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मोदी शरीफ शुरुआती बाजी हारे

२० अगस्त २०१४

भारत पाकिस्तान संबंधों में सुधार के लिए पिछले कुछ दिनों से रास्ते बनते दिख रहे थे. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना है कि दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच प्रस्तावित वार्ता के रद्द हो जाने से उम्मीदों पर पानी फिर गया.

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तस्वीर: Reuters

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी आमंत्रित किया गया था. इससे संबंधों में सुधार की कुछ उम्मीद जागी थी. दोनों देशों के विदेश सचिवों के बीच 25 अगस्त को इस्लामाबाद में बातचीत होना तय हुआ था. पिछले कुछ महीनों में दोनों देशों के बीच एक दूसरे पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति में भी कमी देखी जा रही थी. 2008 में पाकिस्तानी इस्लामी संगठन लश्करे तय्यबा द्वारा मुंबई हमले के बाद से अब पहली बार उम्मीद की जा रही थी कि दोनों के बीच बातचीत के नए रास्ते खुलेंगे.

लेकिन भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह का प्रस्तावित दौरा रद्द करने के ताजा फैसले से उन तमाम उम्मीदों पर पानी फिर गया. बाहरी प्रेक्षकों के लिए इसका कारण स्पष्ट लगता है. भारत का कहना है कि पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित का भारत प्रशासित कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से बात करना, पाकिस्तान की इस मुद्दे पर निष्ठा के बारे में सवाल खड़े करता है और भारत के प्रधानमंत्री की कूटनीतिक कोशिशों को प्रभावित करता है. लेकिन पाकिस्तान पहले भी बातचीत से पहले अलगाववादियों से बात करता रहा है, ऐसे में मामला कुछ और ही लगता है.

तो ऐसा क्या हुआ जिसने सरकार को पलटने पर मजबूर किया? हाल में कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर हुई ताजा भिड़ंतों ने मोदी को घेरे में खड़ा कर दिया. चुनावों में भारत को मजबूत बनाने के वादों के साथ सत्ता में आए हिन्दू राष्ट्रवादी नेता खुद को कमजोर दिखाने का जोखिम नहीं उठा सकते. 1947 में मिली आजादी से ही कश्मीर दोनों देशों के बीच विवाद का मुद्दा बना हुआ है.

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ग्रैहम लूकस डॉयचे वेले के दक्षिण एशिया विभाग के प्रमुख हैंतस्वीर: DW/Matthias Müller

67 सालों में दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच तीन युद्ध हो चुके हैं, और 2008 में मुंबई हमले के समय दोनों देश युद्ध की कगार पर पहुंच गए थे. नि:संदेह भारत को लगता है कि इस्लामी चरमपंथी एक बार फिर कश्मीर में परेशानियां खड़ी करने की कोशिश कर रहे हैं और इसमें उन्हें पाकिस्तान का समर्थन हासिल है. हाल में कश्मीर दौरे पर मोदी द्वारा पाकिस्तान पर छद्म युद्ध छेड़ने के आरोप के पीछे यही आकलन था.

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के लिए वार्ता का रद्द होना मुसीबत से कम नहीं. मोदी के शपथग्रहण के लिए भारत जाकर उन्होंने पाकिस्तान में अपनी इज्जत दांव पर लगा दी थी. इस प्रक्रिया में उन्होंने ताकतवर पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को चुनौती देने का खतरा तक मोल लिया. पाकिस्तानी विदेश एवं सुरक्षा मामलों में उनका प्रभाव दोनों देशों के बीच तनाव बनाए रखने पर निर्भर है. पड़ोसी देश से कथित खतरे के बिना आम पाकिस्तानी न तो भारी भरकम सैन्य बजट को स्वीकार करेगा और न ही इस बात को कि आईएसआई सरकार के नियंत्रण के बगैर काम करे.

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने खुद दोनों देशों के बीच व्यापारिक और राजनीतिक संबंध बेहतर बनाने में दिलचस्पी जताई है. उन्हें उम्मीद है कि इससे दोनों देशों को फायदा होगा और पाकिस्तान की आर्थिक हालत सुधारने में उन्हें मदद मिलेगी. वह कश्मीर में इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों में से नहीं हैं.

हालांकि इस बात के प्रमाण मौजूद हैं कि पाकिस्तानी खुफिया सेवा आईएसआई ने कश्मीर में अस्थिरता पैदा करने के लिए इस्लामी आतंकवादियों को ट्रेनिंग और आर्थिक मदद दी है. सीमा पर ताजा हमलों का ऐसे समय पर होना कोई इत्तेफाक नहीं. इससे हिन्दू राष्ट्रवादी नेता मोदी को उकसाने का मौका तो मिलता ही है पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की शर्मिंदगी की गारंटी भी होती है जो इस समय घरेलू स्तर पर विपक्षी नेता इमरान खान और मुस्लिम धार्मिक नेता ताहिरुल कादरी के सरकार विरोधी प्रदर्शनों से घिरे हुए हैं. दोनों को ही संदिग्ध रूप से सेना का करीबी समझा जाता है.

यानि यह माना जा सकता है कि मोदी-शरीफ दौर की शुरुआती राजनीतिक लड़ाई में बाजी उन्होंने मार ली जो भारत पाकिस्तान संबंधों में सुधार के खिलाफ हैं. यह शरीफ के लिए कड़ी चेतावनी है कि वह अपनी नीति छोड़ दें. लेकिन ये भी सच है कि दोनों नेताओं को अपनी आर्थिक समस्याओं से निपटने के लिए एक दूसरे की जरूरत है. सवाल यह है कि क्या वे घरेलू विरोध से निपट सकते हैं? संभावनाएं बहुत कम हैं.

समीक्षा: ग्रैहम लूकस/एसएफ

संपादन: महेश झा