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'मेनस्ट्रीम में नहीं हैं लड़कियों के लिए किरदार'

२४ जुलाई २०१२

जर्मनी से पुराना नाता रखने वाली तनिष्ठा चटर्जी न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीतकर श्टुटगार्ट पहुंचीं. बंगाली ब्यूटी मानती हैं कि मेनस्ट्रीम में लड़कियों के लिए किरदारों की कमी है.

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तस्वीर: DW

तनिष्ठा आप यहां जिस फिल्म को ले कर आई हैं, उसमें आपका किरदार क्या है?

'देख इंडियन सर्कस' इस फिल्म का नाम है और जैसा कि नाम बताता है कहानी एक सर्कस के बारे में है. पर साथ ही भारत में एक देश के तौर पर क्या सर्कस चलता है, यह फिल्म उसके बारे में भी है. यह सब एक छोटे से परिवार की कहानी के जरिए कहा जा रहा है. मां, बाप और उनके दो बच्चे हैं. मंगेश ने इसमें कुछ दिलचस्प किया है. कहानी राजस्थान के एक गांव की है जहां पुरुष प्रधान समाज है. पर उन्होंने परिवार के पुरुष को गूंगा बनाया है. फिल्म में वह जो भी कहना चाह रहे हैं, वह इस औरत के किरदार के जरिए कहा जा रहा है. तो फिल्म में मैं ही बोलती रहती हूं. बच्चों को ले कर जो सपने हैं, या और जो सब भी, वह मेरे ही जरिए कहा जा रहा है. परिवार के छोटे छोटे सपने किस तरह पूरे होते हैं, या नहीं होते हैं, और इस सब के पीछे हमारे देश में जो राजनैतिक नौटंकी चलती है, यह सब इस फिल्म में दिखाया गया है.

आपको फिल्म इंडस्ट्री में करीब एक दशक होने वाला है, लेकिन आपने बहुत कम फिल्में की हैं. और सिवाए 'रोड, मूवी' के अलावा वे सभी मेनस्ट्रीम फिल्मों से बहुत दूर रही हैं, इसकी क्या वजह है?

मेनस्ट्रीम में लड़कियों के लिए ज्यादा कोई खास किरदार होते ही नहीं हैं. मेरी पहली फिल्म 'स्वराज' 2004 में रिलीज हुई थी, जिसे नेशनल अवॉर्ड मिला था. उसमें चार औरतें ही मुख्य भूमिका में थीं. उसके बाद मैंने एक जर्मन फिल्म की 'शैडोज ऑफ टाइम', फिर ब्रिटिश फिल्म 'ब्रिकलेन' की. इन फिल्मों में महिलाएं मुख्य भूमिका में थीं. यह फिल्म भी ऐसी ही है. मैंने 'बॉम्बे समर' की थी जिसके लिए मुझे न्यूयॉर्क में बेस्ट ऐक्ट्रेस अवॉर्ड मिला. वह भी इसी तरह की थी. तो करियर की शुरुआत में ही मुझे अभिनेत्री के तौर पर इतने अच्छे रोल मिले कि अब अगर वैसा रोल नहीं मिलता है तो मैं फिल्म नहीं करती हूं. हाल ही में मैंने एक बॉलीवुड फिल्म की है जो साल के अंत में रिलीज होगी. वह मसाला फिल्म है, लेकिन उसमें मेरा किरदार ऐसा है जिसके लिए एक संजीदा अभिनेत्री की जरूरत थी. इसलिए मुझे इस फिल्म के लिए चुना गया. ना ही मैं ऐसे किरदार निभाना चाहती हूं जहां सिर्फ मेरी कमर के शॉट हों और चेहरा भी ना दिखे, और मेरे ख्याल से ना ही फिल्म निर्माता मुझे ऐसे किरदार देना चाहते हैं. जिस ढंग की फिल्में मैं करती हूं उनमें किरदार को लिखने में मेहनत की गई होती है. उन फिल्मों में लोग स्टार को देखने नहीं आते हैं, कहानी को देखने आते हैं.

आप किसी बॉलीवुड परिवार से नाता नहीं रखती हैं. आपका अब तक का सफर कैसा रहा है?

बहुत ही दिलचस्प सफर रहा है. मेरा करियर बहुत मिला जुला रहा है. मैंने अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में काम किया है और अभी भी कर रही हूं. मार्टिन शीन के साथ मैंने अभी 'भोपाल' नाम की फिल्म की है, जो राईट की फिल्म की है 'ऐना कारेनीना'. भारत में भी मैंने पिछले साल कई दिलचस्प फिल्में की हैं. मैं इस तरफ के करियर से बहुत खुश हूं जहां मुझे अच्छे रोल मिलें और एक अभिनेत्री के तौर पर मैं उब ना जाऊं. और यह भी अच्छी बात है कि मैं किसी फिल्मी परिवार से नाता नहीं रखती. मैंने जो भी किया है अपनी सोच समझ से किया है.

Stuttgart Bollywood Film Festival
तस्वीर: Frank von zur Gathen

आपने एक जर्मन फिल्म भी की है. जर्मनी के साथ आपका नाता कैसा रहा है?

बहुत पुराना नाता है, क्योंकि मैं यहां पढ़ने भी आई थी. तब मैं बर्लिन में रही थी और उस वक्त मैंने थिएटर किया था. उसके बाद फ्लोरियान गालेनबैर्गर की दूसरी फिल्म 'शैडोज ऑफ टाइम' में मैंने मुख्य भूमिका निभाई. उन्हें अपनी पहली फिल्म के लिए अकैडमी अवॉर्ड भी मिला था. 2005 में हम लोग फिल्म रिलीज करने के लिए बर्लिनाले में आए थे. तो, जर्मनी से तो मेरा बहुत पुराना और गहरा नाता है. मैं कई बार जर्मनी आ चुकी हूं. 2010 में मेरी 'रोड, मूवी' बर्लिनाले में आई थी. मैं कई बार फ्रैंकफर्ट आ चुकी हूं. श्टुटगार्ट पहली बार आई हूं. सुबह से मैं टहल रही हूं. इतना प्यारा मौसम है. मुझे बहुत मजा आ रहा है.

आपकी पहली फिल्म 'स्वराज' के लिए आपको काफी सराहा गया. उसके लिए आपको अवॉर्ड भी मिला. हाल ही में न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में 'देख इंडियन सर्कस' के लिए आपको अवॉर्ड मिला. क्या आपने ऐसी सफलता की उम्मीद की थी?

मैं तो न्यूयॉर्क गई ही नहीं. मैं मुंबई में दूसरी फिल्म शूट कर रही थी. अगर मुझे पता होता तो मैं वहां जाती ही नहीं. मुझे मंगेश की पहली फिल्म 'तिंग्या' में उनका काम बहुत अच्छा लगा था. जब हम फिल्म शूट कर रहे थे, मुझे मालूम था कि हम लोगों ने बहुत अच्छा काम किया है. एक अभिनेता के तौर पर आप इसे महसूस कर सकते हैं. पर मैं गीता के रास्ते पर चलने वालों में से हूं. मैं उम्मीदें लगा कर कोई काम नहीं करती. जो मुझे अच्छा लगता है वह मैं करती हूं. उसके नतीजे अच्छे आते हैं तो खुशी होती है, नहीं आते तो मैं आगे बढ़ जाती हूं.

आपको भारत में पैरेलल सिनेमा के बेहतरीन अदाकारों में गिना जाता है. क्या आपको लगता है कि आपके कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि आपको भारत के सिनेमा को दुनिया के आगे पेश करना है और इसके लिए क्या आपको ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है?

मैं इतनी बड़ी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती. पर मुझे लगता है कि मैं भाग्यशाली हूं कि मैं उस चलन का हिस्सा हूं जो अभी भारत में चल रहा है. नई पीढ़ी अलग किस्म की फिल्में करना चाहती है और यह बताना चाहती है कि बॉलीवुड के आगे भी भारतीय सिनेमा है. रीजनल सिनेमा में बहुत कुछ है और पिछले कुछ समय से हिंदी सिनेमा में भी बहुत दिलचस्प नए निर्देशक आए हैं, जो अलग अलग तरह की कहानियां दिखा रहे हैं. हमारा देश कहानियों से भरा है. एक ही घिसी पिटी कहानी को उसी अंदाज में बार बार देख कर दर्शक भी उब गए हैं. ब्लॉकबस्टर फिल्मों की जगह हमेशा रहेगी. कभी कभी हमारा भी मन करता है कि सब कुछ छोड़ कर कॉमेडी देखें. लेकिन वैकल्पिक सिनेमा बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है. 'विकी डोनर', 'पान सिंह तोमर', 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' यह सब फिल्में बॉक्स ऑफिस पर भी हिट रही हैं. इन फिल्मों को देखने वाले दर्शकों की संख्या बढ़ गई है.

क्या तनिष्ठा चटर्जी को कभी तड़कते भड़कते करीना कपूर जैसे रोल में देखा जाएगा?

हाल ही में मैंने एक फिल्म की है 'बॉम्बेज मोस्ट वॉनटेड'. वह एक मसाला बॉलीवुड फिल्म है. उसमें दो हिस्से हैं. फ्लैशबैक में किरदार बहुत फिल्मी हो जाते हैं. तो उसमें आपको देखने को मिलेगा.

इंटरव्यूः ईशा भाटिया, श्टुटगार्ट

संपादनः महेश झा