1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
फिल्म

मेरी फिल्म भारत में दिखाई तो थिएटर जला देंगे लोग

निखिल रंजन
१९ फ़रवरी २०१८

इस साल बर्लिनाले के पैनेरोमा सेक्शन में दिखाई गई अकेली भारतीय फिल्म गारबेज के निर्देशक क्यू अपनी ही फिल्म के बारे में ऐसा कहते हैं. पर क्यों?

https://p.dw.com/p/2swMb
Berlinale Panorama 2018 Garbage
तस्वीर: Berlinale 2018

क्यू यानी कौशिक मुखर्जी की फिल्म भारत के समाज की एक ऐसी डरावनी तस्वीर है जिसे देख कर घिग्घी बंध जाती है. कुरीतियों की विरासत, अंधविश्वास, चमत्कार लोलुपता, मोबाइल, इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ मिलकर आज के दौर की यह तस्वीर गढ़ती हैॆ. फिल्म के पात्रों को वास्तविक दुनिया में ढूंढने के लिए आपको बहुत मेहनत नहीं करनी होगी. 

तीन मुख्य किरदारों में एक है फणीश्वर जो पेशे से टैक्सी ड्राइवर है और गाड़ी चलाने के अलावा एक बाबा की अंधभक्ति में लीन है. फणीश्वर एक लड़की को अपने घर में जंजीर से बांध कर और दुनिया की नजरों से छिपा कर रखता है. यह लड़की इस फिल्म की दूसरी प्रमुख किरदार है और तीसरा किरदार रामी का है जो मेडिकल की पढ़ाई कर रही है. रामी का एक सेक्स वीडियो इंटरनेट पर लीक हो जाता है. इसके बाद वह छिपने के लिए गोवा पहुंचती है जहां उसकी मुलाकात फणीश्वर से होती है.

Berlinale Panorama 2018 Garbage
तस्वीर: Berlinale 2018

फिल्म इन किरदारों के इर्द गिर्द है और उसके जरिए भारत के समाज की एक दुखद तस्वीर सामने आती है. वो सब कुछ जिसे मुख्य धारा का सिनेमा और मीडिया नहीं दिखाता लेकिन आए दिन की घटनाएं जिनके होने की गवाही देती हैं, उसे क्यू ने इस सिनेमा में ज्यों का त्यों सामने रखा है. बहुत से लोग इसे देख कर विचलित हो सकते हैं तो फिर कलाकारों के लिए यह कितना मुश्किल था.

फणीश्वर का किरदार निभाने वाले तन्मय कहते हैं, "फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने के साथ ही मैंने क्यू से कहा कि हम यह फिल्म बनाएंगे. उस वक्त मुझे अहसास नहीं था कि आखिर में किरदार उभर कर कैसा निकलेगा, मैं बस शारीरिक रूप से स्क्रिप्ट के साथ अभिनय करता रहा, टैक्सी चलानी थी एक महीने तक टैक्सी चलाया या और जो काम थे वो किए, वर्कशॉप के दौरान और इस तरह से हम किरदार में घुस गए, फिर सब कुछ बहुत सहज था भले ही यह एक असहज फिल्म है." तन्मय ने यह भी कहा, "फिल्म बनाते वक्त हमें यह उतना भयानक नहीं लगा लेकिन बनने के बाद जब देख रहे हैं तो असर महसूस हो रहा है."

Berlinale Panorama 2018 Garbage
तस्वीर: Berlinale 2018

ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश में मुख्यधारा की सिनेमा समझौतों की राह पर चलते चलते कहीं दूर चली जाती है और फिर एक ऐसी तस्वीर गढ़ दी जाती है जिसका मकसद सिर्फ पैसा या नाम कमाना भर होता है. क्यू इन सबसे अलग रहना चाहते हैं और जानते हैं कि मुख्यधारा की सिनेमा और उसके तंत्र में ऐसी फिल्मों की जगह फिलहाल तो नहीं है. भारत की बुराइयों को बेचने के आरोप पर वो तिलमिला कर कहते हैं, "बेचने का तो सवाल ही नहीं क्योंकि मुझे पैसा नहीं मिल रहा."

सात साल पहले भी क्यू बर्लिनाले आए थे अपनी फिल्म गांडू लेकर. उस फिल्म को भी सराहना मिली और वो जर्मनी समेत दुनिया के कई देशों में दिखाई गई. गारबेज देखने के लिए भी बड़ी संख्या में लोग उमड़ रहे हैं. फिल्म खत्म हुई तो मेरे बगल में बैठे एक जर्मन बुजुर्ग दर्शक ने तुरंत कहा "यह तो बॉलीवुड की फिल्म नहीं है." यह बॉलीवुड की फिल्म नहीं है और शायद भारत में दिखाई भी नहीं जाएगी.

क्यू खुद ही कहते हैं कि उनकी फिल्म भारत के सिनेमाघरों में नहीं दिखाई जाएगी. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "कौन दिखाएगा ये फिल्म? क्यों दिखाएगा कोई? भारत का सिस्टम इस बात की अनुमति नहीं देता कि ऐसी फिल्में बने या दिखाई जाएं. बावजूद इसके दुनिया भर में ऐसी फिल्में बनाई जा रही हैं, यथास्थिति को चुनौती देने के लिए. सिनेमा कला का एक माध्यम था जिसे आलू का कारोबार बना दिया गया और मैं उस कारोबार का हिस्सा नहीं बनना चाहता."