलिए इसने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा. लेकिन केजरीवाल की इस टिप्पणी पर अभी बहस शुरू ही हुई थी कि उन्होंने एक और ट्वीट कर दिया. उन्होंने पत्रकार अरनब गोस्वामी से जवाब मांगा कि अरुण जेटली के साथ उनका क्या संबंध है.

केजरीवाल के ट्वीट करने की देर थी कि मामला एक बार फिर मुद्दे से सरक गया. एक बार फिर लोग डीडीसीए, सीबीआई के छापे और भ्रष्टाचार पर बात ना कर के नेताओं और पत्रकारों के निजी संबंधों पर चर्चा में लग गए. जेटली पर क्या आरोप हैं, उनकी क्या सफाई है, इसकी जगह उनकी और गोस्वामी की दोस्ती वाले कार्टूनों ने ले ली.

कुला मिला कर केंद्र और राज्य सरकार के अहं के बीच फंसी दिल्ली के मामले में ना सरकारें संजीदगी से बात करती दिख रही हैं और ना जनता. मनोरंजन से भरे ट्वीट, कार्टून और फोटोशॉप की हुई तस्वीरों के पीछे दिल्ली का असली मुद्दा छिप सा गया है.