1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मोदी सरकार ने कहा राहुल की जासूसी नहीं

१६ मार्च २०१५

राहुल गांधी की जासूसी के विपक्षी कांग्रेस पार्टी के आरोपों पर भारत सरकार ने कहा कि यह तिल का ताड़ बनाने जैसा है. गांधी के बारे में जानकारियां इकठ्ठा करने को एक ट्रांसपेरेंसी सुरक्षा प्रोफाइलिंग का हिस्सा बताया गया.

https://p.dw.com/p/1ErSC
Indien Politik Rahul Gandhi
तस्वीर: picture-alliance/dpa

विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के मामले पर बीजेपी पर राजनीतिक विरोधियों की जासूसी का आरोप लगाया. संसंद में इन आरोपों का खंडन करते हुए सदन के नेता अरूण जेटली ने कहा कि पुलिस इस तरह की जानकारियां 1987 से ही जुटाती आई है. जेटली ने लोकसभा को बताया कि 1999 में इसमें कुछ सुधार किए गए थे. तबसे लागू इस वर्तमान प्रोफॉर्मा फार्म के अंतर्गत अब तक राहुल गांधी समेत करीब 526 महत्वपूर्ण राजनीतिक लोगों की जानकारियां लीं गई हैं, जो कि उनकी सुरक्षा के लिए चली आ रही एक व्यवस्था का हिस्सा है. इसके जरिए प्रोफाइल किए गए लोगों में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह तथा अटल बिहारी वाजपेयी जैसे पूर्व प्रधानमंत्री भी शामिल हैं.

राष्ट्रपति बनने से पहले इस फार्म के लिए प्रणब मुखर्जी की जानकारियां भी साल 2001, 2007, 2008, 2009 और 2012 में इकट्ठा की गईं. इसके अलावा वरिष्ठ बीजेपी नेताओं एलके आडवाणी और सुषमा स्वराज, सीपीआई (एम) के सीताराम येचुरी और जेडी-यू के शरद यादव जैसे नेताओं की भी समय समय पर प्रोफाइलिंग की गई है. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संसद में इस प्रक्रिया को "पारदर्शिता और सुरक्षा प्रोफाइलिंग से जुड़ी व्यवस्था और किसी तरह की गुप्तचर सेवा या जासूसी से जुड़ा न होने" की बात कही.

प्रोफार्मा फार्म में कैसी जानकारी

इन फार्मों में संबंधित व्यक्ति के जूतों के नंबर, आंखों के रंग और ऐसी ही व्यक्तिगत जानकारियों का ब्यौरा दर्ज होता है. इसके इस्तेमाल का एक उदाहरण देते हुए जेटली ने बताया कि जब आत्मघाती बम हमले में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी, तब उनके शव की पहचान करने में उनके जूतों से ही मदद मिली थी.

सुरक्षा पूछताछ और प्रोफाइलिंग के समर्थन में बोलते हुए जेटली ने कहा कि सुरक्षा जरूरतों और प्रोफाइलिंग का मुद्दा सुरक्षा के विशेषज्ञों पर ही छोड़ देना चाहिए और "हमें खुद वह बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए".

रूटीन या जासूसी?

वीआईपी लोगों की ऐसी प्रोफाइलिंग करने की व्यवस्था 1987 में कांग्रेस पार्टी के शासन में ही शुरू हुई थी. राहुल गांधी के इस व्यवस्था में सहयोग ना देने के मुद्दे पर पहले केन्द्र सरकार ने इसे पुलिस की एक "रूटीन" कार्यवाई बताया था. फिर जब इसके खिलाफ कांग्रेस ने संसद के जीरो आवर में सवाल उठाने की तैयारी कर ली, तब इस बारे में विस्तृत जानकारी पेश की गई.

राहुल गांधी इस साल संसद के बजट सत्र की शुरुआत से ही अवकाश पर बताए जा रहे हैं. 23 फरवरी से ही संसद में नहीं दिख रहे राहुल गांधी से मिलने कुछ पुलिस अधिकारी 12 मार्च को दिल्ली में उनके निवास स्थान गए थे. कथित तौर पर इन पुलिस अधिकारियों ने वहां गांधी के हुलिए, उनके आंखों के रंग जैसी कई जानकारियां जुटाने की कोशिश की. इसी घटना को लेकर कांग्रेस ने एनडीए सरकार पर आरोप लगाया है कि पुलिस को गांधी के घर भेजना उनकी "राजनैतिक जासूसी करने" का हिस्सा है.

आरआर/एमजे (पीटीआई)