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दो नावों पर सवार हैं मोदी

६ फ़रवरी २०१५

भारत में धार्मिक सहिष्णुता के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दबाव बढ़ता जा रहा है. कुलदीप कुमार का कहना है कि उन्हें जल्द ही देश के विकास या हिंदुत्ववादी एजेंडे में से एक को चुनना होगा.

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तस्वीर: picture alliance/AP Photo

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो नावों पर सवार हैं, और सभी जानते हैं कि दो नावों पर बहुत देर तक सवार नहीं रहा जा सकता. कुछ देर तक ऐसी सवारी करने के बाद दो में से एक नाव को चुनना ही पड़ता है. बहुत जल्दी ही मोदी को भी यह तय करना पड़ेगा कि वह देश के विकास के एजेंडे की नाव को खेना चाहते हैं या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और हिन्दू जागरण मंच जैसे उसके अनेक आनुषांगिक संगठनों के हिंदुत्ववादी एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहते हैं. कुछ समय पहले यह खबर आई थी कि पार्टी सांसदों की एक बैठक में उन्होंने उन्हें सलाह दी थी कि सार्वजनिक बयान देते समय वे ‘लक्ष्मण रेखा' को न लांघे, लेकिन स्वयं उन्होंने आज तक सार्वजनिक रूप से यह स्पष्ट नहीं किया है कि यह ‘लक्ष्मण रेखा' क्या है.

अतीत में भारतीय जनता पार्टी दावा करती आई है कि जब वह अकेले अपने बलबूते पर केंद्र में सरकार बना लेगी तब अपनी मूल प्रतिज्ञाओं, संविधान की धारा 370 को हटा कर जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना, समान नागरिक संहिता लागू करना और अयोध्या में बाबरी मस्जिद के स्थान पर भव्य राममंदिर का निर्माण करना, पर अमल करेगी. हिंदुत्ववादी इस बात से काफी बेचैन हैं कि आठ माह बीत जाने के बाद भी मोदी सरकार ने इनमें से किसी भी मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की है. दरअसल संघ का लक्ष्य केवल राजनीतिक सत्ता हासिल करना नहीं है. इस काम के लिए उसने भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया है. उसका दूरगामी रणनीतिक लक्ष्य भारत को हिन्दू राष्ट्र में तब्दील करना है जिसके लिए उसे राजनीतिक सत्ता की जरूरत है. नरेंद्र मोदी ने भले ही भाजपा और केंद्र सरकार पर अपना वर्चस्व कायम कर लिया हो, पर विहिप और उसके जैसे अन्य संगठनों के लिए असली नेता संघ प्रमुख मोहन भागवत हैं. जब तक संघ की ओर से उन्हें संयम बरतने का निर्देश नहीं मिलता, तब तक वे अपनी राह चलते रहेंगे.

और वह राह ऐसी है जिस पर चलने से भारत जैसे बहुलतावादी समाज में सांप्रदायिक तनाव, घृणा और हिंसा फैलना निश्चित है. ऐसे माहौल में कोई भी देश आर्थिक विकास नहीं कर सकता, न ही वह अंतरराष्ट्रीय जगत में सम्मान और प्रशंसा अर्जित कर सकता है. आज मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती उसके राजनीतिक विरोधी नहीं बल्कि उसके अपने समर्थक हैं. अकेले दिल्ली में ही, जो देश की राजधानी है और जहां की कानून-व्यवस्था सीधे –सीधे केन्द्रीय गृह मंत्रालय के हाथ में है, पिछले दो माह के दौरान पांच चर्चों पर हमले और तोड़फोड़ की घटनाएं घट चुकी हैं. पुलिस ने इन्हें चोरी की वारदातें माना और कोई कार्रवाई नहीं की, लेकिन जब दो दिन पहले ईसाइयों ने इन हमलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, तब पुलिस ने उन्हें खदेड़-खदेड़ कर मारा. अंततः केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के निर्देश पर उसने इन वारदातों के मामले में सख्त कानूनी धाराएं लगाईं.

केन्द्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति दिल्ली के मतदाताओं से यह अपील करने के कारण विवाद के घेरे में आ चुकी हैं कि वे ‘रामजादों' को वोट दें, ‘*रामजादों' को नहीं. भाजपा सांसद साक्षी महाराज महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को ‘राष्ट्रभक्त' बता चुके हैं और हिंदुओं से अपील कर चुके हैं कि वे कम-से-कम चार बच्चे पैदा करें वरना वे अपने ही देश में अल्पसंख्यक हो जाएंगे. विहिप नेता साध्वी प्राची ने पांच बच्चे पैदा करने की अपील के साथ-साथ मुसलमानों पर ‘चालीस-पचास पिल्लों' को पैदा करने का आरोप भी लगा दिया है. उधर संघ और विहिप की ओर से मुसलमानों और ईसाइयों को ‘घर वापसी' कार्यक्रम के तहत फिर से हिन्दू बनाने का अभियान भी जोर पकड़ रहा है और उसे साक्षी महाराज और साध्वी प्राची जैसे नेताओं का खुला समर्थन प्राप्त है. संघ और विहिप ‘लव जिहाद' के खिलाफ प्रचार करके यह आरोप लगा रहे हैं कि मुसलमान एक साजिश के तहत हिन्दू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसा कर उनसे शादी करते हैं और उन्हें मुसलमान बनाते हैं. साध्वी प्राची ने तो समाजवादी पार्टी के नेता आजम खां और पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ तक को ‘घर वापसी' का न्यौता दे डाला है.

जाहिर है कि इस सबसे साम्प्रदायिक सौहार्द्र पर बुरा असर पड़ेगा. विपक्षी पार्टियों का रुख भी कड़ा होता जा रहा है और क्योंकि भाजपा राज्य सभा में अल्पमत में है, इसलिए उसके लिए किसी भी तरह के महत्वपूर्ण कानून को संसद में पारित कराना लगभग असंभव है. नए कानून बनाए बिना उदारवादी आर्थिक नीतियों को लागू करके विकास दर को ऊपर ले जाने का सपना पूरा नहीं हो सकता. इसलिए इस समय नरेंद्र मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती संघ परिवार के भीतर से ही खड़ी की जा रही है. देखना दिलचस्प होगा कि वह इससे कैसे निपटती है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार